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जो पाया था, गंवा दिया
-यशवन्त सिन्हा, पूर्व विदेशमंत्री
वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व विदेश मंत्री श्री यशवन्त सिन्हा ने हवाना में भारत-पाकिस्तान संयुक्त वक्तव्य पर जारी अपने बयान में कहा है कि सीमा पार आतंकवाद, जम्मू-कश्मीर और सियाचिन पर भारत सरकार की नयी नीति से हम पूरी तरह असहमत हैं। यह संयुक्त बयान आतंकवाद के मुद्दे पर भारत का पाकिस्तान के सम्मुख पूरी तरह से आत्मसमर्पण दर्शाता है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय और पाकिस्तान के साथ लम्बे समय से आतंकवाद के विरुद्ध चल रहे प्रयासों की उपलब्धि को इसने एक ही झटके में खत्म कर दिया।
6 जनवरी, 2004 को इस्लामाबाद में प्रधानमंत्री वाजपेयी और जनरल मुशर्रफ के बीच बैठक के बाद जारी संयुक्त प्रेस वक्तव्य में प्रधानमंत्री वाजपेयी ने स्पष्ट कहा था कि बातचीत की प्रक्रिया आगे चलाए रखने के लिए हिंसा, शत्रुता और आतंकवाद पर पूरी तरह से लगाम लगनी चाहिए। इसके जवाब में राष्ट्रपति मुशर्रफ ने वाजपेयी जी से वायदा किया था कि वह पाकिस्तानी जमीन से किसी भी तरह के आतंकवाद को समर्थन देने की इजाजत नहीं देंगे। राष्ट्रपति मुशर्रफ के इस स्पष्ट बयान के बाद भारत समग्र बातचीत शुरु करने को तैयार हुआ था। उस बयान में यह चेतावनी निहित थी कि आतंकवाद, हिंसा, शत्रुता और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते।
श्री सिन्हा ने आगे कहा है कि मई, 2004 में सत्ता में आई वर्तमान सरकार पर यह जिम्मेदारी थी कि वह पाकिस्तान को उसके उस वायदे पर बनाए रखती। दुर्भाग्य से संप्रग सरकार ने पाकिस्तान समर्थित सीमापार आतंकवाद के प्रति एक लचीला रूख अपनाया। 18 अप्रैल, 2005 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राष्ट्रपति मुशर्रफ के बीच बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में दोनों नेताओं ने कहा था कि वे शांति प्रक्रिया पर आतंकवाद को हावी नहीं होने देंगे। लेकिन जिस बात का हमें डर था वह सामने दिख रही है। उसके बाद से ही पाकिस्तान ने वायदे तोड़े, भारत में विभिन्न स्थानों पर लगातार आतंकवादी हमले हुए, घुसपैठ बढ़ी, पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादी ढांचा नष्ट नहीं किया गया और इन गतिविधियों से पाकिस्तान अपने को अलिप्त बताता रहा। इस पृष्ठभूमि में जुलाई, 2006 में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की बातचीत टाल दी गई। मुम्बई बम विस्फोटों और हवाना संयुक्त बयान के बीच जो एकमात्र चीज हुई है वह है मालेगांव में बम विस्फोट। बातचीत की प्रक्रिया आगे बढ़ाने के पीछे जो कारण बताया गया है, वह है आतंकवाद की समस्या से निपटने के लिए संयुक्त तंत्र जो भारत द्वारा सुझाया गया और पाकिस्तान द्वारा स्वीकारा गया।
प्रधानमंत्री सोचते हैं कि मौजूदा परिस्थियों में भारत इससे बढ़िया कुछ और नहीं पा सकता था। हम उनके इस विश्लेषण से पूरी तरह असहमत हैं। प्रधानमंत्री खुश हैं कि मुशर्रफ ने गुजरे को भुलाकर भविष्य में साथ काम करने का वायदा किया है। प्रधानमंत्री कहते हैं कि राष्ट्रपति मुशर्रफ ने उन्हें आश्वस्त किया है कि आतंकवाद फैलाने में पाकिस्तान का कोई हाथ नहीं है। उनका यह कहना कि पाकिस्तान भी आतंकवाद से पीड़ित है, समझ से परे है। सीमापार आतंकवाद का प्रसारक इस साझा बयान के जरिए आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में सहयोगी बन गया है।
पूर्व विदेश मंत्री श्री सिन्हा कहते हैं कि समग्र बातचीत की प्रक्रिया के तहत आतंकवाद दोनों देशों के बीच वार्ता का एक मुद्दा है। ये वार्ताएं दोनों देशों के गृह सचिवों के स्तर पर होती हैं। आतंकवाद से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दे विदेश सचिवों द्वारा भी देखे जा सकते हैं। आज भी अपने आतंकवादी तंत्र को बनाए रखने वाले भारत के आतंकवादियों को सौंपने से इनकार करने वाले और आतंकवादी संजाल को आर्थिक और रणनीतिक समर्थन देने वाले पाकिस्तान के साथ कोई संयुक्त तंत्र शुरु होने से पहले ही उसका असफल होना ही निश्चित है।
संयुक्त बयान में जम्मू और कश्मीर, सियाचिन और सर क्रीक का उल्लेख गैर जरूरी था। ये मुद्दे समग्र बातचीत की प्रक्रिया में पहले ही देखे जा रहे हैं और इनके महत्व को इस तरह से और बढ़ाना जरूरी नहीं था। हम फिर कहना चाहेंगे कि सियाचिन का मुद्दा बहुत सावधानी से देखा जाना चाहिए और सेना की चिन्ताओं को भी ध्यान में रखना चाहिए। हम इन महत्वपूर्ण राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर सरकार के समर्पण पर चुप नहीं बैठने वाले हैं।
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