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अंक-संदर्भ, 18 जुलाई, 2004
पञ्चांग
संवत् 2061 वि., वार ई. सन् 2004
अधिक श्रावण कृष्ण 8 रवि 8 अगस्त
,, ,, 9 सोम 9 ,,
(श्रावण सोमवार व्रत)
,, ,, 10 मंगल 10 “”
,, ,, 11 बुध 11 “”
(पुरुषोत्तमी एकादशी व्रत)
,, ,, 12 गुरु 12 “”
,, ,, 13 शुक्र 13 “”
,, ,, 14 शनि 14 “”
जन-मन भंजक वाम
आवरण कथा के अन्तर्गत श्री बलबीर पुंज के लेख “प. बंगाल की त्रासदी: भुखमरी और बर्बर हिंसा” से सिद्ध होता है कि सामाजिक न्याय और लोककल्याण का ढोल पीटने वाले वामपंथी कितने हिंसक हैं। उन्हें केवल और केवल अपने “वोट बैंक” से मतलब रहता है। जो वामपंथी पिछले 27 साल से प. बंगाल में राज कर रहे हैं और जो सर्वहारा की बात करते हैं, उनके शासनकाल में आम आदमी भूख से मरे, यह एक विडम्बना ही है।
-अमित भार्गव
डी-41, कालकाजी विस्तार, नई दिल्ली
सामाजिक न्याय, समरसता और लोककल्याण की थोथी बातें करने वाले वामपंथियों के शासन में इस तरह की असामान्य स्थिति यही दर्शाती है कि कम्युनिस्टों का उद्देश्य मात्र अंधा राज-भोग है अन्यथा बंगाल में आज भुखमरी नहीं होती। क्यों नहीं बंगाल विकसित राज्यों की श्रेणी में खड़ा हो पाया? क्यों वहां के लोग चिकित्सकीय सुविधा के अभाव में दम तोड़ रहे हैं? बंगाल की जनता को समझ लेना चाहिए कम्युनिस्ट उनके हमदर्द न थे, न हैं।
-शक्तिरमण कुमार प्रसाद
श्रीकृष्णानगर, पथ सं. 17,
पटना (बिहार)
कौन है पंथनिरपेक्ष?
कही-अनकही स्तम्भ में श्री दीनानाथ मिश्र का लेख फिर “लीग का बिसमिल्लाह” प्रभावित कर गया। अब कांग्रेस नेतृत्व में सत्तारूढ़ तथाकथित पंथनिरपेक्ष सरकार को अपने गिरेबान में झांककर देखना चाहिए क्या वास्तव में कांग्रेस पंथनिरपेक्ष है। सरकार में मुस्लिम लीग जैसा साम्प्रदायिक दल भी शामिल है। यह वही मुस्लिम लीग है, जिसके कारण भारत का विभाजन हुआ था। इन जैसे दलों के हाथों को मजबूत करके कांग्रेस क्या फिर से देश का विभाजन कराना चाहती है?
-विजय बंसल
21/490, मेन रोड,
त्रिलोकपुरी, दिल्ली-91
धन्यवाद!
“दिल्ली में मुस्लिमों का प्रदर्शन: इशरत के नाम पर वोट राजनीति बन्द करो” समाचार छापकर आपने “भारतीय मुस्लिम परिषद्” एवं “माई हिन्दुस्तान” जैसे राष्ट्रवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया है। इस सहयोग के लिए भारतीय मुस्लिम परिषद् की मध्य प्रदेश इकाई पाञ्चजन्य परिवार को विशेष रूप से धन्यवाद देती है।
-मुस्तफा खान
प्रदेश अध्यक्ष
भारतीय मुस्लिम परिषद्, म.प्र. इकाई
अब्दुल हमीद नगर,
इटारसी (म.प्र.)
नियम बदले जाएं
माटी का मन स्तम्भ में डा. रवीन्द्र अग्रवाल का लेख “बैंक बने गांवों के शोषक” सटीक जानकारी देता है। अगर गांव का धन गांव के विकास में लगे तो किसानों और गांवों की दयनीय स्थिति में भी सुधार होगा। हमारे गांव के कई किसान बैंकों का ब्याज चुकाते-चुकाते मृत्यु को प्राप्त हो गए, किन्तु कर्जे से मुक्ति नहीं मिली। बैंक ने उनकी जमीन भी नीलाम कर दी। किसी भी बैंक द्वारा एक जिले का पैसा अन्य जिले में ले जाने पर अगर प्रतिबन्ध लग जाए तो यह गांवों के प्रति सरकार का अच्छा कदम होगा।
-पवन विश्वकर्मा
सुदामानगरगंज, सीहोट (म.प्र.)
अंक-संदर्भ-11 जुलाई, 2004
आवरण कथा के अन्तर्गत श्री राजीव श्रीनिवासन का लेख “उनकी शहादत किसके लिए” विचारणीय है। यह विडम्बना ही है कि मुफ्ती सरकार द्वारा अमरनाथ यात्रा की तो उपेक्षा होती है किन्तु हज यात्रा की बड़ी चिन्ता की जाती है। सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन का कथन “संस्कृति के भगवा रंग पर कम्युनिस्ट आघात का विरोध करें” समसामयिक है।
-शशीन्द्र शर्मा
43, नया विजय नगर,
आगरा (उ.प्र.)
जागृति की आवश्यकता
अफसोस होता है यह देखकर कि न तो मीडिया ही हमारे शहीद सैनिकों के विषय में छापने की जरूरत समझता है और न ही वह सेकुलर खेमा, जो एक आतंकवादी इशरत के लिए तो छाती पीट कर शोर मचा सकता है, परन्तु शहीद सैनिकों के लिए खामोश रहता है। इस अन्याय को खत्म करने के लिए देश में बड़े पैमाने पर जन-जागृति की आवश्यकता है।
-रमेश चन्द्र गुप्ता
नेहरू नगर,
गाजियाबाद (उ.प्र.)
एक अच्छा प्रयास
“मीडिया : समाचार ही नहीं, सेवा भी” अरुण कुमार सिंह की इस रपट में मीडिया के सेवा कार्यों की विस्तृत जानकारी मिली। “पुढारी” के बारे में पहले भी पढ़ा था और अब फिर विस्तार से पढ़ने को मिला। इस तरह के सेवा कार्यों से समाज की एकजुटता दिखती है। ये सब कार्य घटना घटित होने के बाद पीड़ितों की सहायता के लिए होते हैं, अच्छी बात है। किन्तु मीडिया इस प्रकार सेवा कार्यों के साथ-साथ स्थायी विकास के कार्य भी अपने हाथ में ले तो सेवा और सार्थक हो सकती है।
-बालकृष्ण कांकाणी
6/83, निर्मल जीवन, ठाणे (पूर्व), (महाराष्ट्र)
राज्यपाल पद की क्या आवश्यकता
“अंगुली की स्याही छूटने तक” श्री टी.वी.आर. शेनाय का लेख अच्छा लगा। उनका कहना है कि ज्यादातर राज्यपाल करते ही क्या हैं। वे मंत्रियों को शपथ दिलाते हैं। यह काम तो वहां के मुख्य न्यायाधीश द्वारा किया जा सकता है। राज्यपाल का काम सिर्फ प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगने के दौरान होता है। तो उस काल में किसी गैर राजनीतिज्ञ की नियुक्ति करके काम चल सकता है। ऐसा करने से देश का धन भी बचेगा और राजकीय विवाद भी कम होंगे।
-रामचंद्र नरसिंग अन्हाले
पाटबेथारे नगर, नांदेड़-5
(महाराष्ट्र)
हिन्दू अस्मिता पर चोट
श्री उम्मेद सिंह बैद ने फिल्म “देव” से सम्बंधित जो प्रश्न उठाए हैं, वे एकदम सार्थक हैं। फिल्म के निर्देशक गोविन्द निहलानी ने गोधरा हत्याकाण्ड को पैसे तथा अल्पसंख्यकों में अपनी छवि ऊंची करने के लिए सच को उलट कर दिखाया है। उन्होंने हिन्दू अस्मिता को चोट पहुंचाई और राम के काम में लगे तथा शहीद हुए भक्तों का अपमान किया है। सेंसर बोर्ड को भी ऐसी फिल्म के प्रदर्शन की अनुमति नहीं देनी चाहिए थी।
-वैद्य विनोद कुमार शर्मा
भूरा, मुजफ्फरनगर (उ.प्र.)
आ रही रुलाई
वे पढ़ने को आये थे, लेकिन पाई मौत
उनको क्या मालूम था, साथ चली है सौत।
साथ चली है सौत, चीख कुछ काम न आई
ह्मदयहीन को भी यह सुन आ रही रुलाई।
पर “प्रशांत” इससे क्या हम कुछ सीख सकेंगे
या कुछ दिन रो-धोकर फिर से सो जाएंगे?
-प्रशांत
सूक्ष्मिका
कमीशन खा लें
हर आंख के आंसू
पोंछ दिए जाएंगे
पहले कमीशन खा लें
फिर राशि बंटवाएंगे
-शानू राज “बेखौफ”
सिविल लाईन,
सहजश्री रेस्टोरेन्ट के समीप, कटनी (म.प्र.)
श्रद्धाञ्जलि
चन्द्रशेखर पाण्डे
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, उड़ीसा के वरिष्ठ स्वयंसेवक और सम्बलपुर विभाग के पूर्व विभाग कार्यवाह श्री चन्द्रशेखर पाण्डे का गत 9 जून को निधन हो गया। वे 69 वर्ष के थे। मिर्जापुर (उ.प्र.) जिले के ग्राम बीरौरा में 15 जुलाई, 1935 को जन्मे श्री चन्द्रशेखर पाण्डे बाल्यकाल में ही स्वयंसेवक बने थे। वे 1953 में सत्याग्रह और 1975 में आपातकाल के दौरान जेल गए थे। एक आदर्श स्वयंसेवक के समान वे जीवनभर संघ कार्य में जुटे रहे। पाञ्चजन्य परिवार दिवंगत आत्मा के प्रति हार्दिक श्रद्धाञ्जलि अर्पित करता है।
पुरस्कृत पत्र
राज्यसभा महिला-सदन बने
काफी समय से लोकसभा व विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने पर विचार चल रहा है। इसके लिए कई बार लोकसभा में विधेयक प्रस्तुत होते-होते रह गया। मुझे लगता है कि यह विधेयक यदि पारित भी हो जाए और इसे कानूनी रूप प्रदान भी कर दिया जाए तो भी यह व्यावहारिक रूप से सफल नहीं हो सकेगा।
ऐसा नहीं है कि देश में योग्य महिलाओं की कमी है, परन्तु पर्याप्त संख्या में योग्य महिलाएं चुनाव जीतकर आ सकेंगी, इसकी सम्भावना नगण्य है। बाहुबल, धनबल और जाति समीकरण ही तो अब चुनाव जीतने के आधार रह गए हैं। शायद इसी कारण शिव खेड़ा जैसे निरापद और हर दृष्टि से योग्य व्यक्ति दिल्ली के पढ़े-लिखे सम्भ्रान्त इलाके से लोकसभा का चुनाव हार गए।
मेरे विचार से लोकसभा तथा विधानसभाओं में महिलाओं के लिए स्थान आरक्षित करने के बजाय राज्यसभा और विधानपरिषदों को पूर्ण रूप से महिला सदन घोषित कर दिया जाए। ऐसा करने से योग्य महिलाओं को आम जनता के बीच वोट के लिए भाग-दौड़ करने की आवश्यकता नहीं रहेगी और उन्हें अपने स्तर पर प्रत्येक विषय पर समुचित विचार करने का पूरा अवसर प्राप्त होगा।
ग्रामसभाओं को भी पूर्ण रूप से महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिया जाए। ग्रामों में स्थानीय समस्याएं ही रहती हैं, जिनसे अक्सर घर की महिलाओं को ही जूझना पड़ता है। उनके पास समय भी रहता है। वे इन समस्याओं को आसानी से हल कर सकती हैं। पुरुष अपने समय का उपयोग अन्यत्र कर सकते हैं।
तकनीकी विषयों पर परामर्श हेतु विशेषज्ञों को नामांकित सदस्य के रूप में उच्च सदन में लिया जा सकता है। जैसे, स्वास्थ्य की दृष्टि से कोई वरिष्ठ चिकित्सक, निर्माण कार्य की दृष्टि से कोई योग्य अनुभवी अभियन्ता, शिक्षा की दृष्टि से कोई अवकाशप्राप्त शिक्षक अथवा शिक्षा अधिकारी। जहां तक लोकसभा व विधानसभाओं का प्रश्न है, वहां कोई महिला यदि सामान्य रूप से बिना आरक्षण चुनाव लड़कर आना चाहती है तो उसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
-बाल कृष्ण संगल
अधिवक्ता
55, राजा रोड, देहरादून (उत्तराञ्चल)
हर सप्ताह एक चुटीले, ह्मदयग्राही पत्र पर 100 रु. का पुरस्कार दिया जाएगा।सं.
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