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पाठकीय

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Jul 11, 2004, 12:00 am IST
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दिंनाक: 11 Jul 2004 00:00:00

अंक-संदर्भ , 10 अक्तूबर, 2004पञ्चांगसंवत् 2061 वि. वार ई. सन् 2004 कार्तिक कृष्ण 10 रवि 7 नवम्बर ,, ,, 11 सोम 8 नवम्बर ,, ,, 12 मंगल 9 नवम्बर ,, ,, 13 बुध 10 नवम्बर (धनतेरस) ,, ,, 14 गुरु 11 नवम्बर कार्तिक अमावस्या (दीपावली) शुक्र 12 नवम्बर कार्तिक शुक्ल 1 (श्रीगोवर्धन पूजा) शनि 13 नवम्बर वामपंथियों की दुरंगी चालआवरण कथा “कम्युनिस्ट और सरकार: कलह भी, फायदे का लालच भी” के अन्तर्गत श्री चन्दन मित्रा एवं श्री अमरनाथ दत्ता की समीक्षा पढ़ी। प्रारंभ से ही कम्युनिस्टों की नीति राष्ट्र के विरुद्ध ही रही है। इस समय भी वे देश की लोकतांत्रिक छवि को तो बिगाड़ ही रहे हैं, साथ ही साथ राष्ट्र का भी नुकसान कर रहे हैं। एक ओर तो ये लोग विदेशी मूल की सेनिया का नेतृत्व स्वीकार कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हें योजना आयोग में भारतीय मूल के विदेशी विशेषज्ञों की नियुक्ति पर बड़ी आपत्ति है। यह दोमुंहापन नहीं तो क्या है?-सूर्यप्रताप सिंह सोनगराडाक- कांडरवासा-457222 (म.प्र.)श्री शोभिक चक्रवर्ती ने अपने लेख “नौसिखिए माक्र्सवादी, सचेत कांग्रेस” में लिखा है कि कांग्रेस ने कम्युनिस्टों के साथ बड़ी चतुराई से व्यवहार किया है। उनके इस विचार से मैं सहमत नहीं हूं, क्योंकि कम्युनिस्ट सत्ता की जिम्मेदारी से बाहर रहकर सत्ता का मजा भी लूट रहे हैं और अपने हित साधने के लिए कांग्रेस की नाक में नकेल भी डाले हुए हैं।-रमेश चन्द्र गुप्तानेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)एक-दूसरे के विरोधी रहे वामपंथियों एवं कांग्रेसियों को भाजपा के भय ने एक साथ आने को विवश किया है। वरना ये एक होने से रहे। वामपंथियों के बारे में सर्वविदित है कि ये लोग घोर अवसरवादी भी रहे हैं। माक्र्स, लेनिन जैसे विदेशी विचारकों की आरती उतारने वाले माक्र्सवादी, विदेशी नेतृत्व के सामने “हां जी, हां जी” करते हैं, पर भारतवंशी विदेशी लेगों के नाम पर ये लोग गला फाड़कर चिल्लाते हैं। साफ है इन लोगों को देश से कोई मतलब नहीं है, बल्कि अपनी राजनीति कैसे चमके, इसकी चिन्ता उन्हें अधिक रहती है।-राजेश कुमारमोहनपुर, रजौन, जिला-बांका (बिहार)धर्म का स्थान?”भक्ति का बढ़ता बाजार”- श्रीमती विनीता गुप्ता ने अपनी रपट में उपयोगी एवं ज्ञानवद्र्धक जानकारी दी है। यह दु:खद है कि आज धर्म कैसेट, सी.डी. और टी.वी. चैनलों तक ही सिमटता जा रहा है। आचरण में धर्म के लिए जगह कुछ कम होती जा रही है।-रजत कुमार278, भूड़, बरेली (उ.प्र.)अलग से भक्ति चैनल और मनोरंजन चैनलों पर भक्ति धारावाहिकों का प्रसारित होना इस बात का संकेत है कि हमारे यहां धार्मिक आस्थाएं खत्म नहीं हुई हैं। यह रपट तो सुखद अनुभूति कराती है। लेकिन दूसरी तरफ आजकल ईश्वरीय स्तुति में दिखावे की जो फूहड़ता परोसी जा रही है, इससे उसकी गरिमा कम होती जा रही है। फिल्मी गानों की धुन पर ईश्वरीय स्तुति से आस्था पैदा नहीं होती है, बल्कि मानसिक विकृति को ही बढ़ावा मिलती है।-शक्तिरमण कुमार प्रसादश्रीकृष्णानगर, पथ संख्या-17पटना (बिहार)विचार की हत्याश्री देवेन्द्र स्वरूप का आलेख “तिरंगा, गांधीजी और सोनिया कांग्रेस” पढ़ा। वर्तमान कांग्रेस और उसके नेतृत्व को तिरंगा से कोई मतलब नहीं है। वास्तव में यह कांग्रेस गांधी, नेहरू व तिरंगा के नाम का उपयोग तो करती है लेकिन इनके प्रति उसकी निष्ठा नहीं है। जबकि गांधी जी के साथ-साथ नेहरू जी भी भगवा रंग को राष्ट्रीय एवं प्राचीन भारतीय रंग मानते थे। नेहरू जी ने राष्ट्रीय ध्वज में भगवा रंग को स्थान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी लेकिन उनके वंशज ही उनके विचारों के हत्यारे सिद्ध हो रहे हैं।-श्रीनारायण कोष्टाचैतन्यविहार, कानपुर (उ.प्र.)”मंथन” में सुश्री उमा भारती की तिरंगा यात्रा के सम्बंध में कांग्रेस के रवैये का बहुत सुन्दर वर्णन हुआ है। इसके लिए लेखक और पाञ्चजन्य परिवार को भी साधुवाद!-जगदीश भारद्वाज44 महावीर कालोनी, ओबेदुल्लागंजजिला- रायसेन (म.प्र.)शाकाहारी बनेंसरोकार स्तम्भ में श्रीमती मेनका गांधी पाठकों को अच्छी जानकारी दे रही हैं। पशुओं के प्रति उनकी जो धारणा है और वह जो कर रही हैं, उसमें हम सबको भी शामिल होना चाहिए। क्योंकि आम लोगों की सहभागिता से ही वह अपने उद्देश्य की प्राप्ति कर सकती हैं। मानव के शाकाहारी बनने से ही पशुओं से सम्बंधित अनेक समस्याओं का समाधान हो सकता है।-सुजल अग्रवाललोअर गुम्बा हट्टा, कालिम्पोंग,जिला-दार्जिलिंग (प. बंगाल)सुरक्षा कड़ी होपाकिस्तान में “ननकाना साहिब पर हमला” दु:खद है। जहां हिन्दू हितों को ताक पर रखकर भारत में अल्पसंख्यकों के मजहबी स्थानों की रक्षा की जाती है, वहीं पाकिस्तान में ननकाना साहिब जैसे पवित्र स्थल को भी कट्टरपंथी अपना निशाना बना रहे हैं। यही कट्टरपंथी पाकिस्तानी हिन्दुओं और सिखों का जबरन मतान्तरण भी कराते हैं। यही कारण है कि पाकिस्तान का अल्पसंख्यक वर्ग वहां अपने को असुरक्षित समझता है। अब उनकी संख्या 10 लाख से भी नीचे रह गई है, जबकि विभाजन के समय पाकिस्तान में 2 करोड़ हिन्दू थे। इसलिए पाकिस्तानी हिन्दुओं और सिखों की जान-माल और उनके उपासना स्थलों की सुरक्षा की व्यवस्था विशेष रूप की जाए।-विनोद कुमार शर्माभूरा, मुजफ्फरनगर (उ.प्र.)सोनिया की शैक्षिक योग्यता?पूर्व रक्षा मंत्री श्री जार्ज फर्नांडीस के वक्तव्य “सोनिया के झूठ का मुद्दा उठाएंगे” में वह ताकत है जो श्रीमती सोनिया गांधी एवं कांग्रेस के समक्ष एक चुनौती खड़ी कर सकती है। यह सोचा भी न था कि श्रीमती सोनिया गांधी की शिक्षा के सम्बन्ध में भी किसी घोटाले की गुंजाइश हो सकती है। उधर जनता पार्टी के अध्यक्ष श्री सुब्राह्मण्यम स्वामी द्वारा, रायबरेली के जिलाधिकारी से की गई शिकायत का परिणाम सामने आने तक देशवासियों को प्रतीक्षा करनी होगी।-राज बल्लभ राठौरराठौर परिसर, बखरी, बेगूसराय (बिहार)”हिन्दीतर” नहीं “अहिन्दी”सन् 1997 में मुझे अहिन्दी भाषी हिन्दी साहित्यकारों का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। प्रशस्ति पत्र में लिखा था “हिन्दीतर भाषी हिन्दी साहित्यकारों का राष्ट्रीय पुरस्कार”। “हिन्दीतर” शब्द को देखकर मुझे कुछ धक्का लगा। इस वर्ष उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने भी मुझे सौहार्द सम्मान से सम्मानित किया। यहां भी प्रशस्ति पत्र में हिन्दीतर भाषी शब्द का प्रयोग किया गया। इन प्रशस्ति पत्रों को देखकर असम के कई विद्वानों ने आपत्ति व्यक्त की। उन लोगों का कहना है कि अन्य भारतीय भाषाएं क्या हिन्दी से इतर हैं? अत: हिन्दीभाषी विद्वानों तथा हिन्दी संस्थाओं से विनम्र निवेदन है कि किसी भी अवसर पर “हिन्दीतर भाषी न लिखें, उसके स्थान पर “अहिन्दी भाषी” शब्द का प्रयोग करें।-डा. देवेन चन्द्र दास202/बी, पूर्व मालीगांव, गुवाहाटी (असम)फिर भी…पिछले दिनों भोपाल के एक ईसाई विद्यालय में हिन्दी बोलने के कारण एक बच्चे को सजा दी गई। बच्चे की गर्दन में “आई एम ए डंकी” (मैं एक गधा हूं) लिखकर एक तख्ती लटका दी गई। इससे लड़के को मानसिक आघात लगा और परिवार वाले भी स्तब्ध हैं। किन्तु आश्चर्य की बात है कि उक्त विद्यालय की प्राचार्या एक टी.वी. कार्यक्रम में अपने इस कदम का समर्थन करती दिखीं, बिना किसी अफसोस के, जबकि उनके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। आजादी की आधी सदी के बाद भी यह दु:खद स्थिति है। फिर भी लोग अपने बच्चों को “कान्वेन्ट” में ही पढ़ाना चाहते हैं।-डा. धनाकर ठाकुरडी-5 श्यामली, रांची (झारखण्ड)धनादेश व्यवस्थाहिन्दी के लोग, अंग्रेजी की मारगत 2 सितम्बर, 2004 को मैंने दिल्ली के संत नगर डाकघर से 770 रु. का एक धनादेश बाराबंकी (उ.प्र.)जिले के एक गांव के लिए भेजा था। सामान्यत: एक सप्ताह के अन्दर वहां धनादेश पहुंच जाता है। एक सप्ताह बाद भी जब वह धनादेश अपने गन्तव्य स्थान पर नहीं पहुंचा तो मैं 18 सितम्बर को पूछताछ करने के लिए उसी डाकघर में गया। वहां शिकायत खिड़की के सामने पहले से ही पंक्ति में अनेक लोग खड़े थे। मैं भी पंक्ति में खड़ा हो गया। वे लोग भी अपने-अपने धनादेश के बारे में पूछताछ कर रहे थे। कोई कह रहा था दो माह पहले ही हमने अमुक जगह के लिए धनादेश भेजा था, पर अभी तक वह नहीं मिला है। वहां जितने भी लोग खड़े थे सभी के साथ एक ही समस्या थी। वहीं मुझे ज्ञात हुआ कि अपने कारनामों के कारण लम्बे समय तक अखबारों में छाए रहे एक मंत्री जी ने डाक विभाग की दक्षता बढ़ाने के लिए वी.एस.ए.टी. नामक एक आधुनिकतम प्रणाली शुरू की थी और यह प्रणाली बिजली के बिना काम नहीं करती है। अत: जब बिजली रहती है तो इस प्रणाली के माध्यम से धनादेश भेजा जाता है और जब नहीं रहती है तो धनादेश नहीं भेजा जाता है। इस कारण धनादेश समय पर नहीं पहुंच पा रहे हैं। फिर यदि दिल्ली से धनादेश भेज भी दिया जाता है तो गन्तव्य स्थान पर बिजली न होने के कारण काफी दिनों तक धनादेश डाकघर में ही पड़ा रहता है। वहीं मुझे एक और नई बात की जानकारी हुई कि इस प्रणाली के तहत धनादेश प्रपत्र गन्तव्य स्थान तक नहीं भेजा जाता है, बल्कि केवल राशि भेजी जाती है। जबकि धनादेश प्रपत्र में लोग अपने परिजनों के लिए सन्देश भी लिखते हैं। एक कर्मचारी ने यह भी कहा कि यदि सन्देश अंग्रेजी में हो तो भेजा जा सकता है, अन्यथा नहीं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि धनादेश अधिकांश गांव के लोग भेजते हैं और उन ग्रामीणों को अंग्रेजी क्या हिन्दी भी अच्छी तरह नहीं आती है। धनादेश प्रपत्र भी वे लोग दूसरों से भरवाते हैं। इस स्थिति में वे अंग्रेजी में सन्देश कैसे भेज पाएंगे? आमलोगों की पहुंच से बाहर वाली इस व्यवस्था से मैं लगभग सवा महीने तक जूझता रहा, तब कहीं जाकर 14 अक्तूबर को मेरा वह धनादेश गन्तव्य स्थान तक पहुंचा। इतने दिनों तक मेरा पैसा डाकघर में पड़ा रहा, जबकि उस पैसे की वहां अति आवश्यकता थी। इतना ही नहीं समय पर पैसा न मिलने से मैं तो परेशान हुआ ही, जिनको पैसा भेजा था वह भी इतने दिनों तक चिन्तित रहे। तो प्रश्न उठता है कि ऐसी व्यवस्था ही क्यों बनाई जाती है, जिससे लोग परेशान होते हों?-डा. बलराम मिश्र8 बी, 6428-29, आर्यसमाज रोड,देवनगर, करोलबाग, नई दिल्लीगुगलीराजनीति में फंस गया, है क्रिकेट का खेलइसीलिए है हो रही, हर दिन रेलमपेल।हर दिन रेलमपेल, महेन्द्रा-शरद-जेतलीडालमिया हैं फेंक रहे सब पर ही गुगली।कह “प्रशांत” अरबों का दांव जहां लगता हैउसको कहना खेल नहीं हमको जंचता है।।-प्रशांतसूक्ष्मिकापानी उतर गयाजब पानी के लिएपूरा गांव उन परउखड़ गयाउनका पानी उतर गया-मिश्रीलाल जायसवालसुभाष चौक, कटनी (म.प्र.)29

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