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सुनो कहानीयह होती है महानताराम प्रभूणे नाम का एक युवक सेठ देवराव के यहां नौकरी करके रोजी कमाता था। एक रोज जब राम प्रभूणे सेठ के हाथ धुला रहा था तो उसकी निगाह सेठ के कानों में चमकते कीमती मोतियों में उलझ गई और पानी सेठ के पैरों पर गिरने लगा। सेठ ने उसे फटकारते हुए कहा- “तू कर क्या रहा है? मेरे हाथ धुला रहा है या पानी बेकार फेंके जा रहा है? तू क्या अंधा हो गया रे?” राम प्रभूणे ने कहा- “गलती हो गई मालिक! मैं आपके कान के मोती देखने लगा ……”। तो सेठ ने पुन: उसे फटकारते हुए कहा- “मोती देख रहा था मूर्ख! अरे, ऐसे मोती कभी तेरे बाप ने भी देखे हैं?” राम प्रभूणे के दिल में सेठ की यह बात गहरे पैठ गई, क्योंकि सेठ ने उसके पिता का अपमान करने में कोई कसर नहीं रखी थी। वैसे भी आये दिन बात-बात पर सेठ उसे अपमानित करता ही रहता था। सेठ खुद को सतारा (महाराष्ट्र) का सबसे बड़ा धनी मानकर अहंकार में चूर रहता था। पर गरीब होते भी राम प्रभूणे का स्वाभिमान सोया नहीं था, अत: उसने अगले दिन ही सेठ की नौकरी छोड़ दी। इसके बाद वह किसी तरह सतारा से काशी आया, क्योंकि उसने निश्चय कर लिया था कि अब वह भी पढ़ेगा। अपने कुल का नाम करेगा। उस जमाने में काशी में बड़े ही उद्भट विद्वान मौजूद थे और नि:शुल्क विद्या दान करने के लिए विख्यात थे। ऐसे ही विद्वानों की कृपा से राम प्रभूणे भी वहां पढ़ने लगा। लगातार 2 वर्ष तक पढ़ाई करने के बाद वह व्याकरण, न्याय, तर्क और अर्थशास्त्र के ग्रंथों के अनुशीलन में समर्थ हो गया था। भले ही वह इस दौरान कष्टों को झेलता रहा। राम प्रभूणे अब राम शास्त्री के नाम से श्रेष्ठ शास्त्रज्ञ माना जाने लगा। राम शास्त्री जब 12 वर्ष बाद काशी से सतारा लौटा तो उसे न केवल पुणे के विद्वानों ने सम्मानित किया, वरन् स्वयं तत्कालीन पेशवा ने भी उन्हें अपने राज्य का एक उच्चाधिकारी नियुक्त किया और तब सतारा का वह सेठ देवराव भी उसका सम्मान करने आया। उसने राम शास्त्री से अपने द्वारा किए गए दुव्र्यवहार पर क्षमा मांगी। सेठ ने देखा कि अब राम शास्त्री के कानों में जो मूल्यवान मोती जगमगा रहे हैं, वे उसके मोतियों से कहीं अधिक कीमती हैं। किन्तु विनम्र राम शास्त्री ने सेठ से कहा, “सेठ जी! मैं जो कुछ भी विद्या-लाभ कर पाया और आज जो प्रतिष्ठा प्राप्त कर रहा हूं, उसका श्रेय तो आपकी उस फटकार को ही जाता है। मानस त्रिपाठीबूझो तो जानेंप्यारे बच्चो! हमें पता है कि तुम होशियार हो, लेकिन कितने? तुम्हारे भरत भैया यह जानना चाहते हैं। तो फिर देरी कैसी?झटपट इस पहेली का उत्तर तो दो। भरत भैया हर सप्ताह ऐसी ही एक रोचक पहेली पूछते रहेंगे। इस सप्ताह की पहेली है-ले घोड़े का रूप धरा पर, प्रकट हुआ गति का अवतार, था राणा प्रताप का प्रिय वह, रहते उस पर सदा सवार।नाम बताने वाले को चित्तौड़ प्रान्त ले जाएंगे, और समाधि पर उसकी हम श्रद्धा-सुमन चढ़ाएंगे।।उत्तर: (चेतक)24
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