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पाञ्चजन्य पचास वर्ष पहलेवर्ष 8, अंक 47, आषाढ़ शुक्ल 8, सं. 2012 वि., 27 जून, 1955, मूल्य 3आनेसम्पादक

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Jun 6, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Jun 2004 00:00:00

पाञ्चजन्य पचास वर्ष पहलेवर्ष 8, अंक 47, आषाढ़ शुक्ल 8, सं. 2012 वि., 27 जून, 1955, मूल्य 3आनेसम्पादक : गिरीश चन्द्र मिश्रप्रकाशक – श्री राधेश्याम कपूर, राष्ट्रधर्म कार्यालय, सदर बाजार, लखनऊजनसंघ के जत्थे गोआ में प्रविष्टजगन्नाथराव जोशी व अण्णा साहेब ने नेतृत्व किया(हिन्दुस्थान समाचार समिति द्वारा)बम्बई। “आज मेरे ह्मदय में भारतीय जनसंघ के संस्थापक स्व. डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की पुण्य स्मृति जाग्रत हो रही है, जिन्होंने देश की अखण्डता के लिए अपने प्राण भी उत्सर्ग कर दिए। इस कार्य की पवित्रता एवं राष्ट्रीयता की भावना ही हमारे लिए प्रेरणा का एक बहुत बड़ा स्रोत है। हमारा दृढ़ विश्वास है कि भारत में अब कोई विदेशी शक्ति नहीं टिक सकती और विदेशी शक्तियों को उठा फेंकने के लिए जो कुछ भी बलिदान करना पड़े, उसके लिए हम तैयार हैं।” ये शब्द गोआ विमोचन के लिए प्रस्थान करते हुए अखिल भारतीय जनसंघ के मंत्री श्री जगन्नाथराव जोशी ने एक प्रेस वक्तव्य में कहे।द्वितीय पंचवर्षीय योजना कम्युनिस्ट प्रभावितनैनीताल। विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच द्वितीय पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत निहित अनेक विषयों को लेकर मतभेद खड़ा हो गया है।श्री नेहरू के मास्को जाने से पूर्व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री सम्पूर्णानन्द दिल्ली गए थे। उस समय अनुमान किया गया था कि सम्भवत: कानपुर की सूती मिल मजदूर हड़ताल के सम्बन्ध में श्री सम्पूर्णानन्द को, नेहरूजी ने दिल्ली बुलाया था। किन्तु हाल में प्राप्त तथ्य इस धारणा को निराधार सिद्ध कर देते हैं।…उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को, जो कम्युनिस्टों के कट्टर विरोधी हैं, द्वितीय पंचवर्षीय योजना के पीछे कम्युनिस्ट षड्यंत्र की बू प्रतीत होती है।टिप्पणीदिल्ली का कलंकगत सप्ताह भारत सरकार तथा दिल्ली सरकार की ठीक नाक के नीचे एक दक्षिणात्य महिला के साथ, जो कदाचित् अपने पति या किसी अन्य सगे-सम्बन्धी की अस्वस्थता का तार पाकर उसकी सेवा सुश्रूषा के लिए दिल्ली आयी थी, रात को सरकारी बस से यात्रा करते समय डी.टी.एस. कर्मचारियों द्वारा किंगवे शिविर के निकट बस से उतारकर राक्षसी व्यवहार किए जाने का जो दु:संवाद प्राप्त हुआ है वह इतना भयानक है कि उसको सुनकर किसी भी सभ्य मनुष्य का मस्तक लज्जा से झुके बिना और मन ग्लानि से आप्लावित हुए बिना नहीं रह सकता।गोआ चलो!(विद्यावती मिश्र)गोआ चलो कोटि कण्ठों ने आज लगाया नारा,गोआ चलो कह रही गंगा यमुना की कल धारा,त्रस्त-ग्रस्त सागर की लहरों ने फिर आज पुकारा,मुक्त देश के अंतस्तल में नहीं बसेगी कारा,गोआ चलो शपथ है वीरों अमर क्रांन्ति के प्रण की!गोआ चलो मांग है गोआ के व्याकुल कण-कण की!!राजनीति के भेदभाव सब भूल चलो उत्साही,वहां जहां पर तांडव करती पागल सत्ताशाही,बर्बर पशुओं से जहां का कम है आज सिपाही,मानवता के संरक्षण हित चलो शांति के राही,नहीं दमन से बुझ पाती है विद्रोही चिनगारी!चलो चलो उत्सर्ग-पर्व में आज तुम्हारी बारी!!हम सब साथ तुम्हारे चिंता करो न गोआ-वासी,अधिक दिनों तक तुम्हें झेलनी होगी नहीं उदासी,मुक्त पूर्व के रवि को तम से कोई बांध सका है,बलिदानी का शीश किसी के आगे नहीं झुका है,अभी समय है संभलो चेतो ओ ंिहंसक उन्मादी!नाश तुम्हारा निकट, निकट है गोआ की आजादी!!17

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