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हर पखवाड़े स्त्रियों का अपना स्तम्भसुशीला ताईन कभी थकीं, न कभी रुकीं-डा. विद्या देवधर”स्त्री” स्तम्भ के लिए सामग्री, टिप्पणियां इस पते पर भेजें – “स्त्री” स्तम्भ द्वारा,सम्पादक, पाञ्चजन्य,संस्कृति भवन, देशबन्धु गुप्ता मार्ग,झण्डेवाला, नई दिल्ली-55राष्ट्र सेविका समिति के सांस्कृतिक विभाग की अ.भा. प्रमुख के रूप में सुशीला ताई अपने जीवन उद्देश्य को पूर्ण करने में अहर्निश जुटी हुई हैं। जो सपना उन्होंने बचपन में देखा था, तेजस्विनी नारी के नवआह्वान का, उसे साकार करने में ही उन्होंने अपने जीवन को समर्पित कर दिया।सुशीला ताईहर इनसान जीवन के कुछ सपने होते हैं। ये सपने ही उसके भविष्य को दिशा देते हैं। मुम्बई के पास कल्याण की रहने वाली सुशीला ताई ने भी बचपन में एक सपना देखा था। वह सपना था- माता सीता, सावित्री, जीजाबाई, लक्ष्मीबाई के देश में स्त्री शक्ति के नवजागरण का। वह बाल्यकाल में ही राष्ट्र सेविका समिति से जुड़ीं और ऐसी जुड़ीं कि उम्र के आखिरी पड़ाव में आज भी उनका वह सफर जारी है।1952 में उनकी शादी श्री मधुकरराव महाजन से हुई। मधुकरराव राष्ट्रीय स्वयंसेवक के प्रचारक रह चुके थे। जनसंघ की स्थापना के बाद वह महाराष्ट्र के पहले संगठन मंत्री बने। मधुकरराव जी की प्रेरणा से सुशीला ताई ने बी.ए.की शिक्षा पूर्ण की और राष्ट्र सेविका समिति, मुम्बई की सहकार्यवाहिका का दायित्व संभाला। घर पर अक्सर वे संघ व जनसंघ के वरिष्ठ नेताओं के भोजन-आवास की व्यवस्था करती थीं। पं. दीनदयाल उपाध्याय, नानाजी देशमुख, मोरोपंत पिंगले, दत्तोपंत ठेंगडी, अटल जी आदि का घर पर आगमन होता रहता था। घर की जिम्मेदारी संभलाते हुए समाज के प्रति योगदान देना, यह उनका जीवनक्रम बन गया। इसी आदर्श को सामने रखकर सुशीलाताई समिति कार्य का विस्तार करती रहीं। परिणामस्वरूप मुम्बई प्रांत में 250 से अधिक शाखाएं हो गर्इं। साथ ही पार्ले तिलक विद्यालय की एक लोकप्रिय अध्यापिका के रूप में भी उन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई।वन्देमातरम्, भारतीय ध्वज का इतिहास, भगिनी निवेदिता आदि अनेक विषयों पर बच्चों को प्रेरणा देने के लिए अन्तर-विद्यालयीन प्रदर्शनी, प्रतियोगिताओं के आयोजन की वे प्रमुख सूत्रधार बनीं।गरीब और पिछड़े वर्ग की बस्तियों में लड़कियों की शिक्षा के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण प्रयास किए और आज भी “भारतीय श्री विद्या निकेतन” बालिका शिक्षा प्रकल्प का वह प्रभावी मार्गदर्शन कर रही हैं।सन् 1974 में जब राजमाता जीजाबाई की 300 वीं पुण्यतिथि थी, उन्होंने माता जीजाबाई के सन्देशों तथा उनके महान जीवन चरित्र के प्रचार-प्रसार के लिए गांव-गांव यात्राएं की। प्रान्त के 300 ग्रामों में सेविका समिति की सेविकाओं के साथ माता जीजाबाई के गौरवपूर्ण जीवन और मातृत्व की महत्ता का ज्ञाने कराने वाले सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। सुशीलाताई ने इस प्रकार अनेक यात्राओं के आयोजन द्वारा समिति की कार्यकर्ताओं को संगठनात्मक दृष्टि के साथ भारतीय इतिहास व परम्पराओं से भी परिचित कराया। इस प्रकार यात्राओं द्वारा इतिहास की प्रेरणा देना सुशीला ताई की विशेषता रही। उनके प्रयत्नों के परिणामस्वरूप प्रत्येक आयु एवं आर्थिक वर्ग की महिलाएं राष्ट्र सेविका समिति से जुड़कर अनेक प्रकल्पों में सहयोग करने लगीं और कार्य बढ़ने लगा।तेजस्विनीकितनी ही तेज समय की आंधी आई, लेकिन न उनका संकल्प डगमगाया, न उनके कदम रुके। आपके आसपास भी ऐसी महिलाएं होंगी, जिन्होंने अपने दृढ़ संकल्प, साहस, बुद्धि कौशल तथा प्रतिभा के बल पर समाज में एक उदाहरण प्रस्तुत किया और लोगों के लिए प्रेरणा बन गर्इं। क्या आपका परिचय ऐसी किसी महिला से हुआ है? यदि हां, तो उनके और उनके कार्य के बारे में 250 शब्दों में सचित्र जानकारी हमें लिख भेजें। प्रकाशन हेतु चुनी गईंश्रेष्ठ प्रविष्टि पर 500 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।समिति के कार्य विस्तार के साथ सुशीला ताई के समक्ष एक और बड़ी समस्या आ खड़ी हुई। समिति के पास अपना कोई कार्यालय भवन नहीं था। राष्ट्रीय सेविका समिति, मुम्बई शाखा के लिए अपने भवन का होना सभी को आवश्यक लगने लगा। सुशीला ताई ने इस कार्य को पूरा करने की ठानी। परन्तु समिति की अधिकांश सेविकाएं मध्यमवर्गीय और निम्न आर्थिक स्तर की थीं। इस कारण उस समय, सन् 1974 में सामाजिक कार्य के लिए किसी से 100 रुपए प्राप्त करना भी कठिन था। परन्तु सेविकाओं ने घर-घर जाकर एक-एक रुपया मांग करके एक लाख रुपए की राशि इकट्ठी की। इस प्रकार राजमाता जीजाबाई ट्रस्ट के भव्य भवन का निर्माण प्रारम्भ हुआ। सुशीला ताई ने अपने द्वारा लिखित “स्वर जीजाई” नामक नाटक का जगह-जगह प्रदर्शन कर खुद उस समय 1 लाख रुपए इकट्ठे किए। स्कूल की नौकरी, दो बेटियों की पढ़ाई और गृहस्थी के अन्य कार्य संभालते हुए उन्होंने यह काम पूरा किया। मुम्बई में बसों-ट्रेनों की भीड़ और अपने निवास से 50 कि.मी. की दूरी पर ठाणे में समिति कार्यालय के निर्माण का कार्य कितनी कठिनाइयों और कष्टों से जूझते हुए उन्होंने पूर्ण किया होगा, इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है। इस कार्य में बकुल ताई और अन्य प्रमुख कार्यकर्ताओं ने भी अत्यंत परिश्रमपूर्वक उनका सहयोग किया। समिति कार्यालय में आज 30 लड़कियों का छात्रावास, वाचनालय, आरोग्य केन्द्र, महिला सलाह केन्द्र भी चलता है। इसी प्रकार माता जीजा बाई के नाम से जीजाई उद्योग मंदिर प्रकल्प में महिलाओं के आर्थिक स्वावलम्बन के लिए कार्यक्रम प्रारम्भ हुए। यहां बनने वाली गृहोपयोगी वस्तुओं का वितरण 250 केन्द्रों से हो रहा है।समिति का कार्य संभालने के साथ-साथ सुशीला ताई ने उत्कृष्ट लेखन कार्य के द्वारा भी खूब लोकयश प्राप्त किया। भारतीय महिला क्रान्तिकारियों पर उनके लिखे लेख चर्चित हुए। समिति के उत्सवों व अन्य कार्यक्रमों के लिए गीत लेखन के साथ बाल नाटिका, उनके द्वारा लिखित प्रेरणाप्रद चरित्र ग्रंथ, आत्मकथाओं, स्वर जीजाई कथाकाव्य आदि का प्रकाशन भी लोकप्रिय हुआ। वंदनीया मौसी जी के जीवन पर यशस्वी चरित्र ग्रंथ “दीप ज्योति नमोस्तुते” के लेखन के लिए सुशीला ताई ने अपने अध्यापक कार्य से स्वैच्छिक अवकाश लेकर मौसी जी से जुड़े स्थानों का सघन प्रवास किया। इस पुस्तक पर “तेज-तपस्विनी” नामक चलचित्र का निर्माण भी हाल ही में पूर्ण हो चुका है।सामाजिक जीवन के लगभग पांच दशक से अधिक समय को सफलतापूर्वक पूर्ण कर चुकने के बाद भी सुशीला ताई निरन्तर कर्मपथ पर अग्रसर हैं। इसी वर्ष अपने जीवन के 75 वर्ष पूरे करने के उपरान्त उनका अमृत महोत्सव मनाया गया। राष्ट्र सेविका समिति के सांस्कृतिक विभाग की अ.भा.प्रमुख के रूप में वह आज भी अपने जीवन उद्देश्य को पूर्ण करने में अहर्निश जुटी हुई हैं। तेजस्विनी नारी के नवआह्वान का जो सपना उन्होंने बचपन में देखा था, उसे साकार करने में उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। आज वह हजारों सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणा स्तम्भ बनकर खड़ी हैं।NEWS
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