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विचार-गंगा

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Jan 10, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 10 Jan 2006 00:00:00

पं. नेहरू का जन्मदिन यूं मनाया कांग्रेस ने

बाल दिवस या “बाल-उत्पीड़न दिवस”?

-गोपाल सच्चर

कांग्रेस के नेताओं के व्यक्तिगत प्रचार के लिए सरकारी तंत्र का बड़े स्तर पर दुरुपयोग यद्यपि एक कांग्रेसी परम्परा सी बन चुकी है, किन्तु 14 नवम्बर को पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्मदिन मनाने के लिए कांग्रेस के नेतृत्व में काम कर रही जम्मू-कश्मीर की गठबंधन सरकार ने पुराने सभी चापलूसी के मापदण्डों को पीछे छोड़ दिया। इसका निशाना बने हजारों स्कूली बच्चे, जिन्हें न केवल भेड़-बकरियों की भांति बसों में भरकर लाया गया, अपितु सारा दिन उन्हें धूप में भूखा-प्यासा रखा गया। भूखे-प्यासे बच्चों से तपती धूप में पं. नेहरू की याद में नारे लगवाए गए।

पं. जवाहरलाल नेहरू की जयंती धूमधाम से मनाने के लिए कई दिन पूर्व सत्ताधारी नेताओं तथा अन्य अधिकारियों की एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाई गई और जम्मू संभाग के सभी सरकारी तथा गैर-सरकारी स्कूलों के प्रधानाचार्यों और अधिकारियों को मुख्य शिक्षा अधिकारी की ओर से एक आदेश भेजा गया। इसमें कहा गया कि वे अपने खर्चे पर सभी बच्चों तथा अध्यापकों को जम्मू के मौलाना आजाद स्टेडियम लाएं। आदेश में यह भी कहा गया कि इस कार्य को प्राथमिकता के आधार पर किया जाए। इस आदेश के पश्चात् सभी सरकारी अधिकारियों के अतिरिक्त कांग्रेसी नेताओं ने भी सम्बंधित अधिकारियों के साथ मिलकर विद्यार्थियों को जम्मू लाने के लिए पूरा जोर लगा दिया।

14 नवम्बर को विद्यार्थियों को एक बजे तक जम्मू के मौलाना आजाद स्टेडियम में पहुंचने के आदेश थे, किन्तु कई स्कूलों के बच्चे वहां प्रात: 9 बजे ही ले जाकर बिठा दिए गए। दूर-दूर के स्कूलों से विद्यार्थी बसों में भरकर 2 से 2.30 बजे तक लाए जाते रहे जबकि स्टेडियम के सभी प्रवेश द्वार जुटाई गई भारी भीड़ के कारण 1 बजे ही बंद कर दिए गए थे। इस कारण चारों ओर सड़कों पर भारी अफरा-तफरी मची। कितने ही मासूम छात्र-छात्राएं बदहवास से अपने साथियों की खोज में भटकते रहे। कई तो बुरी तरह रोते देखे गए। यातायात भी अस्त-व्यस्त रहा।

इस समारोह को मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष तथा शिक्षा मंत्री पीरजादा मोहम्मद सईद ने सम्बोधित किया, जिसमें जमकर नेहरू तथा उनके परिवार का गुणगान किया गया। स्कूली बच्चों के साथ-साथ उनके अभिभावक दिनभर दु:खी रहे, क्योंकि उन्हें सुबह ही बसों में भरकर जम्मू लाया गया था। दूर-दूर से आए ये बच्चे भूखे-प्यासे रात को देर से घर पहुंचे। इतना ही नहीं, मंत्रियों, सरकारी अधिकारियों की कारों की काफिले बगल के ही फुटबाल स्टेडियम में खड़े किए गए थे। इसके कारण वह पूरा मैदान खराब हो गया। 25 नवम्बर से वहां एक राष्ट्रीय स्तर की फुटबाल प्रतियोगिता होनी है। मगर मैदान के खराब हो जाने के बाद प्रतियोगिता के आयोजक बदहवास दिखाई दे रहे हैं कि आखिर खेल हो पाएगा या रद्द करना पड़ेगा। कई स्थानीय पत्रों ने सरकार तथा कांग्रेसी नेताओं के इस “तमाशे” की कड़ी आलोचना की और कहा कि ऐसा तो तानाशाहों के युग में भी नहीं होता था।

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक प. पू. श्री गुरुजी ने समय-समय पर अनेक विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। वे विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने पहले थे। इन विचारों से हम अपनी समस्याओं का समाधान ढूंढ सकते हैं और सुपथ पर चलने की प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं। इसी उद्देश्य से उनकी विचार-गंगा का यह अनुपम प्रवाह श्री गुरुजी जन्म शताब्दी के विशेष सन्दर्भ में नियमित स्तम्भ के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। -सं

पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका

समाचार-पत्र तो जनजीवन का प्रतिबिंब मात्र हैं। समाज की सब बुराइयां समाचार-पत्रों में शीघ्र ही प्रकट होती हैं। आज हम राजनीति तथा भौतिकवाद को बहुत महत्व देते हैं। इन बातों ने हमारी सब शक्तियों को ग्रस लिया है। अर्थात् इसी का बढ़ा-चढ़ा प्रतिबिंब हम समाचार पत्रों में पाते हैं। हमारे समाचार-पत्र खलबली मचाने तथा पाप एवं अपराध-कथाओं की जुगाली करते रहने में गर्व का अनुभव करते हैं। इस वृत्ति में आमूलाग्र परिवर्तन आवश्यक है। राजनीतिक और आर्थिक पहलुओं तथा उन क्षेत्रों में कार्य करने वाले व्यक्तियों को अत्यधिक महत्व देने एवं उन्हें आदर्श पुरुषों के रूप में चित्रित करने की अपेक्षा यदि परमेश्वर तथा मानवता की सेवा करने वाले व्यक्तियों को अधिक महत्व देते हैं, तो पत्रकारों द्वारा देश की महान सेवा होगी। इन ईश्वर-भक्तों के पास या मानवता के सेवकों के पास कदाचित चमक-दमक नहीं होगी, परंतु उनके जीवन निष्कलंक और शुद्ध रहते हैं। वे नि:स्वार्थ भाव से अथक क्रियाशील रहते हैं। उनका अनुकरण होना चाहिए। (साभार: श्री गुरुजी समग्र : खंड 11, पृष्ठ 360)

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