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कश्मीर हाथ से निकल रहा है
तरुण विजय
कश्मीर लगभग हाथ से निकल चुका है, यह कहने का अर्थ है कि भले ही भारत के सर्वेक्षण विभाग द्वारा छापे जाने वाले नक्शों में वह एक कटे-फटे हिस्से की तरह कायम रहे लेकिन न तो माइक्रोसाफ्ट द्वारा भारत सरकार को बेची गई लाखों कम्प्यूटर मशीनों में पूरा कश्मीर बन सका है, न ही साउथ ब्लाक में पूरे कश्मीर को फिर से भारत का हिस्सा बनाने की इच्छा बची है। बात शुरू होती है 1993 से जब अमरीका के एक तथाकथित शान्ति प्रतिष्ठान में कश्मीर की चर्चा हुई। 1993 में जब मैंने यह रपट लिखी थी तो विश्वास नहीं था कि इस पर इतनी गंभीरता और लगन के साथ क्रियान्वयन शुरू हो जाएगा। इनमें दिल्ली के वे लोग शामिल हैं जिनके पास पद, यश, पैसा, सम्पत्ति और प्रतिष्ठा है। इन सब लोगों ने पाकिस्तान के पूर्व सैन्य अधिकारियों के साथ मिलकर तय किया कि अगर कश्मीर भारत के सर का दर्द बनता है तो उस सर को ही कलम कर दिया जाए। अभी एक पाकिस्तानी राजनयिक की पार्टी में कांग्रेस के नेता मिले, जो कश्मीर से हैं। वे बोले, “अरे तरुण जी, आप आर.एस.एस. वाले चिन्ता क्यों करते हो? नक्शे में तो कश्मीर आपका ही रहेगा, जितनी मर्जी हो छापते ही रहना। वैसे भी कश्मीर से इंडिया का कितना लेना-देना है। इंडियन लोग हनीमून के लिए कश्मीर आते हैं, तो मोस्ट वेल्कम! हमने उन्हें न पहले कभी परेशान किया है, न अब करेंगे। हम वायदा करते हैं कि आप सिंगापुर, मलेशिया से ज्यादा हमारे यहां खिदमत पाएंगे।”
मैंने कुछ दिन पहले महबूबा मुफ्ती के साथ एक लम्बा इन्टरव्यू किया था। महबूबा की इसलिए मैं कद्र करता हूं क्योंकि एक संकीर्ण मुस्लिम समाज में उन्होंने आगे बढ़ने की हिम्मत दिखाई है। कुछ बात छिपाती नहीं हैं और भारत के प्रति विशेष लगाव के साथ अपनी बात कहती हैं। उन्होंने कहा, “पहले कश्मीर के लोग इंडिया के बारे में सोचते थे तो उनके दिमाग में इन्दिरा गांधी की तस्वीर उभरती थी। अब जब इंडिया के बारे में सोचते हैं तो उनके दिमाग में बी.एस.एफ. की बंदूकें उभर कर आ जाती हैं।” जब महबूबा यह कह रही थीं तो मुझे स्पष्ट हो रहा था कि कश्मीर और इंडिया दो पृथक पहचानें बन चुकी हैं। कश्मीर के बारे में अब पूरी तरह से वही हो रहा है जो अमरीका चाहता है। इसके निम्नलिखित पहलू हैं-
1. दिखावटी तौर पर अधिकृत रूप से कश्मीर नक्शों में वैसा ही रहेगा जैसा आज दिखाया जाता है। यानी माइक्रोसाफ्ट और अमरीका के नक्शों में दो तिहाई कश्मीर पाकिस्तान के अन्तर्गत और एक तिहाई भारत के अन्तर्गत, जिसमें स्पष्ट रूप से कभी भी यह नहीं लिखा जाता कि कश्मीर भारत का हिस्सा है, बल्कि सरसरी तौर पर दो पंक्तियां लिखी हुई होती हैं कि कश्मीर का यह हिस्सा भारत द्वारा प्रशासित है और वह हिस्सा पाकिस्तान द्वारा।
2. नियंत्रण रेखा पर भारत और पाकिस्तान की सेनाएं ढिलाई बरतेंगी। बस सेवा द्वारा दोनों ओर के कश्मीरी नागरिकों के आने-जाने को बढ़ावा दिया जाएगा। कश्मीर सिर्फ मुसलमानों का है, जहां अमरीकी उपस्थिति कश्मीरी मुसलमानों की सुरक्षा और स्वायत्तता के लिए आवश्यक है, इस प्रस्थानबिन्दु से आगे की योजनाएं निर्धारित हो रही हैं।
3. भारत द्वारा “प्रशासित कश्मीर” में भारतीय मुद्रा और थोड़े बहुत कानूनों का चलन रहेगा परन्तु न तो भारतीय संविधान पूरी तरह से लागू होगा, न ही भारतीय कर-प्रणाली तथा सर्वोच्च न्यायालय के सभी आदेश।
4. भारत “प्रशासित” कश्मीर और पाकिस्तान के कब्जे वाला गुलाम कश्मीर धीरे-धीरे एक मुस्लिम राज्य के रूप में विकसित किए जाएंगे और जब तक राष्ट्रवाद विरोधी एवं भारतीय भौगोलिक अखण्डता के प्रति नरम और भारतीय सांस्कृतिक विरासत के प्रति शर्मिंदा सोनिया-मनमोहन सिंह-वामपंथी सरकार रहेगी तब तक इस योजना को आगे बढ़ाया जाना आसान होगा। यह काम तब और भी ज्यादा आसान हो जाता है जब विपक्ष के नेता और सांसद पद, पैसे और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के लिए बिकने हेतु तैयार हों। यह तो वह स्थिति है जब कि देशभक्ति की आवाज उठाने के लिए भी कीमत मांगी जाती है।
जिन आंखों ने 1947 में भारत-विभाजन को देखा है उनसे पूछिए कि जब देश के विभाजन का फैसला किया गया था तो उन्हें विश्वास हुआ था? उसी तरह कश्मीर भी भारत से व्यावहारिक तौर पर अलग हो जाएगा, हम और आप सिर्फ देखते रहेंगे। वे पार्टियां जिनको हमने अपने कन्धे दिए थे, सिर्फ अपने अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव में व्यस्त रहेंगी, क्योंकि उनकी कोठियों की सुरक्षा का सवाल देश की सुरक्षा से ज्यादा महत्वपूर्ण हो उठा है।
कश्मीर इस समय “यूनाइटेड स्टेट आफ कश्मीर” बनने की राह पर चल पड़ा है। जब अमन सेतु के पार बस चलाई गई और हुर्रियत के लोग मुजफ्फराबाद और इस्लामाबाद का सफर कर लौटे तो अमन सेतु के कोने पर एक बोर्ड लगा हुआ था, जिस पर लिखा था “वेल्कम इन यूनाइटेड स्टेट ऑफ कश्मीर।” इसके साथ ही एक झण्डा छपा हुआ था, जो दूर से देखने पर अमरीका का झंडा लगता था, लेकिन उसके एक किनारे पर चांद-सितारे का निशान उसे एक मुस्लिम राज्य की कल्पना देता था। यूनाइटेड स्टेट आफ कश्मीर को अमरीका का समर्थन मिला है, यह खबर पाकिस्तान के प्रमुख अंग्रेजी दैनिक “द नेशन” ने 8 दिसम्बर को छापी थी। इसके अन्तर्गत भारत “प्रशासित” और पाकिस्तानी कब्जे वाले गुलाम कश्मीर में निर्बाध आना-जाना होगा, वीसा, पासपोर्ट पर ज्यादा जोर नहीं दिया जाएगा, शेख अब्दुल्ला के समय चली परमिट व्यवस्था से ही काम चलाया जाएगा, भारत और पाकिस्तान की सरकारों का इन दोनों “कश्मीरों” पर न्यूनतम प्रभुत्व रहेगा, नियंत्रण रेखा से जवानों की वापसी होगी, जड़-हीन तथा जनाधार-विहीन अमरीकी पालतू हुर्रियत को बढ़ावा दिया जाएगा ताकि वह अक्षरश: वही करती रहे, जो अमरीका चाहता है। भारत के सेकुलर एवं हिन्दुत्व विरोधी झण्डाबरदार पत्रकारों, अखबारों तथा सम्पादकों को अपने प्रभाव में कर यह “लाइन” चलाई जाएगी कि जो भी हो रहा है उसके परिणामस्वरूप कश्मीर में शान्ति स्थापित होगी, सेना पर खर्च होने वाले करोड़ों रुपए बचेंगे, जो गांवों में नल, विद्यालय, नालियां बनाने में काम आ सकेंगे। सच्चाई के तौर पर एक ऐसा हिन्दू-विहीन मुस्लिम प्रभुत्व वाला एवं अमरीका का पालतू पाकिस्तानपरस्त कश्मीर उभर कर आएगा, जो मध्य एशिया में चीन का सामना करने के लिए अमरीकी सामरिक नीति का मंच बनेगा, भारत कश्मीर-विहीन लेकिन नक्शे में खोखले कश्मीर वाला देश बन कर रह जाएगा।
(इस सन्दर्भ में अन्य विचार पृष्ठ 4-5 पर)
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