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सम्पादकीय

by
Aug 8, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Aug 2004 00:00:00

स्वभावो नोपदेशेन शक्यते कर्तुमन्यथा

सुतप्तमपि पानीयं पुनर्गच्छति शीतताम्।

उपदेश से स्वभाव को बदला नहीं जा सकता, भली प्रकार गरम किया हुआ (खौलाया हुआ) पानी भी पुन: शीतल हो जाता है।

-विष्णुशर्मा (पंचतंत्र, 1/280)

भारतीय बंधक

तीन भारतीय नागरिकों को इराक में बंधक बना लिया गया। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक इन बंधकों के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिली है। हम प्रार्थना करते हैं कि वे सकुशल एवं सुरक्षित भारत लौट आएं। आखिरकार भारत इराक और वहां के लोगों का परम्परागत मित्र रहा है। परन्तु इस पृष्ठभूमि में यह जानना जरूरी होगा कि इस गंभीर संकट के समाधान के लिए भारत सरकार ने कितनी “गम्भीरतापूर्वक” कदम उठाए।

टेलीग्राफ के राजनयिक सम्पादक श्री के.पी. नायर ने बंधक संकट पर केन्द्रीय विदेश मंत्री श्री नटवर सिंह की भयंकर भूलों का बारीकी से विश्लेषण किया है। उनका कहना है कि श्री नटवर सिंह ने पिछली सरकार द्वारा कुवैत से भारतीय कामगारों के इराक प्रवेश पर लगा प्रतिबंध अचानक हटाया और इन तीन भारतीयों के बंधक बनाए जाने के बाद ही फिर से उस प्रतिबंध को लागू किया। इतना ही नहीं, श्री नटवर सिंह ने बंधक-संकट का हल ढूंढने की पूरी जिम्मेदारी मुस्लिम लीग के सांसद विदेश राज्य मंत्री ई. अहमद पर छोड़ दी।

ई. अहमद पहली बार केन्द्रीय मंत्री बने हैं, अनुभवहीन हैं और इतनी बड़ी समस्या के समाधान के लिए उनके पास कोई सूत्र नहीं था। शायद नटवर सिंह ने सोचा होगा कि इराक में अपहरणकर्ता भी मुसलमान हैं और विदेश राज्यमंत्री न सिर्फ मुसलमान हैं, बल्कि मुस्लिम लीग से भी हैं (यानी करेला और नीम चढ़ा) तो अहमद की एक अपील पर इराकी अपहरणकर्ता पिघल जाएंगे। इससे बढ़कर लापरवाही और क्या हो सकती थी। इतना ही नहीं, इराक मामलों के विशेषज्ञ तथा बगदाद में राजदूत रह चुके श्री अभ्यंकर को इसी समय ब्राुसेल्स में राजदूत बनाकर भेज दिया गया। यदि वे कुछ दिन रोक लिए जाते तो उपयोगी सहयोग कर सकते थे। इतना सब करके श्री नटवर सिंह इस्लामाबाद चले गए और वहां पत्रकारों से खुलकर कहा कि वे भारतीय बंधकों की रिहाई के लिए अमरीकी सरकार तथा इराक के (तथाकथित) विदेश मंत्री होशियार जबारी से बातचीत कर रहे हैं। इससे बढ़कर मूर्खता और क्या हो सकती थी!

नटवर सिंह ने अपहरणकर्ताओं को भाड़े के फौजी तक कह दिया, जबकि वे जानते थे कि भारतीय बंधकों की जान पूरी तरह उनके हाथ में है। श्री नायर लिखते हैं कि यह आश्चर्य ही है कि इतनी भयंकर भूलों के बावजूद भारतीय बंधक इतने समय तक जिन्दा कैसे रहे? क्योंकि नटवर सिंह के काम और बयान इन बेचारे भारतीयों की मौत का वारंट लिख रहे थे।

यदि श्री नटवर सिंह विदेश मंत्रालय संभालने के तुरंत बाद इराक में भारतीय कर्मचारियों के जाने पर प्रतिबंध न हटाते तो निश्चित रूप से ये तीनों भारतीय भी इराक पहुंच ही नहीं पाते। पिछली सरकार में विदेश मंत्री श्री यशवंत सिन्हा ने इराक की संवेदनशील स्थिति को देखते हुए भारतीयों के इराक प्रवेश पर सोच-समझ कर ही प्रतिबंध लगाया था। यह आश्चर्यजनक है कि श्री नटवर सिंह ने क्या सोच कर वह प्रतिबंध हटाया?

इसके अलावा भारत सरकार द्वारा क्या वह सब कुछ किया गया जो उसके वश में था ताकि इन तीनों को छुड़ाया जाए अथवा चिट्ठी-पत्री तक ही मामला सीमित रखा गया? कल्पना कीजिए यदि इन तीनों में से कोई एक भारत के किसी राजनेता, सत्ताधारी या विपक्षी का बेटा होता तो भी क्या वही प्रयास किए जाते जो अब किए गए? ये वे सवाल हैं जो सबके मन को व्यथित कर रहे हैं।

भारत के नागरिकों का सम्मान और प्राण सुरक्षित रहें, इसके लिए कोई भी सरकार औपचारिकता भर से ज्यादा चिंतित होती दिखती नहीं। पिछली सरकार में हमने देखा था कि बंगलादेश के सैनिक हमारे सीमा सुरक्षा बल के जवानों को न सिर्फ मार गए, बल्कि उनके शरीर जानवरों की तरह बांस पर टांग कर हमें देने आए। पर इससे हमारी इज्जत में कोई फर्क नहीं पहुंचा। इस्लामी अपहरणकत्र्ता हमारा विमान अपह्मत कर कंधार ले गए और विमान में ही एक यात्री की हत्या कर दी। इस पर भी हमें गुस्सा नहीं आया था। अब भी हालात बदले नहीं हैं।

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