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आतंक का एक और नाम-शाहिद रहीममुम्बई धमाकों के बाद गुप्तचर संगठनों और देश की पुलिस ने सक्रियता दिखाते हुए अब तक जिन संदिग्ध आतंकियों को गिरफ्तार किया है, उनमें से अधिकतर लोगों का सम्बंध “तबलीगी जमाअत” नामक मुस्लिम संगठन से है। आतंकवादी संगठनों की सूची में यह एक नया नाम है, जिस पर विगत 50 वर्षों से ब्रिटेन, अमरीका और भारत की नजर रही है।त्रिपुरा में अगरतला से 56 कि.मी. दूर उदयपुर गांव की मस्जिद से पुलिस ने जिन ग्यारह लोगों को गिरफ्तार किया, उन्होंने स्वीकार कर लिया कि वे सब बंगलादेश में लश्कर-ए-तोयबा के ठिकाने पर हरकत-उल-जिहाद-ए-इस्लामी से प्रशिक्षण के लिए जा रहे थे। उनकी जमात का मुखिया और मुम्बई धमाकों का योजनाकार जबीहुद्दीन अंसारी सीमा पार करने में पहले ही सफल हो चुका था। हरकत-उल-जिहाद को बड़े-बड़े धमाके करने में दक्षता प्राप्त है। न केवल मुम्बई धमाके, बल्कि वाराणसी के बम धमाकों में भी हरकत-उल-जिहाद का कथित हाथ रहा है।13 जुलाई को गिरफ्तार हुए लोगों में मुहम्मद फारुक, राशिद मलिक, इस्माइल पटेल, यूसुफ गोरा, यूसुफ दाहा, यूसुफ दंगत, इब्राहीम रबात और यूनुस शेख का संबंध गुजरात से है, जबकि तीन लोग महाराष्ट्र के भिवंडी से हैं। ये सब उच्च शिक्षित मुसलमान हैं। यूनुस शेख डाक्टर और राशिद मलिक साफ्टवेयर इंजीनियर है। विडंबना यह है कि स्वयं त्रिपुरा और महाराष्ट्र की पुलिस ने उन्हें निजी मुचलके पर रिहा कर दिया। त्रिपुरा में वाममोर्चा और महाराष्ट्र में कांग्रेस के नेतृत्व में गठबंधन सरकार है। पुलिस ने इन गिरफ्तार आरोपियों को 29 जुलाई के दिन रिहा किया, शायद इसलिए कि देश के उर्दू अखबार लगातार “तबलीगी जमाअत” को बदनाम करने पर “भयंकर परिणाम भुगतने” की संभावना व्यक्त कर रहे थे।मुम्बई हवाई अड्डे पर भी कई लोग गिरफ्तार किए गए, लेकिन उन्हें भी छोड़ दिया गया। त्रिपुरा के पुलिस महानिदेशक जी.एम. श्रीवास्तव ने यद्यपि बार-बार दुहराया कि गोधरा, भडूच और अंकलेश्वर जैसे दूर-दराज के क्षेत्रों से युवकों का पासपोर्ट के साथ त्रिपुरा पहुंचना संदेहास्पद इसलिए भी है कि प्रत्येक तीसरे या पांचवें दिन 5 से 15 लोगों का जत्था, सरहद पार करने आ जाता है और तबलीगी जमाअत के नाम पर सीमा पार करने की कोशिश करता है। चूंकि इस संगठन का नाम अब तक संदिग्ध अथवा प्रतिबंधित संगठनों की सूची में शामिल नहीं है, इसलिए सरकार तबलीगी जमाअत का नाम लेने वाले मुस्लिम युवकों को रिहा कर देने का दबाव बनाती है।भारत में तबलीगी जमाअत की सक्रियता कितनी सच्ची या झूठी है, इसका पता लगाना तो गुप्तचर संगठनों का काम है, लेकिन इस संगठन के बारे में अकेली त्रिपुरा पुलिस ही नहीं, बल्कि ब्रिटेन की पुलिस भी सचेत रहने की घोषणा कर चुकी है। ब्रितानी पुलिस की मान्यता है कि ट्रांस एटलांटिक विमानों को धमाकों से उड़ाने में ऐसे चुनिंदा मुस्लिम व्यक्तियों का हाथ है, जो बड़े-बड़े पदों पर रहते हुए घोषित रूप से भारतीय संगठन तबलीगी जमाअत से संबद्ध हैं। अगस्त के पहले सप्ताह में हीथ्रो हवाई अड्डे पर गिरफ्तार लोगों में 7/7 के फिदाइन हमलों का योजनाकार और प्रमुख नेता मुहम्मद सिद्दीक खान डेवजमेरी का रहने वाला है और पश्चिमी देशों में तबलीगी जमाअत के केन्द्रों की स्थापना-योजना से जुड़ा हुआ है।तबलीगी जमाअत की स्थापना 1927 ई. में भारत में हुई, जिसका यूरोपीय मुख्यालय “डेवजमेरी”, वेस्ट पार्कशायर में है। 26 वर्षीय असद सरवर, उसका भाई अमजद और लंदन के वाल्थम अल्टो से गिरफ्तार अन्य 22 वर्षीय वहीदुज्जमान ने पश्चिमी मीडिया को खुला बयान दिया है कि लंदन के मुस्लिम समाज में इन दिनों विश्वविद्यालय की पढ़ाई छोड़कर तबलीगी जमाअत में शामिल होने की होड़ सी लगी है। डाक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक और आधुनिक शिक्षा प्राप्त लोग भी जमाअत में नियमित होने के एक सप्ताह बाद, दूसरों को समझाने लगते हैं कि मजहब, शिक्षा से ज्यादा महत्वपूर्ण है। ब्रिटेन और अमरीका के अखबारों सहित भारत के अखबारों ने भी यह खबर छापी है कि अलकायदा के बहुत से लोग पहले तबलीगी जमाअत में थे।तबलीगी जमाअत के भारतीय अधिकारियों ने मुम्बई उर्दू टाइम्स के माध्यम से अपने आतंकवाद से संबंध को नकारते हुए यह भी कहा है कि वह गैर राजनीतिक संगठन है। परन्तु ब्रिटेन की सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि तबलीगी जमाअत की एक काउंसिल ब्रिटेन में सक्रिय है, जिसने भारतीय और पाकिस्तानी मूल के विदेशी नागरिकों के माध्यम से अमरीका, फ्रांस, जर्मनी तथा लेबनान में भी अपनी शाखाएं खोल ली हैं। इन पर निरन्तर नजर रखी जा रही है।पश्चिमी मीडिया सहित भारतीय मीडिया का भी यह मानना है कि यह जमाअत सेकुलर समाज का बहिष्कार करती है तथा लोगों को इस्लामी रहन-सहन एवं इस्लामी लिबास पहनने के लिए बाध्य करती है। अमरीका की सर्वोच्च गुप्तचर संस्था “फेड्रल ब्यूरो आफ इन्वेस्टिगेशन” (एफबीआई) ने तो दावा किया है कि तबलीगी जमाअत के प्रतिनिधिमंडलों में अलकायदा के षड्यंत्रकारी छिपे रूप से काम कर रहे हैं।आज से 80 वर्ष पूर्व भारत की राजधानी दिल्ली और पंजाब की धरती पर पैदा हुई इस जमाअत को ब्रिटिश चिंतकों ने “इस्लामी रूढ़िवाद का सर्वोत्तम संगठन” कहा है। यह संगठन विश्व के 32 देशों में फैला हुआ है और पांच-सात या दस-पंद्रह लोगों की छोटी-छोटी टोलियां बनाकर पूरे विश्व में भ्रमण करता हुआ अपना संजाल बनाता आ रहा है। इस्लामी देशों के पिछड़े इलाकों में इसकी शाखाएं हैं। इनके माध्यम से ये लोग “जैसा देश, वैसा वेश” के आधार पर “तालिबान” तैयार करते हैं और वहां की सरकार से इस्लाम के प्रसार हेतु नकद अनुदान प्राप्त करते हैं। इस जमाअत का उद्देश्य दुनिया को ऐसी इस्लामी दुनिया बनाना है, जहां जानवर और परिन्दे भी खालिस “अल्लाह” का नाम लें और इस्लाम को “वैश्विक मजहब” के रूप में स्थापित करें।वास्तविक इतिहास के अनुसार मौलाना मुहम्मद इलियास कांधलवी ने मदीना से वापसी के बाद 13, रबी उस्सानी-1345 हिज्री/अक्तूबर, 1926 को इस संगठन की स्थापना की। 1944 ई. में मौलाना इलियास की मौत के बाद संगठन का नेतृत्व उनके बेटे मुहम्मद यूसुफ को मिला। आधा परिवार पाकिस्तान चला गया। आज तबलीगी जमाअत की दो मौलिक शाखाएं भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में हैं, परन्तु नेतृत्व एक ही परिवार के पास है। ये लोग अलकायदा और तालिबान को पसंद करते हैं और महिलाओं को घर से बाहर निकलने की आजादी के कट्टर विरोधी हैं।फ्रांस के चिंतक प्रोफेसर मार्स गिबोरियो दक्षिण एशियाई विषयों के विशेषज्ञ और तबलीगी जमाअत के अध्येता हैं। उन्होंने मुसलमान बनकर पांच वर्ष तक इनके बीच रहने के बाद अपना मन्तव्य देते हुए कहा है “तबलीगी जमाअत, दरअसल संपूर्ण विश्व पर विजय अभियान चला रही है। ये लोग गुप्त तरीके से संदेश भेजते हैं, जब तक विश्वस्त न हो जाएं, किसी से बात नहीं करते। सेकुलर समाज में गूंगे बन जाते हैं। पिछड़े मुसलमानों को डराते हैं या नौकरी और धंधे का लालच देते हैं। किसी भी अन्तरराष्ट्रीय सीमा रेखा को नहीं मानते और अल्लामा इकबाल की एक पंक्ति दुहराते हैं-“यूनान, मिस्र, रूमां (रोम), चीन-ओ-अरब हमारा।” ये स्वयं को गैर राजनीतिक बताते हैं, लेकिन बंगलादेश और पाकिस्तान में एक बहुत बड़ी भीड़ इनकी “सेना” के रूप में तैयार हो रही है। ये लोग बन्द दरवाजों में बैठकें करते हैं और सारा खर्च “नकद”, बिना बैंक के होता है। इसकी शाखाओं में 10-20 साल पुराने शातिर अपराधी और तस्कर भी पकड़े जा चुके हैं। इन दिनों तबलीगी जमाअत ने “लंदन डेवलपमेन्ट एजेन्सी” को लंदन में एक मस्जिद काम्पलेक्स बनाने के लिए कहा है, जिसमें 70 हजार लोग एक साथ नमाज पढ़ सकेंगे। यही शायद दक्षिण एशियाई मुसमलानों का खिलाफा (केन्द्र) होगा, जिसमें अनुमानत: 100 से 200 मीलियन पाउंड की लागत लगेगी।अमरीका के “काउन्टर टेरर एजेन्ट” जान लैन्ड्स ने 1998 में इस्लाम स्वीकारने के बाद 1999 में तबलीगी जमाअत से संपर्क किया था। टाइम्स को अपनी रपट में जॉन लैन्ड्स ने कहा-“जब मैंने संपर्क किया तो उन्होंने छह-सात लोगों की एक छोटी सी टोली के साथ यात्रा पर भेज दिया। जब मैंने इस्लामी कार्यों के बारे में व्यग्रता दिखाई तो मुझे पहले दिल्ली बुलाया, फिर पाकिस्तान के एक मदरसे में भेज दिया, जहां से मैं थोड़े ही दिनों में तालिबान तक पहुंचा और अंतत: रूस के खिलाफ जिहाद में हिस्सा लिया। यह सब जानते हैं कि जमाअत, तबलीग (मजहब प्रसार) के नाम पर जिहादियों का संरक्षण कर रही है। ऐसी स्थिति में आतंकवाद के खिलाफ लड़ने वाले देशों के लिए जरूरी हो जाता है कि एशियाई अथवा यूरोपीय देशों में चलने वाले उन सभी संगठनों पर प्रतिबंध लगाया जाए, जो अलकायदा और तालिबान को श्रमिकों की आपूर्ति कर रहे हैं।”पश्चिमी मीडिया के विश्लेषक एलेक्स एलेक्जेव ने बताया है कि पाकिस्तानी मूल के अमरीकी युवक ईमान फरास को जब “ब्रुक्लीन ब्रिज” ध्वस्त करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया, तो उसने बताया कि विगत बीस वर्षों में तबलीगी जमाअत का काम करने का तरीका बदला है। इनके पास यात्रा सुविधाओं के कानूनी कागजात होते हैं, जिनमें साधारण परिवर्तन से व्यक्ति एक से दूसरे स्थल पर आगे बढ़ता रहा है। जमाअत स्वयं में आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की तरह है और सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इसका अपना कोई सांगठनिक साहित्य भी नहीं छपता। सारे काम जुबानी होते हैं। ईमान को बीस वर्ष कारावास की सजा मिली है।भारत में तबलीगी जमाअत की गतिविधियों का अध्ययन संभवत: दिसम्बर तक पूरा हो जाएगा। कई चिन्तक, संगठन, खुफिया विभाग और मजहबी विद्वान देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी के तहत इस अध्ययन की मुख्य बातें आने वाले अक्तूबर माह से जारी करेंगे। इस संगठन का हर व्यक्ति अपनी शक्ति का प्रदर्शन “हजरत जी” के नाम पर करता है। हजरत जी के एक बुलावे पर लाखों मुसलमान इकट्ठे हो जाते हैं।26
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