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पंजाब में भारतीय जवान अपनों के बीच होते हैं, लेकिन पूर्वोत्तर की सीमा पर तो सब गैर ही दिखते हैं

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Nov 12, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Nov 2005 00:00:00

प्रतिनिधिसेन्टर फार पालिसी स्टडीज, चेन्नै के निदेशक एवं सुप्रसिद्ध जनसांख्यिकविद् डा. जितेन्द्र बजाज हाल ही में भारत-बंगलादेश सीमान्त क्षेत्रों के सघन दौरे पर गए थे। उत्तर दिनाजपुर से सटी सीमा रेखा पर 5 कि.मी. क्षेत्र की उन्होंने पैदल यात्रा की और इस दौरान जो देखा, उन्हें भीतर तक झकझोर गया।बिहार के किशनगंज से उनकी यात्रा शुरू हुई थी। किशनगंज उत्तर में नेपाल तथा पूर्व में दार्जिलिंग व उत्तर दिनाजपुर से सटा हुआ है। उत्तर दिनाजपुर का एक बहुत बड़ा भाग पूर्व में बंगलादेश से मिलता है। किशनगंज जिले में 68 प्रतिशत मुस्लिम हैं, जबकि उत्तर दिनाजपुर में 47 प्रतिशत। डा. बजाज बताते हैं कि उत्तर दिनाजपुर में कुछ क्षेत्रों के नाम तो हिन्दू हैं जैसे धर्मपुर, गोलपोखर और देबीगंज, लेकिन सड़क या बाजार में शायद ही कोई हिन्दू दिखता है। वहां से बंगलादेश सीमा की ओर जाने वाली 10 किमी. लम्बी सड़क पर गाय और बैलों की आश्चर्यजनक रूप से बहुत अधिक संख्या दिखाई दी। सीमा सुरक्षा बल के एक जवान के अनुसार तस्करी के जरिए इन पशुओं को बंगलादेश ले जाया जाता है। सीमा पर कंटीली तारों की दो समानान्तर लम्बी बाड़ हैं, जो बहुत ऊंची और सुरक्षित नहीं हैं। जवानों ने बताया कि कोई भी इसके आर-पार आसानी से आ-जा सकता है और ऐसा ही होता रहा है। हर 1.5 किमी. की दूरी पर एक जवान गश्त करता है। रोज 6 घंटे की उनकी डूटी होती है और हर जवान दिन में दो शिफ्ट करता है। गश्त के लिए वे साइकिल प्रयोग करते हैं। डा. बजाज के अनुसार डूटी करने की यह उबाऊ पद्धति और कठिन मेहनत जवानों को अब अटपटी नहीं लगती। डा. बजाज बताते हैं, “जिन जवानों से हम मिले वे यहां आने से पहले पंजाब सीमा पर तैनात थे। पंजाब सीमा पर जवानों को सुविधाएं ज्यादा हैं और वहां चौकियां आदि भी बेहतर, स्थायी और सुरक्षित हैं। लेकिन फिर भी यहां इन जवानों को कोई खास दिक्कत जैसी महसूस नहीं होती क्योंकि उन्हें इन मुश्किलों की आदत हो चली है। उन्हें परेशान कुछ और बात ही किए रहती है, यहां न तो मशक्कत है, न सुविधाओं की कमी, पर दिक्कत है यहां आस-पास के लोग जिनके बीच में वे रहते हैं।”वे जिस जवान से भी मिले उसमें आस-पास के लोगों के व्यवहार को लेकर बहुत क्रोध था। सभी का कहना था कि पंजाब में तो वे अपने ही लोगों के बीच रहते हैं लेकिन यहां तो सब अजनबी हैं। उनसे बातचीत से पता चलता है कि वे जिस जगह तैनात हैं वह उन्हें अपने दुश्मनों से भरी दिखती है। वे जब किसी को बाड़ लांघते हुए पकड़ते हैं तो आस-पास के सब लोग बड़ी संख्या में इकट्ठे होकर चीखते-चिल्लाते हैं कि पकड़ा गया व्यक्ति उनका अपना ही कोई है। लेकिन जब कोई सीमा पार करते हुए मारा जाता है तो मारे गए व्यक्ति की मृत देह तक लेने कोई नहीं पहुंचता, न तो सीमा के इधर के लोग, न उधर के। ऐसे विरोधियों के बीच काम करना जवानों में बहुत तनाव पैदा कर रहा है। कोई जवान आखिर उस सीमा की रक्षा कैसे करे जहां उसके विरोधी और उसके प्रति शत्रु भाव रखने वाले लोग बसे हों? कोई देश ऐसी सीमा की रक्षा कैसे करे जब दूसरी ओर के लोग भीतर तक घुसपैठ किए हों?प्रतिनिधिNEWS

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