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डी. जयकान्तन
साहित्य क्षेत्र का प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार इस वर्ष तमिल भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार श्री डी. जयकान्तन को दिया गया है। पुरस्कार में प्रशस्ति पत्र, वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा और पांच लाख रुपए की सम्मान राशि भेंट की जाती है। इस 38वें ज्ञानपीठ पुरस्कार की घोषणा करते हुए पुरस्कार समिति की प्रवर परिषद के अध्यक्ष डा. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी ने कहा कि श्री डी. जयकान्तन ने अपने लेखन से न केवल तमिल भाषा को समृद्ध किया है, बल्कि भारतीय भाषा साहित्य को अपनी कृतियों से नयी ऊंचाई भी दी है। उनका साहित्य मानवीय संवेदनाओं और समीकरणों की गहराइयों को अत्यंत बारीकी से अनावृत करता है।
श्री डी. जयकान्तन तमिल भाषा के दूसरे साहित्यकार हैं जिन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इससे पहले 1975 का ग्यारहवां ज्ञानपीठ पुरस्कार श्री पी.वी. अखिलन्दम को दिया गया था। डी. जयकान्तन तमिल भाषा के शीर्षस्थ कथाकार, निबन्धकार और फिल्मकार माने जाते हैं। उनका जन्म कड्डलौर के एक मध्यम वर्गीय परिवार में 1934 में हुआ था। श्री जयकान्तन के चालीस उपन्यास, लगभग दो सौ कहानियां और पन्द्रह निबन्ध संग्रह प्रकाशित हैं। रोम्यां रोला कृत महात्मा गांधी की जीवनी का उन्होंने तमिल भाषा में अनुवाद किया है। उनकी 10 कृतियों पर फिल्में भी बन चुकी हैं तथा तीन कृतियां छोटे परदे पर भी आ चुकी हैं। अनेक कृतियों का भारतीय भाषाओं सहित अंग्रेजी, रूसी, जर्मन, जापानी आदि भाषाओं में अनुवाद भी किया जा चुका है।
प्रतिनिधि
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