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-माधव कौशिकफिर बजी घंटीमोइबल फोन कीअब हथेली मेंसभी संवेदनाएं धंस रही हैंशक्तियां बाजार कीअपना शिकंजा कस रही हैंअब जरूरत ही नहींवाचालता को मौन कीवर्जनाओं की चट्टानेंरेत बन कर ढह रही हैंऔर एस एम एस के जरिएभावनाएं बह रही हैंजिंदगी पर्याय बन कररह गई रिंग टोन
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