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पाठकीय

by
Feb 4, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 Feb 2006 00:00:00

अंक-सन्दर्भ, 5 मार्च, 2006

पञ्चांग

संवत् 2063 वि.

वार

ई. सन् 2006

चैत्र शुक्ल 4

रवि

2 अप्रैल ”

,, ,, 5

सोम

3 ,, ,,

,, ,, 6

मंगल

4 ,,

,, ,, 7

बुध

5 ,, ,,

,, ,, 8

गुरु

6 ,, ,,

(श्री दुर्गाष्टमी, रामनवमी)

,, ,, 9

शुक्र

7 ,, ,,

,, ,, 10

शनि

8 “” “”

नहीं है रुकने वाला

ऐसी धमकी से नहीं, होंगे हम भयभीत

हारेगा आतंक औ, सच जाएगा जीत।

सच जाएगा जीत, समय का फेर बड़ा है

डर के मारे पत्र जगत भी दूर खड़ा है।

पर “प्रशांत” यह कृष्णदेव का शंख निराला

पाञ्चजन्य उद्घोष, नहीं है रुकने वाला।।

-प्रशांत

हारे सेकुलर, जीता भारत

आवरण कथा के अन्तर्गत राकेश उपाध्याय की रपट “डांग में उगा नया सूरज” पढ़ी। शबरी कुम्भ ईसाई मिशनरियों द्वारा जनजातीय क्षेत्रों में किए जा रहे मतान्तरण के घृणित कार्यों का प्रखर जवाब था। इस कुंभ में 5 लाख से अधिक जनजातीय बंधुओं ने भाग लेकर सिद्ध कर दिया कि उनका श्रीराम से अटूट सम्बंध है और इस भावनात्मक सम्बंध को कोई तोड़ नहीं सकता। यदि शबरी कुंभ जैसे आयोजन हिन्दुओं को एक सूत्र में बांधने में सफल हो गए तो सेकुलरों की तुष्टीकरण नीतियां स्वयमेव समाप्त हो जाएंगी।

-डा. विष्णु प्रकाश पाण्डेय

19/159, दुर्गानगर, आवास विकास कालोनी

अलीगढ़ (उ.प्र.)

शबरी कुम्भ के सफल आयोजन से सेकुलरवाद के उन ठेकेदारों एवं ईसाई मिशनरियों को गहरा धक्का लगा है, जो इसके विरोध में अदालत तक गए थे। भोले-भाले जनजातीय समाज को मतान्तरित करने वालों की दुकान भी अब ज्यादा दिन नहीं चलेगी। “दुनिया के मजदूरो-एक हो” का नारा देने वाले, पर स्वयं खेमों में बंटे वामपंथियों को हिन्दू समाज की एकता फूटी आंख भी नहीं सुहाती। शबरी कुंभ जैसे आयोजन इनकी कुटिल योजनाओं पर लगाम लगाएंगे। सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन का आह्वान भी उचित लगा कि “वनवासी” के बदले “जनजातीय” शब्द लिखें।

-उपेन्द्र उपाध्याय

गीता मानस मन्दिर, शिवाजी पथ, गोपालगंज (बिहार)

शबरी कुम्भ में सबसे ह्मदयस्पर्शी उद्गार थे पूज्य स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरि जी के। जनजातीय समाज के मतान्तरण के सम्बंध में दिए गए उस उद्गार में आत्मीयता एवं इतिहास की खामियों पर प्रायश्चित का भाव भी था। मतान्तरण के पीछे निस्संदेह सामाजिक उपेक्षा और आर्थिक विपन्नता ही कारण हैं। इन्हीं दो कारणों ने देश की बहुसंख्य आबादी को बौद्ध बनने पर विवश किया था। मध्यकाल में मुस्लिम शासकों की बर्बरता के कारण भी हजारों लोग मुसलमान बने थे और अब सुदूर ग्रामीण अंचलों में मिशनरियों का मतान्तरण षडंत्र चल रहा है। अगर यही क्रम चलता रहा तो भविष्य में हिन्दुओं के अल्पसंख्यक होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। उदारता और सहनशीलता का आशय राष्ट्रीय अस्मिता पर होने वाले प्रहारों को झेलना तो कतई नहीं है।

-इन्दिरा किसलय

बल्लालेश्वर अपार्टमेंट, रेणुका विहार

नागपुर (महाराष्ट्र)

कब तक बर्दाश्त करेंगे?

आलोक गोस्वामी की रपट “राजेन्द्र सच्चर का मुस्लिम अंकगणित” से लगता है कि संप्रग सरकार मुस्लिम तुष्टीकरण में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। इस सरकार का हर फैसला प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों को खुश करने की कवायद नजर आता है।

-हेमन्त सिंह

2/28, डी.एम. कालोनी, बुलन्दशहर (उ.प्र.)

संप्रग सरकार उन्हीं नीतियों को बढ़ावा दे रही है, जिनके कारण भारत का दु:खद विभाजन हुआ था। कहीं और से संचालित हो रही इस सरकार का गुप्त एजेण्डा यदि भारत का पुन: विभाजन करना है तो उसे कुछ नए मंत्रालयों एवं आयोगों का गठन शीघ्र करना चाहिए, जैसे ब्रिटिश शासकों को पुन: बुलाने का सुझाव देने के लिए आयोग एवं हिन्दू आस्था खण्डन आयोग। इसी तरह महमूद गजनवी और महमूद गोरी स्वागत मंत्रालय बनाने चाहिए। समस्या यह नहीं है कि वे ऐसा करते जा रहे हैं, बल्कि समस्या यह है कि हम यह सब कब तक बर्दाश्त करते रहेंगे?

-डा. नारायण भास्कर

50, अरुणानगर, एटा (उ.प्र.)

कठिन राह

नागपुर में श्री गुरुजी जन्म शताब्दी समारोह के शुभारम्भ अवसर पर भारत-भाग्य बदलने का आह्वान किया गया। पर जहां जाति के आधार पर किसी की गुणवत्ता आंकी जाती हो, वहां यह काम क्या आसान है? शायद यही कारण है कि श्रीगुरुजी पर पूर्ण विश्वास और आस्था रखने वाले पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी भी अपने काल में अनेक प्रकार के प्रयासों के बावजूद समाज से विषमता, जाति और वर्ण भेद नहीं मिटा सके।

-खुशाल सिंह माहौर

फतेहपुर सीकरी, आगरा (उ.प्र.)

चिन्ताजनक स्थिति

बंगलादेश के वरिष्ठ अधिवक्ता रविन्द्र घोष की रपट “हरे आतंक से घिरा भारत” चिन्ताजनक है। देश विभाजन के समय पाकिस्तान में लगभग 20 प्रतिशत हिन्दू थे। अब वहां 2 प्रतिशत भी नहीं हैं और लगातार कम हो रहे हैं। बंगलादेश में 40 प्रतिशत हिन्दू थे, अब वहां भी नाममात्र के हिन्दू रह गए हैं। कश्मीर घाटी से तो हिन्दुओं का सफाया ही हो गया है, जबकि भारत में मुस्लिमों की संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ रही है। दुख की बात है कि हमारे सेकुलर नेता “वोट बैंक” से आगे सोच ही नहीं पा रहे हैं।

-रमेश चन्द्र गुप्ता

नेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)

रोमांचकारी यात्रा

तरुण विजय द्वारा प्रस्तुत शक्तिपीठ हिंगलाज तीर्थयात्रा की तीसरी कड़ी “थारौ पंथ खड्गों धार ए। हींगोल बेड़ौ पार ए।।” भी पिछली कड़ियों के समान अत्यन्त रोमांचकारी तथा जीवन्त लगी। यह यात्रा संस्मरण इतना प्रभावशाली है कि पाठक भी सहयात्री बनकर पुण्य का भागी बन जाता है। लेखक इसके लिए बधाई के पात्र हैं। मेरा सुझाव है कि इन कड़ियों को जोड़कर एक लघु पुस्तिका अवश्य प्रकाशित करें, ताकि इस दुर्लभ और दुर्गम यात्रा के संस्मरणों को पढ़कर भावी पीढ़ियां भी लाभान्वित हो सकें।

-जगदीश चन्द्र लाड़

अभिलाषा अपार्टमेंट

न्यू पलासिया, इन्दौर (म.प्र.)

शास्त्रों में 52 शक्तिपीठों की चर्चा मिलती है। इन्हीं में से एक हिंगलाज शक्तिपीठ है। हिन्दुओं के लिए धार्मिक दृष्टि से यह पीठ बहुत ही महत्वपूर्ण है। पाञ्चजन्य में हिंगलाज यात्रा के सजीव वर्णन से पाठकों को बड़ा लाभ हो रहा है। धार्मिक यात्राएं भारत-पाकिस्तान के बीच शान्ति स्थापित करने में सफल हो सकती हैं, इसलिए ऐसी यात्राएं होती रहें।

-गोविन्द खोखानी

“प्रज्ञा ज्योति”, न्यू वास, पो.-मधापार,

जिला-कच्छ (गुजरात)

अंक-सन्दर्भ -26 फरवरी, 2006

उनकी असलियत समझें

देवेन्द्र स्वरूप ने मंथन के अन्तर्गत अपने लेख “भारत में मुस्लिम राज” के जरिए भारतीय समाज को चेताया है। सोनिया गांधी के नियंत्रण में चल रही संप्रग सरकार की कारगुजारियों में छुपे इरादों को समझना होगा। दुर्भाग्य की बात है कि भारत का शिक्षित समाज यह नहीं समझता कि ईसाई और इस्लाम, दोनों ही विस्तारवादी मजहब हैं और दुनिया भर में अपना वर्चस्व कायम करना चाहते हैं। हिन्दू-समाज अपने ऊपर मंडरा रहे इन खतरों का सामना तभी कर पाएगा, जब वह राजनीतिक दलों की परिधि से बाहर निकल कर स्वयं खड़ा हो और अदूरदर्शी राजनीतिज्ञों को कूड़ेदान में फेंकने का साहस दिखाये। इस कार्य में रा.स्व.संघ जैसे देशभक्त संगठन को पहल करनी चाहिए।

-राम हरि शर्मा

गुरु तेग बहादुर नगर (दिल्ली)

मंथन में वर्णित सचाई तो सभी हिन्दू जानते हैं, पर इसका परिणाम क्या होगा, उस पर अपने स्वार्थ के कारण विचार नहीं करते। जिन परिस्थितियों से देश का बंटवारा हुआ था, वही परिस्थितियां पुन: पैदा हो रही हैं। प्रभावी विरोध न होने के कारण कांग्रेसी और वामपंथी निरन्तर मुस्लिम तुष्टीकरण में लगे हैं। यह सरकार भले ही कहे कि सेना में मुसलमानों की गिनती नहीं होगी, पर इसके अतीत को देखकर विश्वास करना कठिन है।

-शिव शम्भू कृष्ण

417/205, निवास राज, लखनऊ (उ.प्र.)

भारतीय सेना में मुसलमानों की गिनती का प्रयास एक घातक कदम था। यदि सेना को निहित स्वार्थ वाली राजनीतिक गतिविधियों से दूषित किया गया तो यह देश के लिए अच्छा नहीं होगा। आज की कांग्रेस सिर्फ सत्ता की राजनीति करती है। इसकी नीतियां व विचारधारा संकीर्णता के उस छोर तक पहुंच चुकी हैं जहां राष्ट्रवाद के नाम पर क्षेत्रवाद, पंथनिरपेक्षता के नाम पर तुष्टीकरण और विकासवाद के नाम पर भ्रष्टाचार का बोलबाला दिखता है।

-ले.क. कृपाल सिंह (से.नि.)

ग्रा.-वैकुंठनगर, पो.-बनीखेत, डलहौजी,

चम्बा (हि.प्र.)

जगाने का प्रयास

दिशादर्शन के अन्तर्गत प्रकाशित तरुण विजय के लेख “यह सरकार भारतीयों के लिए या मुसलमानों के लिए?” में हिन्दू प्रतिमानों पर हो रहे आघातों को क्रमश: प्रस्तुत करके सोए हिन्दू समाज को जगाने का प्रयास किया गया है।

-नथगिरि भारती

भारती भवन, नोहर, हनुमानगढ़ (राजस्थान)

जिस प्रकार केन्द्र एवं विभिन्न राज्य सरकारें मुस्लिम तुष्टीकरण कर रही हैं, वह चिन्ताजनक है। यह दुर्भाग्य की बात है कि इस हिन्दूबहुल देश में हिन्दुओं के साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है और मुसलमान सारी सुविधाएं प्राप्त कर रहे हैं। मुसलमानों की आबादी भी बढ़ती जा रही है। अगर स्थिति ऐसी ही रही तो वह दिन दूर नहीं, जब हिन्दू अल्पसंख्यक हो जाएंगे। अल्पसंख्यक होने पर हिन्दुओं की क्या दुर्गति होती है, इसका जीता-जागता उदाहरण कश्मीर है।

-प्रभाकर पाण्डेय

702/6, राजीव मार्ग, निराला नगर, रीवा (म.प्र.)

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