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गृहमंत्रालय को समस्याओं पर ध्यान देने को कहाआदित्यराज कौलकश्मीरी पंडितों के लिए यह बात सुखद हो सकती है कि उनकी समस्याओं की ओर राष्ट्रपति का ध्यान आकर्षित हुआ है। हाल ही में राष्ट्रपति को सौंपे गए कश्मीरी पंडितों की समस्याओं से सम्बंधित ज्ञापनों को उन्होंने आवश्यक कार्रवाई के लिए केन्द्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल को भेजा है। यद्यपि यह पता नहीं चल सका है कि राष्ट्रपति ने इन ज्ञापनों के सन्दर्भ में व्यक्तिगत टिप्पणी में क्या कहा है, परन्तु राष्ट्रपति भवन के सूत्रों के अनुसार, “उन्होंने कश्मीरी पंडितों के मामले को संज्ञान में लिया है।”कश्मीरी पंडितों के प्रतिनिधि के रूप में 13 मई को प्रख्यात सिनेमा कलाकार और सेंसर बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष अनुपम खेर और फिल्म निर्देशक अशोक पंडित राष्ट्रपति से मिले थे और उन्हें कश्मीरी पंडितों की वेदनाओं से अवगत कराते हुए एक ज्ञापन सौंपा था। कश्मीर समिति (दिल्ली) के अध्यक्ष श्री सुनील शकधर के पत्र को भी राष्ट्रपति ने गंभीरता से लिया। राष्ट्रपति के सचिव श्री पी.एम. नायर ने बताया कि कश्मीरी पंडितों के पंजीकरण के संदर्भ में पहले प्राप्त हुए पत्रों को केन्द्रीय गृह सचिव और मंत्रिमंडलीय सचिव के पास भेजा गया है। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि कश्मीरी विस्थापितों की जनगणना के विषय पर राष्ट्रपति को भेजा गया पत्र भी गृह सचिव को भेजा जा चुका है।राष्ट्रपति को लिखे पत्र में कश्मीर समिति (दिल्ली) ने घाटी के खतरनाक हालात की ओर राष्ट्रपति का ध्यान खींचते हुए कहा है कि घाटी में आतंकवादी हिंसा नए सिरे से पैर पसार रही है। कश्मीर पंडितों को योजनापूर्वक पंचायत चुनावों से भी बाहर रखा गया। पत्र में पी.डी.पी. के नेतृत्व वाली राज्य की गठबंधन सरकार पर आरोप लगाया गया है कि सरकार कश्मीरी पंडितों को स्थाई रूप से विस्थापित रखने पर आमादा है। पत्र में यह भी कहा गया है कि सरकार कश्मीर पर बातचीत की प्रक्रिया में कश्मीरी पंडितों को भी शामिल करे। इससे ही समस्या का वास्तविक समाधान निकलेगा। राष्ट्रपति द्वारा केन्द्रीय गृहमंत्रालय को भेजे गए पत्रों का असर भी अब स्पष्ट हो चला है। केन्द्रीय गृहमंत्रालय के जम्मू-कश्मीर मामलों के विभाग ने उपरोक्त मुद्दों पर जम्मू-कश्मीर सरकार से जवाब-तलब किया है।तलपटएक लाख भारतीय प्रतिवर्ष कर रहे हैं आत्महत्याजो आत्म हत्या करते हैं, वे अन्धकार से अच्छादित असुर लोक में जाते हैं (ईशावास्य उपनिषद)। इस प्राचीन औपनिषदिक की अनदेखी करते हुए भारतीयों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। एक अध्ययन के अनुसार, देश में इस समय प्रतिवर्ष लगभग 1 लाख लोग किसी न किसी कारण वश आत्महत्या कर रहे हैं। चेन्नै के एक गैर सरकारी संगठन “स्नेह” के निदेशक पी.वी. शंकर नारायणन के अनुसार, “केरल में आत्महत्या का आंकड़ा प्रथम स्थान पर है, उसके बाद कर्नाटक, तमिलनाडु, प. बंगाल का नम्बर आता है। इन प्रान्तों में प्रति लाख 20 से 26 लोग प्रतिवर्ष आत्महत्या कर रहे हैं तो वहीं उत्तर प्रदेश, बिहार और जम्मू-कश्मीर की स्थिति अपेक्षाकृत ठीक है, जहां प्रति लाख केवल 6 से 7 व्यक्ति ही आत्महत्या करते हैं। आत्महत्या करने वालों में 15 से 29 वर्ष की महिलाओं तथा 30 से 45 वर्ष के पुरुषों का प्रतिशत सर्वाधिक है। परीक्षा में असफल किशोर, विद्यार्थियों में आत्महत्या की दर भी अधिक पाई गई है।”(स्रोत : डेली एक्सेलसियर, 21 मई, 2005)NEWS
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