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मथुरा

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Jan 10, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 10 Jan 2006 00:00:00

श्री बांके बिहारी मन्दिर प्रकरणआस्था से खिलवाड़गत 14 सितम्बर को वृन्दावन (मथुरा) स्थित जन-जन के आराध्य ठाकुर बांके बिहारी मन्दिर में दर्शनार्थी हतप्रभ थे। क्योंकि ठाकुर बांके बिहारी जी महाराज नीले रंग की जीन्स, पीली टी-शर्ट, दाएं हाथ में मोबाइल फोन, बाएं हाथ में बांसुरी के स्थान पर चमचमाती पीली घड़ी तथा शीश पर मोरपंख लगे रत्नजड़ित मुकुट की जगह “कैप” पहने हुए थे। ठाकुर जी को का ऐसा भौंड़ा श्रृंगार करने के विरुद्ध वृन्दावन, मथुरा सहित समूचे ब्राजमंडल के साथ-साथ देश के अनेक हिस्सों में तीखी प्रतिक्रियाएं हुईं। स्थान-स्थान पर विरोध-प्रदर्शनों और पुतले फूंकने का क्रम थमने का नाम नहीं ले रहा है। सेवायत गोस्वामी के इस अमर्यादित कृत्य के विरोध में बृजमंडल के सभी राजनीतिक दल, सामाजिक संगठन, संस्थाएं तथा नागरिक आंदोलनरत हैं। मंदिर तथा उसके आस-पास पुलिस सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। दूसरी ओर 18 सितम्बर को इस प्रकरण में न्यायाधीश श्रीमती रश्मि वंदा ने सेवायत गोस्वामी को विग्रह के गैर पारंपरिक श्रृंगार का दोषी मानते हुए तीन दिन के लिए सेवा से निलम्बित कर दिया।इन दिनों ठाकुर जी की सेवा का क्रम जुगल किशोर गोस्वामी तथा आनंद किशोर गोस्वामी के पास है। आनंद गोस्वामी प्रतिवर्ष (गत 8-10 वर्षों से) अपनी सेवा अवधि के दौरान एक पखवाड़े तक अपने नाम पर “आनंद उत्सव” का आयोजन करते हैं। इस दौरान विभिन्न अनधिकृत कार्यक्रम भी होते हैं। जबकि सत्यता यह है कि श्री बांके बिहारी मंदिर से प्रकाशित पंचांग “व्रतोत्सव निर्णय” में ठाकुर जी के केवल दस उत्सवों का ही उल्लेख है। इन उत्सवों में अक्षय तृतीया, हरियाली तीज, श्रीकृष्ण जन्माष्टी, शरद पूर्णिमा, बिहार पंचमी, रंगीली होली, दोलोत्सव आदि हैं। परन्तु आनंद उत्सव जैसा कोई उत्सव नहीं है। लोगों का कहना है कि आनन्दोत्सव आनंद गोस्वामी ने स्वयं के नाम पर बना डाला है। जबकि पत्रिका व्रतोत्सव निर्णय में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि इन उत्सवों के अतिरिक्त मंदिर में किसी भी अन्य उत्सव को मन्दिर प्रबंध कमेटी द्वारा मान्यता प्रदान नहीं की गई है। यदि कोई गोस्वामी व्यक्तिगत रूप से उत्सव मनाता है तो उसे दंडनीय कृत्य की परिधि में माना जायेगा।बताया जाता है कि बांके बिहारी जी महाराज की असीम कृपा के फलस्वरूप गोस्वामी बन्धु द्वय जुगलकिशोर व आनन्द किशोर गोस्वामी अपनी सम्पन्नता व वैभव पर अति दंभ करते हैं। दोनों भाइयों की छवि बाहुबली एवं अनैतिक कृत्यों में लिप्त तत्वों जैसी है। इसके प्रमाण भी हैं। यही आरोपी गोस्वामी वर्ष 1994, 1998, 2000 एवं 2003 में मर्यादित क्षेत्र के भीतर पूजा कराने एवं समय से आरती न करने के मामले में प्रबंध कमेटी एवं मन्दिर प्रशासक द्वारा दंडित होते रहे हैं।इतना ही नहीं, न्यायालय द्वारा इस गोस्वामी द्वय को 21 सितम्बर तक ठाकुर जी के सेवा-कर्म से विरत करने के आदेश के फलस्वरूप 19 सितम्बर को ठाकुर जी के दर्शनों के पट सवा दो घंटे तक बंद रहे। ज्ञात हुआ है कि ये दोनों भाई तो न्यायालय से प्रतिबन्धित होने के कारण सेवा-पूजा कर नहीं सकते थे। परन्तु इनके आतंक और धमकियों के फलस्वरूप अन्य किसी सेवायत गोस्वामी ने पूजा करके मन्दिरों के पट खोलने का साहस नहीं दिखाया। प्रात: आठ बजे खुलने वाले दर्शन सवा दस बजे तक न खुलने पर मन्दिर जगमोहन (प्रांगण) दर्शनार्थियों से खचाखच भर चुका था। अन्तत: प्रशासन की ओर से नगर दण्डाधिकारी को इन्हीं के तीसरे भाई कमल किशोर गोस्वामी से पूजा आदि कराकर पट खोलने का निर्णय लेना पड़ा। उल्लेखनीय है कि वृंदावन के स्थानीय भक्तों की ऐसी बहुत बड़ी संख्या है जो बांकेबिहारी के दर्शन के बिना अन्न-जल भी ग्रहण नहीं करते हैं, उन्हें सवा दो घंटे के विलम्ब से दर्शन प्राप्त होने के कारण असह्र वेदना झेलनी पड़ी। ये दोनों गोस्वामी बंधु पूर्व में भी अपने निहित स्वार्थों के लिए मन्दिर के पट देर से या अधिक अवधि तक खोलते रहे हैं। नियम-कायदों को ये अपने अधीन मानते हैं। लोगों का कहना है कि ठाकुर जी द्वारा पहनी गयी पोशाक की बिक्री कर मोटी धनराशि ऐंठने वाले इन गोस्वामियों को जीन्स, टी शर्ट से अभूतपूर्व धन प्राप्त होने का अंदाजा था। ठाकुर जी को धारण कराई गई घड़ी की कीमत 50,000 से अधिक बतायी जा रही है। आंदोलनकारियों की मांग है कि इन दोनों गोस्वामियों को सदैव के लिए पूजा से वंचित किया जाये। -मुरली मनोहर कूड़ा32

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