उत्तरकाशी-गंगोत्री-गोमुख
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उत्तरकाशी-गंगोत्री-गोमुख

by
Oct 7, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Oct 2005 00:00:00

इस रास्ते का हर पड़ाव तीर्थ है-तरुण विजयसभी छायाचित्र: तरुण विजयपहाड़ की हिमानी ऊंचाइयों पर खिले बुरांस के सुन्दर फूल। यह, वनौषधि भी है और बुरांस का शर्बत भी बनता है।बस यूं ही बैठे-बैठे हम चल पड़े थे या कहा जाए कि किसी दैवी शक्ति ने यूं हाथ बढ़ाया और यहां बुला लिया। बीनू भाईसाहब (वीरेन्द्र प्रताप सिंह बिष्ट, एशिया की प्रसिद्ध प्रताप नर्सरी और फार्म के मालिक) कहने लगे मैंने नई टाटा सफारी खरीदी ही है, किसी लम्बे सफर पर चलना है तो बताओ कहां चलें। मैंने कहा उत्तरकाशी, गंगोत्री की तरफ चल पड़ते हैं। देखते हैं कहां तक जा पाएंगे। कई साल से उत्तरकाशी में सेवाश्रम का काम भी देखने की इच्छा अधूरी ही रही है। डा0 नित्यानंद जी, जिन्होंने मुझे बाल्यकाल से स्वयंसेवक होने और संघ कार्य में बढ़ने की दीक्षा दी तब से जब मैं तीसरी कक्षा में था, इन दिनों उत्तरकाशी से 18 किमी0 आगे मनेरी में सेवाश्रम के माध्यम से पूरे क्षेत्र की सेवा कर रहे हैं। बस आज बात हुई तो कल हम निकल पड़े। साथ में अम्मा और भाभी भी थीं। 248 किमी0 यूं भी ज्यादा होते नहीं। लेकिन पहाड़ में मैदान का हर किमी0 दसगुना बड़ा हो जाता है। चलते ही चले, रास्ता खत्म होता ही नहीं दिखता और वैसे बात तो सच यह भी है कि रास्ता खत्म हो यह इच्छा भी नहीं होती।सेवाश्रम के प्रणेता ऋषि डा. नित्यानंदऋषिकेश से उत्तरकाशी 148 किमी0 है। नरेन्द्र नगर, चम्बा और टिहरी बांध होते हुए उत्तरकाशी पहुंचते-पहुंचते 4 बज गए थे। मन में कल्पना थी कि यह जगह पहाड़ी मकानों से घिरी भागीरथी की कलकल से गूंजती होगी, लेकिन शहर में घुसते ही तीतर-बीतर बने मकान, सड़कों पर पसरी जा रही दुकानें, पान, बीड़ी, सिगरेट के खोखे, देसी दारू से लेकर अंग्रेजी तक की दुकानें, तम्बाकू, गुटका, प्लास्टिक, गंदी सड़कें और हर दुकानदार बस इस अंतिम इच्छा से परेशान कि जो भी ग्राहक आए वह लेकर कुछ जाए या न जाए पर उसे मालामाल कर जाए। बहरहाल उत्तरकाशी की भीड़भाड़ भरे बाजार, पर्यटकों, तीर्थयात्रियों और वगैरह-वगैरह के शोर से गुजर हम मनेरी तक बढ़े। बीच-बीच में पूछते रहे। जहां भी पूछते, हरेक ने कहा अच्छा सेवाश्रम! आप सीधे चले जाएं वहां आपको रास्ते में ही बड़ा बोर्ड मिलेगा। वहां हमारी बुरांस के शर्बत के साथ प्रतीक्षा ही हो रही थी। सेवाश्रम का जन्म मानों प्रकृति के प्रकोप को शांत करने, जन-मन के दुख पर तेज, तप, अध्यात्म और सेवा की मल्हम लगाने के लिए ही हुआ होगा। 20 अक्तूबर 1991 को उत्तरकाशी में आया भूकंप चारों तरफ तबाही का माहौल बन गया था।सेवाश्रम परिसर में भाऊराव देवरस भवनसेवाश्रम का एक छात्र नवनीतदुनिया भर में उत्तरकाशी का नाम पहुंचा, मदद भी आई और रा0स्व0संघ के समर्पित कार्यकत्र्ताओं ने पहले दिन पहले क्षण से सेवा कार्य को जो हाथ में लिया वह अनवरत चल रहा है। उस समय संघ के कार्यकत्र्ताओं ने उत्तरांचल दैवी आपदा पीड़ित सहायता समिति का गठन किया था। इसने डेढ़ करोड़ रुपए एकत्र किए जिसकी सहायता से 427 भूकंप रोधी मकान बनाकर उत्तरकाशी जिले के दस गांवों में पीड़ितों को बांटे गए। उस समिति ने कालांतर में सेवाश्रम का रुप लिया और समाज में नव चैतन्य फैलाने का काम किया।इस सब सेवा कार्य और चेतना जागरण के प्रणेता ऋषि थे डा0 नित्यानंद जी। गढ़वाल विश्वविद्यालय में भूगोल के प्रोफेसर और रीडर रहे और अवकाश प्राप्ति के बाद वह पूर्ण समय सेवा कार्य में ही जुटे। डा0 हेडगेवार का समाज परिवर्तन का क्रांति सूत्र उन पर इस कदर छाया था कि वे जीवन भर अविवाहित रहने का संकल्प लेकर भूगोल पढ़ाते हुए भी शेष समय संघ कार्य के लिए ही देते रहे। उनके मार्गदर्शन में 1993 में भागीरथी क्षेत्र में ग्रामीण विकास का कार्य शुरु हुआ जिसके अन्तर्गत गांव-गांव में नशाबंदी, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा ,संभावित ग्रामीण विकास, सामाजिक समरसता और आत्मनिर्भरता, आपसी मेल -जोल और भाई चारे से मुकदमेबाजी का अंत जैसे कार्यक्रम शुरु किए गए।उत्तरकाशी के पास मनेरी में बना है यह सेवाश्रम। चित्र में छात्रावास, अतिथि कक्ष एवं साधना कुटी की एक मनोरम छवि।आज इस क्षेत्र में समिति द्वारा 12 सरस्वती शिशु मंदिर(1625 छात्र),3 सरस्वती विद्या मंदिर(254 छात्र),23 एकल विद्यालय(896 छात्र), 2 छात्रावास(77 छात्र),2 कम्प्यूटर केन्द्र(72 छात्र), 2 सिलाई प्रशिक्षण केन्द्र(18 छात्र), 1 टाइपिंग केन्द्र(6 छात्र)तथा औषधि प्रशिक्षण केन्द्र, पुस्तकालय, स्कूल बैग उत्पादन निर्माण केन्द्र, सचल चिकित्सालय, पैदल तीर्थयात्रियों के लिए निशुल्क आवासीय एवं भोजना सुविधा, जल संरक्षण कार्यक्रम तथा अंग्रेजी दवाईयों की डिस्पेंसरी चलाई जा रही है। इस कार्य में उत्तरांचल प्रदेश का शायद ही ऐसा कोई सेवाभावी कार्यकत्र्ता होगा जिसने सहायता नहीं की हो। स्कॉलर्स होम के संस्थापक श्री के0एल0खन्ना, सुप्रसिद्ध वित्त सलाहकार(सीए) दिनेश गुप्ता सहित अनेक संस्थाओं ने इस सेवा कार्य को आगे बढ़ाया है। इस क्षेत्र में सेवा के अनेक महत्वपूर्ण कार्य और भी प्रारंभ किए जा रहे हैं। सहायता के इच्छुक व्यक्ति इस पते पर सम्पर्क कर सकते हैं-श्री दिनेश गुप्ता, 10 कान्वेंट रोड, देहरादून-248001। भागीरथी के तट पर सेवाश्रम ऐसा केन्द्र है जहां हर सुबह खिड़की खुलते ही भागीरथी के कलकल प्रवाह का दैवी दर्शन होता है। दूर-दूर तक मीलों से कोई आवाज नहीं आती सिवाय भागीरथी की कलकल, पक्षियों की चहचहाहट और देवलोक से स्पर्श करके आती हुई शीतल हवा के झोंको की। यह पूरा क्षेत्र अपूर्व वन औषधि, फलों और फूलों का भंडार है। वैसे भी बीनू भाईसाहब पूरे एशिया में वन औषधि, फूल, फल, पौधों के विशेषज्ञ माने जाते हैं। मनेरी से आगे चले तो फाणो, भट की दाल, चुरकाणी, आरसा, बुरांस और एसालु की कथा ने हमें गढ़वाल का नया आत्मीय दर्शन कराया।(जारी)NEWS

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