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5वां पं. दीनदयाल उपाध्याय स्मृति व्याख्यानटकराव नहीं, समन्वय ही भारतीय दृष्टिकोणकार्यक्रम में मंच पर हैं (बाएं से) श्री सुन्दर सिंह भण्डारी, श्री महेश च्रद्र शर्मा एवं प्रो. जी.एस. नारायणमूर्ति।-सुरेश सोनी, सहसरकार्यवाह, रा.स्व.संघधर्म क्या है, विज्ञान क्या है? धर्म और विज्ञान में द्वन्द्व है या दोनों के बीच समन्वय और उस कारण विकास में दोनों का सहयोग? रा.स्व.संघ के सह सरकार्यवाह श्री सुरेश सोनी ने 5वें पं. दीनदयाल उपाध्याय स्मृति व्याख्यान में धर्म, विज्ञान और एकात्म मानवदर्शन का बारीकी से विश्लेषण किया। गत 25 सितम्बर को पं. दीनदयाल उपाध्याय के जन्मदिवस पर आयोजित इस व्याख्यान का विषय था- धर्म और विज्ञान तथा एकात्म मानवदर्शन। नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में इस कार्यक्रम का आयोजन एकात्म मानवदर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान तथा दीनदयाल शोध संस्थान ने संयुक्त रूप से किया था। अपने व्याख्यान में श्री सोनी ने कहा, मानव सभ्यता का विकास धर्म और विज्ञान रूपी दो तटों के बीच से गुजरता है, दोनों तटों की अपनी महत्ता रहती है। लेकिन धर्म और विज्ञान के बीच द्वन्द्व क्यों दिखता है और मानव जाति के उत्तरोत्तर विकास पर इसका क्या परिणाम होता है, इसकी पहचान जरूरी है।श्री सोनी ने स्पष्ट किया कि भारतीय मनीषियों ने अस्तित्व, विकास और आचरण को लेकर धर्म की व्याख्या की है और विज्ञान भी इसी में समाहित है। पं. दीनदयाल उपाध्याय ने इस स्थिति का आकलन बहुत पहले ही किया था और कहा था कि व्यक्ति, परिवार, समाज, देश और विश्व जीवन में एकात्म तत्व का दर्शन व्यक्त होना चाहिए।कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे गुजरात के पूर्व राज्यपाल श्री सुंदर सिंह भण्डारी ने कहा कि जब से केवल अपने तक ही देखने का संकुचित दृष्टिकोण बढ़ा है तभी से एक-दूसरे को दबाकर आगे निकलने की होड़ और संघर्ष पैदा हुआ। इससे पूर्व विषय प्रवत्र्तन किया एकात्म मानवदर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान के अध्यक्ष डा. महेश चंद्र शर्मा ने।कार्यक्रम में राजधानी के अनेक वरिष्ठ साहित्यकार, समाजसेवी और पत्रकार उपस्थित थे। अंत में दीनदयाल शोध संस्थान के प्रो. जी.एस. नारायणमूर्ति ने धन्यवाद ज्ञापित किया। -प्रतिनिधि15
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