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36 का आंकड़ाअसम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई और राज्यपाल ले. जनरल (से.नि.) अजय सिंह के बीच मतभेद अब खुलकर सामने आ गए हैं। सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री तरुण गोगोई जेल में बन्द उल्फा नेताओं को छोड़े जाने और बंगलादेशी नागरिकों की अवैध घुसपैठ पर राज्यपाल की हाल की टिप्पणी से खासे नाराज हैं। दोनों के बीच सम्बंधों में खटास इस हद तक पैदा हो चुकी है कि मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगियों ने विधानसभा चुनाव के पूर्व हर हाल में राज्यपाल को राजभवन से विदा करवाने का मन बना लिया है। शीघ्र ही तरुण गोगोई इस सन्दर्भ में आलाकमान से गुहार लगाने दिल्ली आने वाले हैं।वास्तव में राज्यपाल की साफगोई ही इस संकट का कारण मानी जा रही है। सूत्रों के अनुसार राज्यपाल द्वारा केन्द्र को राज्य में बंगलादेशी घुसपैठ के सन्दर्भ में जो रपट भेजी गई है, उसे विपक्ष ने सरकार के विरुद्ध हथियार बना लिया है। इससे राज्य सरकार परेशान है। इस रपट में राज्यपाल अजय सिंह ने कहा है कि राज्य में रोजाना लगभग 6000 बंगलादशी घुसपैठ कर रहे हैं और इसके कारण राज्य के 10 सीमावर्ती जिलों में भयानक रूप से जनसंख्यात्मक असंतुलन उत्पन्न हो गया है।दूसरी तरफ मुख्यमंत्री और राज्यपाल में तनातनी के लिए एक कारण और बताया जा रहा है। राज्य सरकार ने हाल ही में जेल में बंद उल्फा के दस आतंकवादियों को उल्फा नेता परेश बरुआ की मांग पर रिहा कर दिया था। राज्यपाल ने इस निर्णय पर आपत्ति तो की ही, नई दिल्ली में हाल ही में आयोजित राज्यपालों की बैठक में भी अपनी आपत्ति से केन्द्र को अवगत करा दिया। राज्यपाल के इस कड़े रुख के चलते असम की सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार सकते में आ गई है।गठजोड़ की जोड़-तोड़पंजाब में कांग्रेस-कम्युनिस्ट एकता खटाई में पड़ गई है। हाल ही में जब भाकपा महासचिव कामरेड ए.बी. बद्र्धन पंजाब प्रवास पर थे तो उन्होंने वहां पत्रकारों को बताया कि अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों में चूंकि अभी 1 वर्ष बचा है अत: गठबंधन के बारे में बाद में विचार करेंगे। उन्होंने कहा कि सेकुलर वोटों का विभाजन रोकने के लिए भाकपा कटिबद्ध है। यह सर्वविदित है कि 2002 का चुनाव कांग्रेस और भाकपा ने मिलकर लड़ा था, फिर अब भला भाकपा महासचिव कांग्रेस के साथ गठजोड़ के प्रश्न पर रुख स्पष्ट क्यों नहीं कर रहे हैं? पंजाब की राजनीति के जानकार और पंजाब के कामरेड ही इस प्रश्न का ठीक उत्तर जानते हैं। दरअसल, भाकपा कांग्रेस से इस बात को लेकर काफी नाराज है कि उसने पंजाब में कम्युनिस्ट आंदोलन को समाप्त करने में बड़ी भूमिका निभाई है। सन् 2002 में भाकपा के टिकट पर जीते दोनों विधायक आज पाला बदल कर कांग्रेस विधायक दल के सदस्य हो गए हैं।मुसीबत में कैप्टनपंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के मन में राजनीतिक मजबूरीवश पैदा हुआ सिख पंथ के प्रति प्रेम अब उनके साथ-साथ पूरी पार्टी को भारी पड़ रहा है। अकाली दल (बादल) के अध्यक्ष प्रकाश सिंह बादल से पंथक राजनीति की प्रतिस्पर्धा में वे इतने आगे निकल गए कि अब खालिस्तान समर्थकों के पाले में नजर आ रहे हैं। अपने पौने चार साल के शासन के दौरान हर मोर्चे पर नाकाम रहे कांग्रेसी कैप्टन आगामी विधानसभा चुनाव की वैतरणी पंथक राजनीति के जरिए पार करने का स्वप्न देख रहे थे कि अब खालिस्तानियों के साथ सम्बंध होने का खुलासा होने पर उनकी राजनीति कांग्रेस को मंझधार की ओर ले जाती दिखाई दे रही है। अपने आप को सिख नेता साबित करने के लिए कनाडा प्रवास के दौरान वे डिक्सी स्थित ऐसे गुरुद्वारे में एक समारोह में हिस्सा लेने पहुंच गए जो खालिस्तानियों का गढ़ माना जाता है। इतना ही नहीं, जिस मंच पर उन्होंने भाषण दिया उसके पीछे साफ-साफ अक्षरों में गुरुमुखी लिपि में “खालिस्तान जिंदाबाद” लिखा था। समाचारपत्रों में फोटो प्रकाशित होने के बाद मुख्यमंत्री के साथ-साथ पूरी कांग्रेस पार्टी को जैसे सांप सूंघ गया है। अब कैप्टन कह रहे हैं कि उन्होंने मंच पर चढ़ने से पहले दीवार पर लिखा नारा नहीं देखा था।NEWS
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