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पाठकीय

by
Dec 12, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Dec 2004 00:00:00

अंक-संदर्भ 14 नवम्बर, 2004

पञ्चांग

संवत् 2061 वि.

वार

ई. सन् 2004

मार्गशीर्ष अमावस्या

रवि

12 दिसम्बर

मार्गशीर्ष शुक्ल 2

सोम

13 दिसम्बर

,, ,, 3

मंगल

14 दिसम्बर

,, ,, 4

बुध

15 दिसम्बर

,, ,, 5

गुरु

16 दिसम्बर

(पंचकारम्भ)

,, ,, 6

शुक्र

17 दिसम्बर

,, ,, 7

शनि

18 दिसम्बर

तेजपुंज तेजोमयी

दीवाली के अवसर पर प्रकाशित तेजोमयी अंक सुरुचिपूर्ण लगा। आज के इस उपभोक्तावादी माहौल में प्रिन्ट मीडिया और इलेक्ट्रोनिक माध्यम नारी को भोग्या के रूप में ही प्रस्तुत कर रहे हैं। यह मातृशक्ति एवं राष्ट्र का अपमान है। इसका पुरजोर विरोध होना चाहिए, विशेषकर बुद्धिजीवी वर्ग की ओर से। समाज को यह सोचना चाहिए कि नारी भोग्या नहीं, जननी है। एक मां के रूप में नारी का जीवन आदर्श है। एक बेटे को अपनी मां का त्याग कभी नहीं भूलना चाहिए। जब यह विचार मजबूत होगा, तभी हम राष्ट्र को सर्वोच्च शिखर पर ले जा सकेंगे।

-सूर्यप्रताप सिंह सोनगरा

मु. पो. -कांडरवासा-457222 (म.प्र.)

सुन रहे हैं रेल मंत्री?

गत दिनों नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ में मारे गए और घायल हुए यात्रियों के लिए “छठ-पूजा” का वही महत्व है, जो बंगाल के लिए “दुर्गा पूजा” और केरल के लिए “ओणम” का है। बिहार के जो लोग प्रदेश से बाहर रहते हैं वे सभी छठ पूजा के अवसर पर अपने घर-परिवार के पास पहुंचना चाहते हैं। दीवाली के अगले दिन से ही इन परिवारों का गांवों की ओर जाने का क्रम शुरू हो जाता है। रेल मंत्रालय इन सब बातों को जानता है, तो क्यों नहीं इन दिनों के लिए विशेष प्रबंध किए जाते? असम, बिहार में बाढ़ हर वर्ष आती ही है। इसके लिए पहले से ही ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं की जाती है, कि कम से कम नुकसान हो। भयंकर सर्दी और गर्मी से गरीब आदमी हर साल मरता ही है तो सभी महानगरों में उन लोगों के रहने के लिए “रैनबसेरे” क्यों नहीं बनाये जाते? दो वर्ष पूर्व दीवाली के बाद गोरखपुर जाने वाली गाड़ी में हो रही दुर्गति को मैंने स्वयं भी भुगता है। अमृतसर फ्लाइंग मेल में जहां एक बार बैठ गए तो अगले 24 घटे वहां से हिला नहीं गया। डिब्बों के छतों पर बैठे लोग मौत से खेलते हुए अपने ठिकाने पहुंचे थे। लुधियाना से लेकर दिल्ली तक जो दौड़-भाग मचती है, उसे वही जानता है जिसे सहना पड़ता है। रेल मंत्री केवल मौखिक सहानुभूति करके अपने कर्तव्य की इतिश्री न समझें। अगले वर्ष गरीब यात्रियों को यह संकट न सहना पड़े, इसके लिए अभी से प्रबंध करें।

-लक्ष्मीकान्ता चावला

अमृतसर (पंजाब)

तेजोमयी अंक ने प्रभावित किया। पर आपसे शिकायत है कि भाजपा नेताओं को बहुत छापते हैं। मेरे विचार से पाञ्चजन्य के पाठकों पर इसका अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता है। समाज का हर व्यक्ति पाञ्चजन्य को पढ़ सके इसके लिए यह बहुत जरूरी है कि आप समदृष्टि अपनाएं। पाञ्चजन्य का काम है हर व्यक्ति तक हिन्दुत्वनिष्ठ विचारों को पहुंचाना।

-लोकेन्द्र सिंह राजपूत

ग्वालियर (म.प्र.)

सुश्री उर्वा अध्वर्यु की रपट “24 घंटे” रुचिकर थी। धन्य हैं श्रीमती लीला बेन और उनके पति श्री विक्रम। रोजी-रोटी के लिए सुबह से देर रात तक व्यस्त रहने के बावजूद ये लोग समाज सेवा में योगदान दे रहे हैं। इनके बारे में लिखने वाली लेखिका ने भी एक आदर्श स्थापित किया है। रपट लिखने के लिए वह लीला बेन के यहां पूरी रात रुकीं, वहीं खाना खाया…। यह कम बड़ी बात नहीं है। इसके लिए उन्हें हार्दिक बधाई!

-बी.एल. सचदेवा

263, आई.एन.ए. मार्केट, नई दिल्ली

हमारे यहां के कई अखबार महिलाओं के इस तरह के चित्र छाप रहे हैं कि मानो उन लोगों ने कसम खा ली हो कि महिलाओं के शरीर पर वस्त्र नहीं रहने देना है। इन अखबारों को निकालने वाले क्या अपने परिवार के साथ अपने ही अखबार पढ़ सकते हैं? जरा सोचिए, समाज को ये क्या दिशा दे रहे हैं? इस विकट स्थिति में तेजोमयी अंक समाज को राह दिखाता प्रतीत हुआ है।

-विशाल कुमार जैन

1/2096, गली नं. 21, पूर्वी रामनगर, शाहदरा, दिल्ली

सहज एवं सुलभ

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, मध्य क्षेत्र के प्रचारक श्री नरमोहन दोशी का निधन एक अपूरणीय क्षति है। यद्यपि श्री नरमोहन मध्य क्षेत्र में बहुत थोड़े समय (6 वर्ष) रहे, किन्तु अपने सरल व्यवहार, सहजता व सुलभता के कारण स्वयंसेवकों में शीघ्र ही लोकप्रिय हो गए थे। मध्य क्षेत्र के तीनों प्रांतों यथा महाकौशल, मध्य भारत व छत्तीसगढ़ में संघ विचार परिवार का व्यापक विस्तार है। इस कारण स्वाभाविक रूप से वे बहुत व्यस्त रहते थे किन्तु बड़े-बड़े कार्यक्रमों, बैठकों आदि में सामान्य स्वयंसेवकों से भी स्वत: ही हाल-चाल पूछते रहते थे। अस्वस्थता के बावजूद वे बहुत प्रवास करते थे। संघ परम्परा में सारे कार्यकर्ताओं ने कार्य के ऐसे ही कीर्तिमान खड़े किए हैं। नरमोहन जी भी इसी परम्परा की एक जीवन्त कड़ी थे।

-हर्षेश सोनी

ढोंगा, जिला- टीकमगढ़ (म.प्र.)

भ्रमित न करें

मीडिया में हिन्दुत्व के बारे में जैसी चर्चा होती रहती है, उससे ऐसा लगता है मानो हिन्दुत्व इस्लाम, ईसाइयत और माक्र्सवाद जैसा एक वाद है। ये सब वाद मोहम्मद, ईसा, माक्र्स जैसे किसी भी व्यक्ति पर श्रद्धा रखने वालों ने खड़े किए हैं। हिन्दुत्व इस तरह की श्रद्धा से उत्पन्न कोई वाद नहीं है, न उसकी कोई एक विचारधारा है। यदि भाजपा के नेता हिन्दू हैं, तो कांग्रेसी और कम्युनिस्ट भी हिन्दू ही हैं। समझने की बात है कि संघ की प्रार्थना में अथवा प्रतिज्ञा में हिन्दू राष्ट्र, धर्म, संस्कृति, समाज शब्द तो हैं किन्तु हिन्दुत्व शब्द नहीं है। हिन्दुत्व को वाद बताकर मीडिया भ्रमित कर रहा है।

-श.द. लघाटे

संकट मोचन आश्रम

रामकृष्ण पुरम-6, नई दिल्ली

आयातित विचारों को त्यागें

आयातित विचारों से इस देश को कभी भी एक नहीं रखा जा सकता। इसका इतिहास हम देख सकते हैं। प्राचीन समय में भारत की भौगोलिक सीमाएं कितनी विशाल थीं। मगर आयातित विचारों से भारत निरन्तर बंटता चला गया। ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंगलादेश आदि भारत के हिस्से थे। एक समय था, जब सम्पूर्ण विश्व पर भारतीय विचारों की अमिट छाप थी। पर आयातित विचारों वाले भारत को बांटते चले जा रहे हैं। माओवादी चीन की शह पर नेपाल, भूटान और भारत में हिंसा फैलाकर कानून-व्यवस्था को तहस-नहस कर रहे हैं। इस कार्य में नक्सलवादी भी लगे हैं। माक्र्सवादी-लेनिनवादी रूस की ओर निहारते थे। बोडो-मिजो-नागा विद्रोहियों के पीछे ईसाई मिशनरी खड़े हैं। मिशनरियों का सबसे बड़ा हथियार मतान्तरण है। इसकी धार छद्म पंथनिरपेक्षता है। साम्प्रदायिक दंगों और आतंकवादी नरसंहारों के पीछे राष्ट्रविरोधी लोग हैं। बड़ी ही विकट स्थिति है। नेपाल और भूटान का अस्तित्व खतरे में है। भारत की अखंडता को चुनौती दी जा रही है। यदि हम राष्ट्र के प्रति समर्पित हैं, तो हमें सबसे पहले आयातित विचारों को त्यागना होगा। हमारे पास इतनी विचार-पूंजी है कि वह कभी भी कम नहीं होगी। हम उसे जानने-पहचानने की कोशिश करें। अपने विकारों को त्यागकर सभी भारतीय एक साथ खड़े हों।

-धवल जगमोहन

333, सेठी नगर, उज्जैन (म.प्र.)

अपसंस्कृति को रोकें

इसे हम अपने देश की विडम्बना ही कहेंगे कि भारतीय संस्कृति हर युग में विदेशी आक्रमणों को सहती आई है। मुगलों, यवनों, हूणों और अंग्रेजों से तो भारत मुक्त हो गया, किन्तु भारतीय संस्कृति को आज भी हमले सहने पड़ रहे हैं। आजादी के बाद से वामपंथी दल कांग्रेस के सहारे भारतीय संस्कृति को तहस-नहस करने में जुटे हैं। पर ये सभी हमले भारतीय संस्कृति को इतना नुकसान नहीं पहुंचा सके जितना कि “स्टार प्लस” पर प्रसारित किए जा रहे धारावाहिकों ने पहुंचा दिया है और पहंचा रहे हैं। एक ओर तो इन धारावाहिकों को अटपटे व अविश्वसनीय प्रसंगों द्वारा लम्बा खींचा जा रहा है। साथ ही, महिला चरित्रों को अपमानित किया जा रहा है। तीन-चार विवाह कराने की एक बेहूदा संस्कृति समाज पर थोपी जा रही है। यदि समय रहते इन धारावाहिकों पर नियंत्रण नहीं किया गया तो शीघ्र ही भारतीय समाज की एक विकृत तस्वीर सामने होगी, जिसके लिए राजनीतिज्ञ और कला क्षेत्र के लोग जिम्मेदार होंगे।

-कमल कुमार जैन

9/2054, गली नं. 6, कैलाश नगर, दिल्ली

ध्यान दें

पाञ्चजन्य बहुत देर से और यदा-कदा ही मिलता है। आज जबकि देश का हिन्दू बहुसंख्यक होकर भी राजनीतिज्ञों के कारण बंटा हुआ है, वर्तमान सरकार द्वारा इतिहास के तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है और मीडिया भी पक्षपात करता है, ऐसे में आवश्यकता है पाञ्चजन्य को अधिक से अधिक लोगों तो पहुंचाने की ताकि हिन्दुओं तथा राष्ट्रभक्तों पर होने वाले प्रहारों को उजागर कर हिन्दू समाज को संगठित किया जा सके। हमारे नगर में लाखों की जनसंख्या होने के बावजूद पाञ्चजन्य की मात्र 55 प्रतियां आती हैं, ऐसे में हम क्या आशा कर सकते हैं? अत: इस बारे में कुछ पहल करें तो हिन्दू समाज का बड़ा भला होगा।

-हरिपाल सिंह

बी-338, एन.सी.एल.,

पो. – जयन्त, सीधी (म.प्र.)

हफ्ता

जंगल की लकड़ियां

कौन चुराता है?

वन विभाग को

बेशक पता है…।

मगर वे उनकी

धरपकड़ क्यों करें?

उन्हें तो बदस्तूर

मिलता हफ्ता है …।।

-श्रीराम “अकेला”

क्षितिज निवास, समलाई चौक, बनसूला, बसना,

महासमुन्द (छ.ग.) 493554

भ्रम टूटेगा

पूरे भारतवर्ष में, है उमड़ा आक्रोश

नहीं शंकराचार्य पर, साबित कोई दोष।

साबित कोई दोष, हुईं क्रोधित जयललिता

उनके लिए धर्म से भी ऊंची है सत्ता।

कह “प्रशांत” पर जल्दी ही यह भ्रम टूटेगा

उनका ताज ठोकरें जन-जन की खाएगा।।

-प्रशांत

बिन पानी सब सून

दु:खी हैं सब ताल-सरोवर

सूखता सबका नीर

आज अगर न चेते हम

कल होगा गम्भीर।

कोख सूखती धरती की

पंछी भी बेहाल

ताल, तलैया, सरवर सूखे

जड़ चेतन बदहाल।

इसका जिम्मा सिर्फ हमारा

सिर्फ हमारा, सिर्फ हमारा

आने वाली पीढ़ी को तुम

मत करना कंगाल।

आज अगर न चेते हम

कल होगा गम्भीर।

दोष नहीं यह और किसी का

यह सब अपनी करनी है

भूत भूलकर अब भविष्य के

जल की रक्षा करनी है।

रोकनी होगी मिलकर हमको

पानी की बर्बादी, वरना तड़प उठेगी सब

धरती की आबादी।

जल को धर्म बनाना होगा

घर-घर अलख जगाना होगा

जल, धर्म, राष्ट्र बचाना होगा।

-सुरेन्द्र बांसल

507/3, गोपी विहार, शाहाबाद

मारकण्डा-136135(हरियाणा)

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