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प्रतिनिधिचेन्नै में गत 16, 17, 18 सितम्बर को भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक सम्पन्न हुई। इस बैठक में भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने आगामी दिसम्बर में होने वाले महाधिवेशन के बाद पद छोड़ने की घोषणा की। इसके साथ ही अपने लिखित वक्तव्य में उन्होंने भाजपा और संघ के सम्बंध में भी चर्चा की। कार्यकारिणी में तीन प्रस्ताव भी पारित हुए।16 सितम्बर को उद्घाटन के बाद दो दिन तक देश के राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा माहौल पर विस्तार से चर्चा हुई। इन विषयों से जुड़े जो तीन प्रस्ताव पारित हुए उनमें पहले आर्थिक प्रस्ताव के अंतर्गत बढ़ती महंगाई और घटते रोजगार अवसरों को केन्द्र सरकार की विफलता करार दिया गया। दूसरे राजनीतिक प्रस्ताव में प्रमुख रूप से कांग्रेस की वोट बैंक राजनीति और अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की आलोचना की गई। तीसरे प्रस्ताव में आंतरिक सुरक्षा के प्रति चिंता व्यक्त की गई। आतंकवाद, नक्सलवाद और अवैध घुसपैठ को प्रभावी रूप से समाप्त करने की आवश्यकता पर बल दिया गया।18 सितम्बर को श्री आडवाणी ने समापन भाषण में कुछ मुद्दे उठाए। पार्टी की रजत जयंती के संदर्भ में उन्होंने कहा, “पार्टी का पहला अधिवेशन श्री वाजपेयी की अध्यक्षता में हुआ था और दिसम्बर में मुम्बई में होने वाले रजत जयंती अधिवेशन की मैं अध्यक्षता करूंगा। यह मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से गौरव की बात है।” अपने लिखित वक्तव्य में उन्होंने आगे कहा, “मुम्बई अधिवेशन के बाद मैंने अध्यक्ष पद छोड़ने का फैसला किया है। पार्टी की कमान कोई अन्य सहयोगी संभालेंगे।”श्री आडवाणी ने संघ संस्कारों की प्रशंसा करते हुए कहा, “पहले की ही तरह, हम चाहते हैं कि रा.स्व.संघ कार्यकर्ताओं में नैतिक, चारित्रिक और वैचारिक मूल्यों को मजबूत करने में अपनी भूमिका का निर्वहन करता रहे। यह देश के वृहत् हित में है। संघ और संघ परिवार के अन्य संगठनों के बीच लगातार होने वाली चर्चा-वार्ता को भाजपा महत्वपूर्ण मानती है। उनके विचार हमारी निर्णय-प्रक्रिया में विशेष योगदान देते हैं। लेकिन एक राजनीतिक दल के नाते भाजपा लोगों के प्रति जवाबदेह है, चुनावों में समय-समय पर इसकी परीक्षा होती रहती है। इसलिए एक लोकतांत्रिक बहुदलीय राजनीति में भाजपा जैसी, विचारधारा पर चलने वाली पार्टी को इस तरह चलना होता है जिससे इसकी वैचारिक मान्यताएं यथावत् रहें और साथ ही वैचारिक सीमाओं से बाहर जनसामान्य के एक बड़े वर्ग तक अपनी पहुंच बना सके।”पं. दीनदयाल उपाध्याय का स्मरण करते हुए उन्होंने कहा, “हमारे लिए पं. दीनदयाल उपाध्याय एक आदर्श विचारक रहे हैं। हमने उन्हें लचीलेपन और प्रखरता के साथ ही स्पष्टता और दृढ़तापूर्वक अखण्ड भारत के संदर्भ में पार्टी की वैचारिक प्रतिबद्धता को परिभाषित करते देखा है। रा.स्व.संघ एक राष्ट्रवादी संगठन है जिसका लाखों लोगों के चरित्र निर्माण और उनमें राष्ट्रवाद, आदर्शवाद तथा मातृभूमि के लिए नि:स्वार्थ सेवा भाव रोपने में अद्वितीय योगदान रहा है। इस संगठन ने लाखों लोगों और निष्ठावान कार्यकर्ताओं को राजनीति के माध्यम से देश सेवा की प्रेरणा दी है।”इससे पूर्व रा.स्व.संघ और भाजपा के सम्बंधों पर स्थिति स्पष्ट करते हुए श्री आडवाणी ने अपने लिखित वक्तव्य में कहा-“समय-समय पर उठने वाले मुद्दों पर भाजपा नेतृत्व ने संघ के अधिकारियों से परामर्श करने में कभी कोई हिचकिचाहट महसूस नहीं की है। इन परामर्शों के बाद पार्टी अपने स्वतंत्र निर्णय लेती है। इनमें से कुछ निर्णय रा.स्व.संघ और संघ परिवार के कुछ संगठनों के निर्धारित मतों से भिन्न हो सकते हैं- और वास्तव में भिन्न रहे भी हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से इस तरह की धारणा बनी है कि संघ अधिकारियों की सहमति के बिना कोई राजनीतिक या संगठनात्मक निर्णय नहीं लिया जा सकता है। यह धारणा न तो पार्टी के लिए हितकारी है और न संघ के लिए। रा.स्व.संघ को भी सोचना चाहिए कि इस तरह की धारणा इसके व्यक्ति निर्माण और राष्ट्र-निर्माण के महनीय उद्देश्यों को बौना कर देगी। रा.स्व.संघ और भाजपा को इस धारणा को समाप्त करने का गंभीर प्रयास करना चाहिए।” संघ के संदर्भ में टिप्पणियों और आडवाणी के अध्यक्ष पद छोड़ने की घोषणा पर संघ प्रवक्ता श्री राम माधव ने कहा कि संघ भाजपा के साथ अपने सम्बंधों के बारे में आम लोगों के मन में बसी धारणा पर पार्टी नेताओं के साथ विचार-विमर्श करेगा। उन्होंने कहा कि संघ कभी भी भाजपा के कामकाज में दखलंदाजी नहीं करता है। इस्तीफे की घोषणा पर श्री राम माधव ने कहा, “यह पार्टी का आंतरिक मामला है। अगले अध्यक्ष के बारे में पार्टी ही फैसला करेगी।”प्रतिनिधिNEWS
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