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गाय की महिमा-4अंग्रेजों की दुष्टताशिवकुमार गोयलहिन्दू राजा-महाराजा परम गोभक्त थे। वे किसी भी स्थिति में गोमाता की हत्या सहन करने को तैयार नहीं होते थे। रीवा नरेश रघुराज सिंह के समय की गोभक्ति की एक रोमांचकारी व साहसिक घटना लेखक के पिताश्री तथा संत साहित्य के सुविख्यात लेखक भक्त रामशरणदास को प्रयाग कुंभ के अवसर पर रीवा के राजपुरोहित परिवार के एक सदस्य ने तथ्यों के साथ सुनाई थी। वह घटना इस प्रकार है:-उस समय अंग्रेजों का राज था। अधिकांश भारतीय नरेश अंग्रेजी सत्ता के कुटिल माया-जाल में फंसकर भोग-विलासमय जीवन व्यतीत करने में ही गौरव की अनुभूति कर रहे थे। भारतीय सभ्यता, संस्कृति और गौरव क्रमश: भारतीय जनजीवन में महत्व खोते जा रहे थे, किन्तु भारतीय संत समुदाय ने जिन चिंतन सूत्रों का कोष सुरक्षित रख छोड़ा था, उसकी रक्षा के लिए कुछ कर सकने की हूक यदाकदा चपला-सी कौंध जाती थी। तब भारत में रानी विक्टोरिया के सम्मान में कोई आयोजन हो रहा था। शासन का निमंत्रण पाकर भारतीय नरेश दिल्ली में एकत्रित होने लगे। इन्हीं आगत नरेशों में एक खेमा रीवा नरेश रघुराज सिंह का भी था। रघुराज सिंह धर्मनिष्ठ और शास्त्रीय मर्यादा के रक्षक तथा स्वाभिमान की जीवंत प्रतिमा थे। उन्होंने अपने निवास स्थान पर वीर क्षत्रियों की एक छोटी-सी टुकड़ी नियुक्त कर रखी थी, जिनके नायक थे रामसिंह। रामसिंह वीर तो थे ही, अति विश्वस्त, स्वामिभक्त और परम धार्मिक भी थे।खेमों की व्यवस्था कुछ इस प्रकार थी कि राजपूत छावनी से होकर ही अंग्रेज छावनी में पहुंचा जाता था। वहां अंग्रेज उच्चाधिकारियों के लिए गोमांस का भी प्रबन्ध था। गोमांस लेकर अंग्रेज सैनिकों को राजपूतों के खेमे के सामने से गुजरना पड़ता था। महाराज रघुराज सिंह का शिविर छावनी के प्रमुख मार्ग पर अवस्थित था। पहले दिन अंग्रेज सैनिक जब खुला गोमांस लेकर उधर से निकले तो धर्मनिष्ठ राजपूत वीरों की भृकुटि तन गई, पर बेचारे, बेबस होने से चुप रह गये। दूसरे दिन भी जब वे उन्मत्त सैनिक भारतीय हिन्दू वीरों की भावना से खेलते हुए गोमांस लेकर जा रहे थे तो रामसिंह यह सहन नहीं कर सका और कड़ककर बोला- “यह धर्मविरुद्ध काम हम नहीं देख सकते। अत: अच्छा होगा कि गोमांस ले जाने के लिए आप कोई दूसरा मार्ग चुन लें।” पर राजमद में चूर उन सैनिकों पर कोई असर नहीं हुआ और वे उनकी ओर देखकर, हंसते हुए आगे बढ़ गए। लेकिन जब तीसरे दिन भी इसी घटना की पुनरावृत्ति हुई तो रामसिंह ने उनको हंसते हुए देखकर कहा, “स्वामी की आज्ञा न होने से मैं चुप हूं, अन्यथा तुम दुष्टों को बता देता कि किसी की धार्मिक भावना से खेलने का क्या परिणाम होता है।”अंग्रेज सैनिकों के चले जाने पर रामसिंह क्रोध में भरकर महाराज रघुराज सिंह के पास पहुंचे और निवेदन किया, “महाराज! अंग्रेज सैनिक हमारी छावनी के सामने से गोमांस लेकर निकलते हैं, जिससे हमारी भावनाओं को गंभीर चोट पहुंचती है। बार-बार यहां से निकलने का निषेध करने पर भी वे हमारी बातों पर ध्यान नहीं देते, ऊपर से हंसी और उड़ाते हैं। पर हम आपकी आज्ञा के अभाव में समर्थ होते हुए भी चुप रहते हैं। दुष्ट गोहत्यारे सैनिकों को दण्ड नहीं दे पाते।”महाराज ने शान्तिपूर्वक समस्त घटना सुनी और धीर-गंभीर स्वर में उत्तर दिया- “रामसिंह क्या यह सब सुनाना मुझे आवश्यक था? अच्छा होता यदि तुम उन उद्दण्ड सैनिकों को उचित दण्ड देने के बाद मुझे सूचित करते कि तुमने क्या किया?” रामसिंह अभिवादन कर लौट आया और अपने सहयोगी सैनिकों से बोला, “अब हम सहन नहीं करेंगे कि अंग्रेज सैनिक गोमांस लेकर छावनी के सामने से हमारी हंसी उड़ाते हुए चले जायें।”चौथे दिन अंग्रेज सैनिक जब गोमांस लेकर उधर से निकलने लगे तो रामसिंह ने उन्हें डांटकर लौट जाने के लिए कहा। पर वे उन्मत्त सैनिक जब गर्व में भरकर उनकी अवहेलना-सी करते हुए आगे बढ़ने लगे तो रामसिंह ने बंदूक तान ली और उसकी देखादेखी उसके साथी सैनिकों ने भी। रुख बदलता देख अंग्रेज सैनिकों के हाथ रिवाल्वर निकालने के लिए बढ़े। लेकिन जब तक हाथ ठिकाने पर पहुंचता तब तक उन भारतीय वीरों की बंदूकों ने आग उगल दी और तीनों अंग्रेज सैनिकों के शव धरती पर गिर पड़े। अंग्रेजी शासन में अंग्रेज सैनिकों की हत्या चौंका देने वाली बात थी। शीघ्र ही सारे क्षेत्र में यह घटना आग की तरह फैल गई। अधिकारियों की आज्ञा पाते ही अंग्रेज सैनिकों ने रीवा नरेश के खेमे को घेर लिया। अनेक अंग्रेज उच्च अधिकारी तुरन्त घटनास्थल पर आ पहुंचे। रामसिंह ने उन्हें पूरी घटना की सूचना दी, महाराज ने सारी घटना को जानकर भी अनजान-से बनकर पूछा, “क्या कारण है कि आज, इतने उच्चाधिकारियों को एक साथ यहां देख रहा हूं?” अंग्रेज उच्च अधिकारी ने आश्चर्यमिश्रित भाव में कहा, “क्या आपको विदित नहीं कि आपके सेवकों ने कितना भयंकर काम कर डाला है”? कहकर महाराज को सारी घटना सुना दी। महाराज ने गंभीर स्वर में कहा, “मेरी आज्ञा से ही हुआ है। इसका पूरा दायित्व मुझ पर है। पर इसके साथ मैं यह भी बता देना चाहता हूं कि हम गोमाता के अनन्य भक्त हैं। हमारे सैनिक तीन दिन से लगातार उन्हें रोक रहे थे, जब उन्होंने आज्ञा की अवहेलना की तो दण्ड देना अनिवार्य हो गया।” महाराज रघुराज सिंह का कथन सुनकर किसी का यह साहस न हो सका कि वह प्रतिकार करे। महाराज ने आगे कहा, “इन दुष्ट सैनिकों को जो दण्ड हमने दिया है, वह हमारी मर्यादा के अनुकूल और आज्ञा भंग के कारण न्यायसम्मत भी है।”महाराज के गंभीर गर्जन को सुनकर सब निस्तब्ध हो गए। परिस्थिति की विषमता और गुरुता को अंग्रेज अधिकारियों ने पहचाना और अनर्थ से बचने के लिए महाराज से क्षमा-याचना करते हुए निवेदन किया कि वे इस घटना पर पर्दा डाल दें। महाराज ने ऐसा करना स्वीकार कर लिया। अंग्रेज सैनिकों की हत्या के मामले पर पर्दा डाल दिया गया। इस प्रकार इसे साधारण घटना बताकर न केवल भारतीयों को ही इस गौरवपूर्ण घटना की जानकारी से अपरिचित रहे अपितु भारतीय इतिहास का यह स्वर्णिम पृष्ठ ही हमारे इतिहास से पृथक हो केवल परम्परागत कथानकों का अंग मात्र बनकर रह गया।…जारीNEWS
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