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यात्रा का महात्म्यवैसे तो देशभर, विशेषकर जम्मू-कश्मीर में भगवान शंकर की पूजा-अर्चना के अनेक स्थान हैं। किन्तु कश्मीर घाटी की ऊंचाइयों पर स्थित गुफा में प्राकृतिक चमत्कार से बनने वाले पवित्र शिवलिंग और उसके निमित्त श्रावण मास में पवित्र अमरनाथ की यात्रा का एक अलग ही महत्व है। पहाड़ों की ऊंचाइयों से गुजरते हुए यह प्राकृतिक गुफा श्रीनगर से 144 किलोमीटर की दूरी पर 12,729 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। इस पवित्र स्थान की बड़ी गुफा के भीतर श्रावण मास में चन्द्रमा का आकार बढ़ने पर हिम का एक बड़ा शिवलिंग बनता है और घटने के साथ घटता जाता है। श्रावण पूर्णिमा अर्थात् रक्षाबन्धन के दिन इस शिवलिंग का आकार पूर्ण होता है। इसे स्वयं शम्भू कहा जाता है।पवित्र अमरनाथ की यात्रा दुर्गम पहाड़ी रास्तों और बर्फीली हवाओं के कारण बहुत कठिन मानी जाती है। इस यात्रा के दौरान अनेक बार प्राकृतिक आपदाओं से दो-चार होना पड़ता है। सन् 1996 में अव्यवस्थाओं के कारण 300 तीर्थयात्रियों की मृत्यु हो गई थी। इन प्राकृतिक दुर्घटनाओं के अतिरिक्त अगस्त, 2000 में आतंकवादियों ने पहलगाम शिविर पर हमला करके 31 तीर्थयात्रियों की हत्या कर दी थी। इसी प्रकार 21 जुलाई, 2001 को शेषनाग में आतंकवादियों के हमले में 15 व्यक्ति मारे गए थे, जिनमें सात तीर्थयात्री, चार भारवाहक मजदूर तथा दो कर्मचारी थे। इन दुर्घटनाओं को ध्यान में रखते हुए सरकार ने यात्रा को नियंत्रित करने तथा दुर्घटनाओं को रोकने के लिए नितीश सेन गुप्ता जांच आयोग तथा अन्य समितियों का गठन किया था। इन समितियों तथा आयोग की सिफारिशों के आधार पर कुछ वर्ष पूर्व माता वैष्णो देवी धार्मिक न्यास (श्राइन बोर्ड) की भांति श्री अमरनाथ धार्मिक न्यास (श्राइन बोर्ड) गठित किया गया। जिसके पदेन अध्यक्ष राज्य के राज्यपाल होते हैं। इस समिति में अनेक हिन्दू संगठनों के प्रतिनिधि सदस्य हैं। यात्रा की व्यवस्था तथा पवित्र गुफा की देख-रेख इसी समिति की जिम्मेदारी है।9
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