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पानी तो उतरा पर अब महामारी की मारगत 25 अगस्त से राजस्थान के बाड़मेर में बाढ़ ने जो तबाही मचाई बाढ़ का पानी उतरने के बाद वह और भी भयानक हो गयी है। गांव से लाशों के ढेर बरामद हो रहे हैं। जिन्होंने किसी तरह बाढ़ के तांडव से स्वयं को बचाया, अब वे मलेरिया, हैजा आदि रोगों की भयावहता को झेल रहे हैं। बाड़मेर के अस्पतालों में मरीजों का तांता लग गया है। क्या सरकारी और क्या निजी, तिल रखने की जगह भी अस्पतालों में नहीं बची है। जिला सरकारी अस्पताल का हाल यह है कि यहां रोज 1200 से 1500 मरीज इलाज के लिए आ रहे हैं। मरीजों में ज्यादातर मलेरिया से पीड़ित हैं। हैजा की दस्तक भी अनेक स्थानों पर सुनाई पड़ी है। 16 सितम्बर से मरीजों के आने का जो सिलसिला शुरू हुआ, धीरे-धीरे वह बढ़ता ही गया। फिलहाल प्रशासन अपनी सामथ्र्य के अनुसार मरीजों को सभी सुविधाएं देने में लगा है लेकिन इसके बावजूद, सरकारी सूत्रों के अनुसार ही रोज 10 से 15 मौतें हो रही हैं। 21 सितम्बर को ही जिला अस्पताल में इलाज करा रहे 10 लोगों की मौत हो गई। 150 बिस्तरों वाले इस अस्पताल में लगभग 125 बिस्तरे और लगाए गए हैं, कुल मिलाकर सारे बिस्तर भर गए हैं। वास्तव में 30 अगस्त से बाढ़ का पानी उतरने तो लगा था, किन्तु जगह-जगह गड्ढों और निचले इलाकों में हुआ जल भराव ही बाद में रोगों का कारण बना। कुंए, जोहड़, तालाब यानी सारे जलस्रोत प्रदूषित। पाकिस्तान सीमा से सटी दो तहसीलें रामसर और शिव तो बुरी तरह प्रभावित हुई हैं।गांव के गांव महामारी के शिकार हो गए हैं। कई गांव तो अभी भी डूबे हुए हैं। मलवा नामक एक मुस्लिम बहुल गांव में पानी उतरते ही 37 लाशें मिलीं। सरकापार गांव में एक बड़े माली परिवार के 36 लोग मारे गए। सरकारी सूत्रों के अनुसार, अब तक 106 लाशें बरामद हो चुकी हैं। अन्य डूबे हुए गांवों से लाशों का मिलना जारी है। ऐसे भी इलाके हैं, जहां का हाल किसी को भी पता नहीं है। गैर सरकारी सूत्रों के अनुसार, मौतों की संख्या 200 के आंकड़े को पार कर चुकी है। पशु, फसलें सभी कुछ बर्बाद हुए हैं। यद्यपि प्रशासन ने सहायता में कमी नहीं की है लेकिन उसकी अपनी मर्यादा है। अनेक स्वयंसेवी संगठन राहत कार्यों में लगे हैं। -गौरवराज सिंह राजपुरोहित33
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