एडगर केसी : "अनेक महल"-7
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एडगर केसी : "अनेक महल"-7

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May 6, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 May 2005 00:00:00

गृहस्थ जीवन के संबंधहो.वे. शेषाद्रिहो.वे. शेषाद्रिअ.भा. प्रचारक प्रमुख, रा.स्व.संघएडगर केसी अमरीका के प्रतिष्ठित विचारकों में से एक माने जाते हैं। सुप्तावस्था और जाग्रतावस्था के संदर्भ में उनके प्रयोग और विश्लेषण बहुत चर्चित रहे हैं। उन्हीं के विचारों को संकलित करके लेखिका जीना सेर्मीनारा ने “मैनी मेन्शंस” (अनेक महल) नामक वृहत् पुस्तक की रचना की है। रा.स्व.संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख श्री हो.वे.शेषाद्रि ने इसी पुस्तक के महत्वपूर्ण अंशों के आधार पर एक लेखमाला तैयार की है- एडगर केसी: अनेक महल। यहां प्रस्तुत है उस लेखमाला की सातवीं कड़ी। सं.विवाह के लिए व्यक्ति को उपलब्ध स्वातंत्र्य, विवाह के बाद के उसके व्यवहार की रीति-नीति, विवाह से संबंधित समस्याएं, विवाह-विच्छेद, अकेलापन- ऐसे विषयों के व्यापक उदाहरण और उनके लिए केसी का मार्मिक मार्गदर्शन ये सभी विषय पुस्तक के अगले चार अध्यायों (13 से 16) में मिलते हैं।मानव के जीवन में दिखने वाला कोई भी प्रमुख पड़ाव आकस्मिक नहीं होता। उन सबका पिछले जन्मों से संबंध रहता है। विवाह के बारे में भी ऐसा ही है: इस जन्म में विवाह करने वाले पुरुष-महिला कभी-कभी पिछले जन्मों में भी संबंधित होते हैं। अपने-अपने कर्म के बंधनकारक ऋणों से मुक्त होकर, अपनी आत्मा के सत्संस्कारों को दृढ़ बनाकर आध्यात्मिक शक्ति और ज्ञानवर्धन में पति-पत्नी परस्पर सहयोग करते जाएं-यही विवाह का प्रमुख उद्देश्य है।कुछ महिलाओं के शीघ्र ही विवाह करने के बारे में केसी बताते हैं तो कुछ को नौकरी करने के बाद ही विवाह की बात करते हैं। कुछ को नौकरी और विवाह दोनों की सूचना देते हैं तो कुछ को दोनों में से एक को ही चुनने की बात करते हैं। एक 18 वर्षीय दु:खी शर्मिली सी लड़की को विवाह के बाद बच्चों के ऐहिक, सामाजिक कल्याण के लिए आवश्यक पैसा कमाने के लिए कुछ काम करने के बाद ही शादी करने की बात कही- ऐसा न करने पर शीघ्र ही विवाह करके सुखी होने के प्रयत्न में निराशा ही हाथ लगेगी- यह भी कहा गया है। उनके प्रत्येक सुझाव में आध्यात्मिक प्रगति के लिए सहायक होने वाली दृष्टि ही रहती थी। पिछले जन्मों में कोई भी संबंध होने पर इस जन्म में उसी को आगे भी चलाते रहना पड़ेगा- ऐसा कुछ नहीं है। अपने साथी को चुनने का, छोड़ने का स्वातंत्र्य हर एक व्यक्ति को रहता ही है- ऐसा केसी का कहना है। केवल शारीरिक आकर्षणों से मोहित होने के बारे में केसी सावधान करते हैं। दैहिक स्तर पर ही नहीं, अपने विचारों में, आदर्शों में साम्य है कि नहीं- ये सभी बातें देखनी चाहिए- ऐसा कहते हैं केसी। उसके प्रकाश में स्वतंत्र निर्णय लेने का अधिकार व्यक्ति को है- इस बात पर भी जोर देते हैं।आत्महत्या एक घोर दुष्कर्म है- इसके बारे में केसी के अनेक कथन साक्षी हैं। मेरा अपमान हुआ है- ऐसा सोचकर अपने पति और बच्चों की चिंता न करते हुए कुएं में कूदकर प्राण देने वाली एक महिला को इस जन्म में अकेले ही जीना पड़ा। किसी से भी प्रीति-विश्वास के पात्र न बनने वाले का जीवन रूखा-सूखा रह गया। खुद के प्रयास से दूसरे के जीवन से दूर की गई बातों से अब स्वयं को दूर रहने की दुर्दशा हुई और उसे इन सबकी कीमत समझ लेने की बारी आयी। “आत्महत्या” स्वातंत्र्य का दुरुपयोग है और उसका प्रायश्चित भी अटल है।नए जन्म में पुरुष स्त्री बनकर, और स्त्री पुरुष बनकर जन्मे हैं- ऐसे भी उदाहरण हैं। पुरुष-प्रवृत्ति, स्त्री-प्रवृत्ति इन दोनों का जीवन में क्रमश: समन्वय होने से व्यक्तित्व परिपूर्ण हो- यही उसका उद्देश्य है।कर्म सिद्धांत, मनुष्य की स्वतंत्र इच्छा-शक्ति को खत्म करता है। इस आक्षेप के बारे में, इस अध्याय में ठीक-ठीक उत्तर प्राप्त होता है। विश्व नियमों की परिधि में मानव की स्वतंत्र इच्छा- शक्ति अवश्यमेव कार्य कर सकती है, किन्तु उन नियमों के उल्लंघन के बाद दंड से वंचित नहीं हो सकते। पिछले कर्म-बंधन और व्यक्ति का स्वातंत्र्य, इनके बीच के संबंध की सीमा स्पष्ट करने के लिए एक उदाहरण दिया जा सकता है। सांकल से बंधे हुए कुत्ते को सांकल के वत्र्तुल के हिस्सों में घूमने की स्वतंत्रता रहती है। सांकल की लंबाई जीव के पिछले कर्मों पर आधारित होती है।पाप नहीं, दैवीय अवसर17वां अध्याय माता-पिता व बच्चों के विषयों से संबंधित है। “आदम” और “इव” इन दोनों के “प्रारम्भ के पाप” से मनुष्य का जन्म हुआ है- यह ईसाई मत का विश्वास है। भले ही आज वैवाहिक संबंधों को कानूनबद्ध किया गया है किन्तु बच्चों का जन्म पाप कर्मों के कारण ही होता है- इस ईसाई विश्वास को केसी के कथन नकारते हैं। स्त्री-पुरुष मिलन यह दैवीय योजना का एक भाग है, सृष्टिशीलता का लक्षण है। इसी श्रद्धाभाव से उसको देखना चाहिए। एक जगह केसी कहते हैं, “यह मनुष्य को प्राप्त एक सुअवसर है। सृष्टिकर्ता की कलाकृति निर्माण करने का वह माध्यम है। अपने और अपनी पत्नी के मनोधर्म के बारे में जाग्रत रहें क्योंकि पैदा होने वाले बच्चे के गुणधर्म कुछ अंश तक माता-पिता के मनोधर्म पर अवलम्बित होते हैं।”केसी के कथनों में ध्यान देने लायक एक विशेष बात है कि जन्म लेने वाले जीव को भी किस प्रकार के माता-पिता के संयोग से जन्म लेना है- यह स्वातंत्र्य रहता है। कभी-कभी यह निर्णय गलत होने पर, छोटी उम्र में ही उसके शरीर छोड़कर दूसरी जगह जन्म लेने के उदाहरण भी है। केसी के कथनों के अनुसार जन्म से पूर्व, जन्म की घड़ी में या जन्म के बाद 24 घंटों के अंदर जीव उस शरीर में प्रवेश कर सकता है। “तब तक उस शरीर में प्राण कैसे रहेगा?” इस प्रश्न के उत्तर के रूप में जीव सृष्टि का मूल, चेतन रूपी ईश्वर से प्राप्त होता है, ऐसा केसी कहते हैं।बच्चों का जन्म, उनकी शैशवावस्था, बच्चे, माता-पिता इनके आपस के संबंधों के बारे में केसी के कथनों का वैज्ञानिक शोध करने पर वंश-शास्त्र, शिशु- मानसशास्त्र, वंश-सुधार इत्यादि विषयों में विज्ञान के एक नए ही क्षितिज का द्वार खुलेगा- ऐसा सेर्मीनारा कहती हैं।बच्चों के प्रति कर्तव्यविकलांगता, क्रूरता, द्वेष, प्रतिशोध इनका शिकार हुए बच्चे और उनके माता-पिता किस ढंग से व्यवहार करें, इस पर अगले (18वें) अध्याय में पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। कभी-कभी केसी के उद्गार इस प्रकार होते हैं: ” यह माता-पिता और बच्चों का भी कर्म है”। एक 12 वर्ष की यहूदी बालिका शैशवावस्था से ही मूच्र्छा रोग से पीड़ित थी। उसके जन्मांतर की कथा इस प्रकार थी। उस बच्ची तथा उसके माता-पिता के बीच का सम्बन्ध अमरीकी क्रांति के समय भी ऐसा ही था। धन के लालच में कारण माता-पिता ने अमरीकी स्वातंत्र्य के पक्ष को छोड़कर इंग्लैण्ड का साथ दिया। उस देश के लिए लाभदायक बातें उन्हें पहुंचाते रहे। उनकी पुत्री काफी रूपवती और चतुर थी। इधर-उधर जाने का उसका स्वभाव था। उसे रोकने के बजाय माता-पिता उसे और प्रोत्साहित करते थे। अपने राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पुरुषों को अपने जाल में करने के लिए वह अपने सौंदर्य और चातुर्य का उपयोग करती थी। अपने पिछले जन्म के इन दुष्कर्मों का फल इस जन्म में वह लड़की और उसके माता-पिता भुगत रहे थे। इस प्रकार के कटु अनुभव प्राप्त होने पर वे पुन: उस प्रकार की कुप्रवृत्ति से बच सकते हैं। उसी प्रकार एक ही घर के या किन्हीं अन्य दो व्यक्तियों के आपसी द्वेष, मत्सर का भी पिछले जन्म का वैरभाव ही कारण हो सकता है। उस प्रकार के लोग कम से कम इस जन्म में ऐसी दुष्प्रवृत्तियों से दूर रहें- केसी ऐसा मार्गदर्शन करते थे।(क्रमश:)NEWS

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