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सुनो कहानी
जागा विवेक
एक आश्रम में अपने गुरु के साथ एक शिष्य भी रहता था। वह प्राय: अपने गुरुदेव के उपदेश सुनता और उनका मनन कर अपने व्यवहार में भी लाने की कोशिश करता था। एक दिन वही शिष्य किसी काम से आश्रम से नगर को जा रहा था तो उसे अपने गुरुदेव का अचानक वह उपदेश याद आया कि “संसार में तुम जितने जीव देखते हो, उन सभी में परमात्मा का वास है”। वह इस उपदेश के बारे में मन में कुछ सोच ही रहा था कि पीछे से एक हाथी पर सवार महावत ने आवाज लगाई, “आगे से हटो”। शिष्य ने महावत की आवाज सुनी तो सही, पर रास्ते से हटा नहीं। सोचा, “हटने की क्या जरूरत है? अरे! यह हाथी भी तो नारायण हैं, मैं भी नारायण हूं, तब डरूं किसलिए?” यही विचार कर वह आगे-आगे चलता रहा। लेकिन हाथी ने जब उस शिष्य को अपने आगे देखा तो उसने गुस्से में उसे अपनी सूंड से उठाकर दूर फेंक दिया, जिससे शिष्य के काफी चोट आईं। किसी तरह जब वह आश्रम लौटा तो अपने गुरु से अपने को हाथी द्वारा फेंके जाने की बात बताई और फिर चोटें भी दिखाईं। तब गुरु ने उसे समझाया, “तुम भी नारायण हो और हाथी भी नारायण है, लेकिन हाथी पर सवार महावत भी तो नारायण ही था। उसकी बात तुमने क्यों नहीं मानी और हाथी के आगे से क्यों नहीं हटे?” अब शिष्य क्या कहता- वह मौन साधकर लज्जित हुआ कि गुरु जी ठीक ही कह रहे हैं। मैंने महावत को अपने और हाथी के अंदर विद्यमान भगवान से बिल्कुल अलग समझने की भूल की। उसी का कुफल है मेरा चोट खाना। अब उसका विवेक जाग गया था।
मानस त्रिपाठी
बूझो तो जानें
प्यारे बच्चो! हमें पता है कि तुम होशियार हो, लेकिन कितने?
तुम्हारे भरत भैया यह जानना चाहते हैं। तो फिर देरी कैसी?
झटपट इस पहेली का उत्तर तो दो। भरत भैया हर सप्ताह ऐसी ही
एक रोचक पहेली पूछते रहेंगे। इस सप्ताह की पहेली है-
पिता और चचाओं से भी, थे वो ज्यादा वीर, मार गिराई सारी सेना, ऐसे थे रणधीर।
पकड़ यज्ञ का घोड़ा हर्षित थे वे दोनों भाई, माता ने ही फिर उनकी सबसे पहचान कराई।।
उत्तर: (लव-कुश)
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