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दोष उन अभिभावकों का भी है जो अपने बच्चे कोअच्छा इंसान नहीं, ऊंचा पैसा कमाने वाला बनाना चाहते हैं-गोवर्धन गुप्ताप्रधानाचार्य, बाल भारती पब्लिक स्कूल, ब्राज विहारसमाज में संयुक्त परिवारों की जगह एकाकी परिवारों ने ले ली है। इसके कारण माता-पिता का पूरा ध्यान अब अपने एक-दो बच्चों पर केन्द्रित है। माता-पिता भी अपनी आकांक्षाएं, या कहें महत्वाकांक्षाएं अपने बच्चों के जरिए साकार होते देखने के इच्छुक हो चले हैं, भले उसके लिए कुछ भी करना पड़े। साथ ही पश्चिमी संस्कृति, भौतिकतावाद का दुष्प्रभाव भी पड़ा है। बच्चों में भी ये भावनाएं पैदा की जा रही हैं कि भले ही वे उतने सक्षम नहीं हों, फिर भी उन्हें ऊंचे से ऊंचा स्थान पाना है। इन सबका नतीजा यह होता है कि अमीर वर्ग के लोग पैसे के बल पर अपने बच्चों को इंजिनियर या डाक्टर बनाने की होड़ में लगे हैं। यही कारण है कि चारों ओर निजी चिकित्सकीय और इंजिनियरिंग संस्थान खुले हुए हैं जहां दस-दस लाख रुपए लेकर डाक्टर या इंजिनियर बनाया जाता है।मुझे लगता है कि आजादी के बाद के वर्षों में समाज में चरित्र विकास का महत्वपूर्ण पहलु पीछे रखा जाता रहा है। ऐसे मां-बाप भी हैं जो पैसे, ताकत और पहुंच के बल पर प्रश्नपत्र तक खरीदने की हद तक चले गए हैं। फिर इतने अधिक निजी शिक्षण संस्थान खुले हुए हैं जो अपने यहां का परिणाम सर्वोत्तम बनाने के लिए ऊंचे शुल्क पर प्रश्नपत्र तक उपलब्ध कराने की बात करते हैं। चरित्र इतना गिर चुका है कि पैसे का लालच देखकर निष्ठा डिग जाती है। हालत यह है कि आज अभिभावक दाखिले के समय शिक्षकों से यह नहीं कहते कि “मेरे बच्चे को अच्छा इंसान बनाइए”, बल्कि उस छोटे बच्चे से बुलवाते हैं कि “मुझे बड़ा होकर पायलट बनना है।” यानी बच्चे के कोमल मन में पहले से ही यह खाका खींच दिया जाता है। अभिभावकों को स्कूलों में मूल्य आधारित शिक्षा, सामान्य ज्ञान, आचार-व्यवहार आदि के पठन-पाठन में ज्यादा रुचि नहीं रह गई है, वे तो उसे इंजिनियरिंग कालेज में दाखिला दिलाने लायक शिक्षा पाते देखना चाहते हैं।11
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