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गांधी की प्रतिमूर्ति मयीलम्मावर्तमान परिवेश में राजनीति का अपराधीकरण, भ्रष्टाचार, माफिया राज आदि सामाजिक विकृतियां एक ओर जहां समाज को झकझोर रही हैं, वहीं केरल के पलक्काड जिले की मयीलम्मा ने गांधीवादी सोच को अपनाकर कोका-कोला कंपनी के खिलाफ अभियान छेड़ दिया है।यद्यपि मयीलम्मा ने कहीं से औपचारिक शिक्षा नहीं ली है। वह इरालवर जनजाति से संबंध रखती हैं। राजनीति से उनका दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। 56 वर्षीया मयीलम्मा अभी तक अपने गांव में खेती-बारी करती हैं। हां, वह उस नीति से जरूर वास्ता रखती हैं जिससे समाज में आमूल परिवर्तन संभव है। सामाजिक पिछड़ेपन के कारण उनकी शादी महज 15 साल में ही हो गई थी किन्तु पति की मौत का अपार दु:ख भी उन्हें जल्द ही सहना पड़ा।पलक्काड शहर से 30 किलोमीटर दूर प्लाचीमदा स्थित कोक की फैक्ट्री के कारण क्षेत्र के जलस्तर में साल दर साल ह्मास होता गया। इसके चलते यहां का पेयजल भी प्रदूषित हो गया। बस, एक स्वयंसेवी संस्था की मदद से मयीलम्मा ने “कोका-कोला विरोध समिति” का गठन कर लिया। मयीलम्मा के नेतृत्व में 22 अप्रैल, 2002 से कोक फैक्ट्री के सामने प्रदर्शन शुरू हुआ। बाद में इस मुद्दे को बीबीसी ने भी उठाया। मयीलम्मा के कठिन प्रयास से यह मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गया है। मयीलम्मा के नेतृत्व में इस आंदोलन ने यह तो साबित कर ही दिया है कि सामाजिक क्षेत्र में काम करने वालों के लिए लगन ही सब कुछ है। उनकी शिक्षा उनके मार्ग की बाधा कभी नहीं बन सकती है। इस आंदोलन के दरम्यान मयीलम्मा ने देश के विभिन्न जगहों का दौरा भी किया। अब देश व विदेश के पर्यावरणविद्, सामाजिक कार्यकर्ता और शोधकर्ता उनसे परामर्श कर रहे हैं। मयीलम्मा को वे गांधी की प्रतिमूर्ति के रूप में देख रहे हैं। इतना होते हुए भी मयीलम्मा आधुनिक चकाचौंध से कोसों दूर आज भी अपने गांव में रहती हैं।(स्रोत- आउटलुक, स्पीक आउट)NEWS
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