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संकल्पवान स्त्री के सामने यमराज भी हारता है
यह सही है कि अभावग्रस्त व दीन-हीन लोगों के बीच सेवाकार्य करने के लिए दूर जाने के लिए हमारी अधिकांश माताएं असमर्थ रहती हैं। किन्तु इसका यह भी अर्थ नहीं कि वे सारे समय अपने घरों में ही बैठी रहें। वे अपने पास-पड़ोस के महिला वर्ग से उपयोगी सम्बन्ध स्थापित कर अपने उन विचारों को उनमें प्रतिष्ठित करें, जिन्हें हम उनमें तथा उनके बच्चों पर अंकित करना चाहते हैं। परस्पर सहयोग और सेवा-भाव को दैनन्दिन सामाजिक गतिविधियों के माध्यम से भी लोकप्रिय बनाना होगा। हमारी महिलाओं में आत्म-हीनता अथवा असहायता का भाव उत्पन्न नहीं होना चाहिए। उन्हें अनुभूति होनी चाहिए कि “वे पराशक्ति की जीवन्त प्रतिरूप हैं”।
हमारी अनेक शिक्षित माताओं के पास अतिरिक्त समय व शक्ति होती है जो आधुनिक क्लब आदि की गपशप में व्यर्थ चली जाती हैं। वे इसका सदुपयोग कर सकती हैं। उनके आसपास ऐसे अनेक बच्चे होंगे, जो विद्यालय नहीं जा पाते। वे उन्हें एकत्र कर अपने घर में या किसी अन्य सुविधाजनक स्थान पर कहानी, गीत, खेल इत्यादि सिखा सकती हैं।
आधुनिक वातावरण में भारतीयता को न भूलें
समाज की खिलती पीढ़ी के पालन-पोषण का विशेष दायित्व हमारी माताओं पर है। पालन-पोषण का वास्तविक अभिप्राय क्या है? क्या बच्चों को खिलाना-पिलाना और विद्यालय भेजना मात्र उनका दायित्व है? इसके विपरीत इसका अनिवार्य पहलू है उनमें ठीक संस्कार अंकित करना, यथा- कर्तव्यनिष्ठा, व्यक्तिगत उद्यम की भावना, मातृभूमि के प्रति प्रेम और समाज के लिए तत्परता। हमारी माताओं को चरित्र-निर्माण के इस पहलू की चिन्ता करना अपना प्रथम दायित्व मानना होगा। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु बच्चों के मन: पटल पर सहज प्रभाव छोड़ने वाली छोटी-छोटी बातों के प्रति सतर्कता आवश्यक है।
बचपन की मधुर स्मृतियों का प्रभाव
जब मुझे अपना बचपन याद आता है, तो मैं अनेक सुकोमल व मधुर स्मृतियों में खो जाता हूं। प्रात: उठते ही मुझे घरेलू कामकाज में संलग्न अपनी मां के मुख से हरिनाम तथा स्तोत्रों की मधुर सुरलहरी श्रवण-गोचर होती थी। उन नीरव एवं प्रशान्त प्रभातों में गूंजने वाले मधुर स्वरों का मेरे युवा मन पर कितना गहरा एवं पवित्र प्रभाव पड़ा होगा! इसके विपरीत आज के तथाकथित आधुनिक घरों के वातावरण में माताएं न तो बच्चों को जल्दी उठाती हैं और न ही प्रेरणादायी गीत गाती हैं। सामान्यत: बच्चे फिल्मी गीत सुनते हुए सोते तथा इनकी धुन ही गुनगुनाते उठते हैं। मैंने एक सुशिक्षित युवा गृहणी को रसोई-घर में काम करते समय तथा पालना झुलाकर बच्चे को सुलाते समय निम्नस्तरीय फिल्मी गीत गाते सुना है। अपने माता-पिता का ऐसा व्यवहार देखकर बच्चे निश्चित ही उसका अनुसरण करेंगे।
(विचार नवनीत, पृ. 365)
अभावग्रस्त की सेवा
हम अपने चारों ओर ऐसी अनेक बहिनों को देखते हैं, जो या तो शारीरिक श्रम करती हैं या पूर्णरूपेण असहाय व अपंग होती हैं। ऐसे दृश्य देखकर हमारा ह्मदय करुणा व स्नेह की भावना से द्रवित होना चाहिए। इनकी सहायतार्थ हमें ऐसे प्रकल्प चलाने होंगे, जिनसे उन्हें उचित आजीविका-अर्जन हेतु रोजगार मिल सके। हमारा पावन कर्तव्य है कि हमारे पास-पड़ोस में ऐसी कोई मां-बहिन दिखाई न दे, जो उपक्षित होकर गलियों में पड़ी रहे।
महिलाओं में साक्षरता एक और महत्वपूर्ण अभियान है, जिसे हमारी शिक्षित मां-बहिनें ही चला सकती हैं। परन्तु यहां भी साक्षरता से अधिक ध्यान संस्कारों पर देना होगा। एतदर्थ अपनी मातृभूमि के प्रति समर्पण-भाव, अपने धर्म के प्रति आस्था-विश्वास और अपने इतिहास के प्रति अभिमान जगाना आवश्यक है; पवित्र मातृभूमि के मानचित्र द्वारा अपने नदी, पर्वत, तीर्थ, मन्दिर दिखाकर उन्हें हिमालय से कन्याकुमारी पर्यन्त सम्पूर्ण भारत का दर्शन कराना चाहिए। भाषा, साहित्य, कला और सामाजिक परम्पराओं के क्षेत्रों में भारत की सुसम्पन्न विविधता से भी उनका परिचय कराना चाहिए। इस प्रकार उन्हें राष्ट्र जीवन की सच्ची भावना से आत्मीयता पूर्ण ढंग से ओत-प्रोत कर देशभक्ति की प्रेरणा देनी चाहिए।
सावित्री की आत्मा का आह्वान
मुझे विश्वास है कि यदि माताएं समाजोत्थान का संकल्प कर लें, तो इस लोक या परलोक में ऐसी कोई शक्ति नहीं, जो उन्हें पराभूत कर सके। उनके सामने सावित्री का आदर्श विद्यमान है, जिसके सम्मुख यमराज को भी अपनी पराजय स्वीकार करनी पड़ी थी। ईश्वर करे, उनमें आदर्श के प्रति एकनिष्ठ भक्ति, शुद्ध चारित्र्य और अद्वितीय शौर्य-भाव उत्पन्न हो।
यदि हम एक बार ऐसा कर सके, तो यह निश्चित है कि दीर्घ कालरात्रि का अवसान होगा और केवल भारत ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व तमस् से मुक्त होकर हमारे धर्म की अरुणिम छटा से देदीप्यमान होगा और क्षितिज पर स्वर्णिम आभा के साथ नव विहान का अरुणोदय होगा। हमारे धर्म के विषय में गांधी जी ने भी निम्नलिखित भविष्यवाणी की है- “हिन्दुत्व सत्य की अविश्रान्त अन्वेषणा है और यदि वह आज स्थिर, निष्क्रिय तथा विकास शून्य हो गया है, तो इसका कारण यह है कि हम थक गये हैं। परन्तु, जैसे ही यह थकान दूर होगी, हिन्दुत्व अपनी इत:पूर्व अज्ञात आभा के विस्फोट से विश्व को पुनराच्छादित कर देगा।” (विचार नवनीत, पृष्ठ – 370-371)
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