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उस दिन, रामनवमी को एक समाचार चैनल पर नीचे बहती समाचार पट्टी पर यकायक ध्यान गया- “…कांत शास्त्री नहीं रहे।” बस, इतना ही देख पाया था। मन कह उठा, हे प्रभु, जो सोच रहा हूं, वह न हो। लेकिन विधि की विडम्बना। पीड़ा मिश्रित उत्कंठा से उस समाचार की, फिर पट्टी पर आने की प्रतीक्षा करता रहा। 10 मिनट बाद फिर से वह पूरा समाचार उभरा- “आचार्य विष्णुकांत शास्त्री नहीं रहे!” लगा, जैसे एक पल को दिल की धड़कन रुक गई। कई चैनल पलटे तो पूरा विवरण पता चला। यह कैसे हो सकता है? अभी उस दिन ही तो मिले थे दिल्ली में। 6 अप्रैल को भाजपा के रजत जयंती अधिवेशन में सुबह अल्पाहार के समय। धोती-कुर्ता और अंगवस्त्रम की श्वेताभा में शास्त्री जी दिव्य-भव्य लग रहे थे। उनकी प्लेट में एक वड़ा और थोड़ी-सी नारियल की चटनी, बस। यही था उनका अल्पाहार। प्रणाम किया और स्नेह में भीगा आशीर्वाद पाया। उन्होंने बड़े प्रेम से पूछा- कैसे हैं तरुण जी।उनसे दो दिन पहले फोन पर भी बात हुई थी। पाञ्चजन्य में भाजपा रजत जयंती पर विशेष आयोजन के अंतर्गत उनके विचार जाने थे, जो 17 अप्रैल के अंक में प्रकाशित हुए थे। पाञ्चजन्य से उनका यह अंतिम साक्षात्कार होगा, ऐसी कल्पना भी नहीं थी। अधिवेशन स्थल पर मिले तो फिर बात वहीं से शुरू हुई जहां साक्षात्कार खत्म हुआ था। उन्होंने बताया कि कैसे बंगाल और केरल में माक्र्सवादी हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के विरुद्ध गुटबंदी करते हैं। वे बोल रहे थे और मैं चुप सुन रहा था। मैंने पूछा- चाय लेंगे आप? बोले- नहीं चाय नहीं, बस जल लूंगा। और खुद ही पानी लेने बढ़ गए। मुझसे पूछने लगे, “तुमने अल्पाहार किया कि नहीं। अधिवेशन शुरू होने वाला है, कुछ ले लो।” कौन करता है ऐसी चिंता? शास्त्री जी दिनभर अधिवेशन में उपस्थित रहे। बता रहे थे, शाम को कोलकाता वापसी है।सितम्बर, 2003 में रायबरेली में भाऊराव देवरस सेवा न्यास के युवा पत्रकार पुरस्कार स्वरूप इस सरस्वती पुत्र के हाथों से मां सरस्वती की प्रतिमा लेते हुए खुद को धन्य मान रहा था। उस वक्त शास्त्री जी ने आशीर्वाद देते हुए कहा था- “सदा खुश रहो”। वे शब्द आज भी कानों में गूंजते हैं, क्योंकि मिठास और स्नेह में पगे हुए जो थे। मगर जीवन में ऐसे कई मौके आते हैं जब चाहकर भी खुश नहीं रहा जाता। शास्त्री जी का अवसान ऐसा ही एक अवसर है। उनकी पुण्य स्मृति को नमन!आलोक गोस्वामीव्यावहारिक कठिनाइयों के कारण स्वर्गीय आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री जी से संबंधित सभी सामग्री हम एक साथ नहीं दे पा रहे हैं। स्मृति शेष शास्त्री जी के कुछ चित्र पृष्ठ 11 एवं 20 पर देखें। -सं.NEWS
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