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अपनी कुल्हाड़ी, अपना पांवसंसार में भारत अकेला ऐसा देश है, जहां अभारतीयों की संख्या अच्छी-खासी है। दु:खद बात यह है कि ऐसे लोगों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी के साथ राजनीतिकों, पंथनिरपेक्ष व्यक्तियों, तथाकथित बुद्धिजीवियों से लेकर अखबारी और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तथा मानवाधिकार के क्षेत्र में सक्रिय लोगों के बीच इनका वर्चस्व बढ़ रहा है। यहां रहने वाले गैर-भारतीयों का एक और वर्ग भी है जो पहले दिन से ही राष्ट्रीय हित से जुड़ी हर बात का विरोध कर रहा है। यह वर्ग अब भी विदेशी विचार को छाती से लगाए हुए है जबकि इतिहास ने उसके आकाओं के अस्तित्व को ही समाप्त कर दिया है। ये अल्पसंख्यक, बहुसंख्यकों पर शासन चला रहे हैं। वे अपना हिस्सा ले चुके हैं और एक पृथक गृह प्रदेश की मांग के साथ देश को दो भागों में विभाजित कर चुके हैं। तिस पर भी यहां रहने वाले गैर-भारतीय, खुलेआम इस्लाम का परचम लहराने के अपने सपने को पूरा करने के लिए आगामी कुछ दशकों में एक सुनियोजित योजना के तहत अपनी जनसंख्या तेजी से बढ़ाने और बहुसंख्यकों को संख्या बल में कम करने में लगे हैं।हमारे यहां सत्तारूढ़ अभारतीय नेतृत्व भी अपने वोट बैंक की खातिर पूर्वी सीमा से आ रहे घुसपैठियों को देश भर में बसने में सहायता तथा प्रोत्साहन दे रहा है। और अब तो सार्वजनिक रूप से, पश्चिमी सीमा से भी जिहादियों और आतंकवादियों को बिना वीसा या पासपोर्ट के प्रवेश देने की योजना बन रही है। भारत-द्वेष के आधार पर अस्तित्व में आए एक ऐसे देश को खुलेआम निमंत्रण दिया जा रहा है जिसका संप्रदाय दूसरे पंथों को समाप्त करने की शिक्षा देता है।दुनिया का एक पुराना और बेहतर लोकतंत्र, एक भीड़तंत्र में परिवर्तित हो चुका है, जहां दो प्रकार के कानून प्रभावी हैं। एक वर्ग वह है जो बड़े पैमाने पर दंगे, लूटपाट, आगजनी और बलात्कार कराने के साथ कानून निर्माताओं, कानून का क्रियान्वयन करने वाली एजेंसियों और, यहां तक कि न्यायपालिका को भी आतंकित कर सकता है, पर उसे हाथ भी नहीं लगाया जाएगा। दूसरे वर्ग में हम, आप और यहां तक कि अत्यधिक सम्मानीय और सर्वोच्च धर्मगुरु हैं, जिन्हें आधी रात को गिरफ्तार कर कारागार में बंद करके महीनों तक अपराधियों के समान प्रताड़ित किया जाता है और उनकी जमानत भी नहीं होने दी जाती।एक पड़ोसी देश ने भारत पर चार बार हमला किया और हर बार भारत की बहादुर सेना ने दुश्मन को हराया। जबकि हमारे यहां रहने वाले अभारतीय नेतृत्व ने सैनिकों के खून-पसीने से जीती हुई बाजी को बातचीत से हार में तब्दील कर दिया।प्राचीन सभ्यताओं वाला यह देश भारत, इतनी सहस्राब्दियों के बाद भी शांति और अहिंसा में विश्वास रखता है। अपने 12,000 वर्ष से भी लंबे इतिहास में इस देश ने किसी पर हमला नहीं किया और न ही दूसरे देश के विरुद्ध शक्ति का प्रयोग किया। जबकि इस देश ने पिछले एक हजार साल में असंख्य बर्बर हमलावरों का दंश झेला है, जिन्होंने हमारे मंदिरों सहित सभी दृष्टव्य आस्था केन्द्रों को मिटा डालने के प्रयास किए। लगभग एक हजार साल के निष्ठुर आतंक और अपमान के बाद अंतत: 58 वर्ष से हम स्वतंत्र हैं पर, वास्तविक स्वाधीनता की अभी भी प्रतीक्षा है। यहां का अभारतीय नेतृत्व आजादी के पहले दिन से ही अपने पैरों पर आप ही कुल्हाड़ी मारने की योजना में लगा हुआ है। ऐसा लगता है कि मानो भारत पतन के गर्त की ओर बढ़ रहा है और अगर लंबे समय तक ऐसी ही परिस्थिति बनी रही तो उसका अस्तित्व समाप्त हो सकता है। विडंबना यह है कि हजार साल की गुलामी जिसे नष्ट नहीं कर सकी उसके आजादी के सौ साल के भीतर ही नष्ट होने की आशंका है।दुनिया में इतने समर्पण भाव से उपासना करने की संस्कृति शायद ही किसी दूसरे देश की हो। ईश्वर की लीला भी अजीब है जो इसे अभिशाप स्वरूप नष्ट करने में लगा है, जबकि आधी से अधिक दुनिया में आतंक फैलाने वाले बर्बरों को उसने तेल की दौलत दी है। भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में धर्म के संकट में होने पर जन्म लेने का वचन दिया था। अब यहां रहने वाले इन अभारतीयों के कारण इस देश के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है। क्या वे “एक नेता के रूप” में जन्म लेकर हमारे देश के कष्टों को मिटाकर और समस्त अन्यायों को दूर करके हमारे प्यारे देश को समृद्ध, शक्तिशाली और सम्माननीय बनाएंगे?NEWS
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