|
पाकिस्तानी शिक्षा विभाग द्वारा पाठ्यपुस्तकों में परिवर्तनपुस्तकों में अब नफरत नहींभारत की”मोहब्बत”-मुजफ्फर हुसैनपाकिस्तान का मन भारत के प्रति कुछ बदला सा नजर आ रहा है। जो पाकिस्तान कल तक अपनी स्कूली पुस्तकों में यह छापता था कि “मुसमलानों के संघर्ष के कारण भारत स्वतंत्र हुआ, भारत में यदि मुसलमान न आते तो भारतवासी सभ्य दुनिया में कदम भी नहीं रख सकते थे, भारत में आज जो कुछ है, वह केवल मुसलमानों और पाकिस्तान की कृपा के कारण है।” उसी पाकिस्तान की पाठ्यपुस्तकों में अब पढ़ाया जा रहा है कि आज पाकिस्तान का अस्तित्व केवल भारत के कारण है। भारत अति प्राचीन देश है। भारतीय संस्कृति दुनिया की 12 बड़ी संस्कृतियों में से एक है। गंगा-यमुना की सभ्यता, जिसकी देन उर्दू है और भारत और पाक की सांझा संस्कृति में असंख्य कवि, शायर और दार्शनिक जन्मे हैं। 1947 से पहले पाकिस्तान भारत का हिस्सा था। हिन्दू और मुसलमान उस धरती पर एक साथ रहते थे। अंग्रेजों के विरुद्ध दोनों ने मिलकर स्वतंत्रता संग्राम लड़ा और ब्रिटिश उपनिवेश से इस सम्पूर्ण भू-भाग को आजाद कराया। पाकिस्तान का साप्ताहिक तकबीर अपने सम्पादकीय पृष्ठ (15 अप्रैल, 2004) पर लिखता है कि यदि यही सब कुछ पाकिस्तान में पढ़ाना है तो फिर जिन्ना ने पाकिस्तान बनाया क्यों? यदि पाकिस्तान की पाठ्य पुस्तकों में भारत के गुणगान करने हैं तो पाकिस्तान का शिक्षा मंत्री इस्लामाबाद की बजाय नई दिल्ली में जाकर क्यों नहीं बैठ जाता? तकबीर लिखता है कि पाकिस्तान की पुस्तकों से द्विराष्ट्रवाद का सिद्धांत यह कहकर निकाला जा रहा है कि इससे भारत के लोगों का मन दु:खी होता है। जो हमारी नींव थी, जो हमारी पहचान थी, उसी को नकारा जा रहा है। यह कैसी शिक्षा है और कैसी पाठ्यपुस्तकें हैं? क्या पिछले 56 साल से हम जो कुछ पढ़ा रहे थे, वह गलत और झूठ था। पाकिस्तान के ये कैसे शासक और प्रशासक हैं जो बिना कुछ किए ही भारत के सम्मुख पाकिस्तान को समर्पित कर रहे हैं। हमें नहीं लगता कि ये हमारी किताबें हैं, हमारे स्कूल हैं और अब पाकिस्तान हमारा अपना देश है?तकबीर आगे लिखता है कि अमरीका अपनी धौंस और शक्ति के बल पर इस्लामी देशों की पाठ्यपुस्तकों में परिवर्तन कराने की मुहिम चलाए हुए है। 1979 के कैम्प डेविड समझौते के बाद इस्रायल के प्रधानमंत्री ने अपनी मिस्र यात्रा के दौरान खुलकर कहा कि तुम हमसे दोस्ती करना चाहते हो और दूसरी तरफ भावी पीढ़ी को वह सब कुछ पढ़ाते हो जिससे प्रेरणा लेकर वे यहूदियों से न केवल नफरत करते रहें बल्कि समय आने पर उनका कत्लेआम करें। 11 सितम्बर, 2001 की घटना के बाद अमरीका ने यही शस्त्र अरब देशों के स्कूलों में चलाया। कुरान की वे आयतें जो ईसाई और यहूदियों से नफरत दर्शाती हों, उन्हें पाठ्यक्रम में से निकलवा दिया। इस्लामी इतिहास की वे घटनाएं जो विद्यार्थियों को जुनूनी बनाएं और उन्हें जिहाद की तरफ ले जाएं, वे भी पुस्तकों से निकाल दी गईं। तकबीर का कहना है कि ईसाइयों के लिए ऐसा किया जाए, क्योंकि मुसलमान आतंकवादी बनकर उनके देश पर हमले कर रहा है और भविष्य में आत्मघाती हमले करके उन्हें नष्ट कर सकता है, लेकिन हिन्दुस्थान को पाकिस्तान इस प्रकार की छूट क्यों दे रहा है? क्या पाकिस्तानी संसद में कोई ऐसा विधेयक पारित हुआ है? या फिर इस्लामी देशों ने अपनी किसी अंतरराष्ट्रीय बैठक में इस प्रकार का प्रस्ताव पारित किया है? पाकिस्तान के शासक किसके आदेश पर यहां के दस करोड़ मुसलमानों को भारत का गुलाम बनाना चाहते हैं?नई पुस्तकों में यह पढ़ाया जा रहा है कि हिन्दू और मुसलमान एक ही देश के वासी हैं। इसलिए यदि द्विराष्ट्रवाद का सिद्धांत अस्तित्व में रहेगा तो दोनों एक-दूसरे के साथ नहीं रह सकेंगे। हिन्दुओं में विश्वास पैदा करने के लिए दो राष्ट्रों के सिद्धान्त को न केवल पाकिस्तान की पुस्तकों में से बल्कि कानून की किताबों से भी निकाल दिया जाना चाहिए। (नवाज शरीफ के समय द्विराष्ट्रवादी सिद्धांत का विरोध करने वाले को मृत्युदंड का प्रावधान शामिल कर लिया गया था)। तकबीर ने लिखा है कि अब यह केवल घोषणा नहीं है, बल्कि जमीनी सच्चाई है।पाकिस्तानी दैनिक नवाए वक्त की रपट में लिखा है-“दसवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में पुस्तक के नए 2004 संस्करण में हिन्दुओं के विरुद्ध नफरत की भावना भड़काने वाली तमाम बातों को निकाल दिया गया है। दसवीं की अंग्रेजी की पाठ्यपुस्तक के संशोधित संस्करण में मुखपृष्ठ पर भारतीय फिल्म “मोहब्बत” का चित्र छाप दिया गया है। पुस्तक के प्रारम्भ में लिखा जाने वाला “बिस्मिल्लाह” को भी हटा दिया गया है। हजरत इब्राहीम और हजरत इमाम हुसैन के त्याग की गाथा को निकालकर उसके स्थान पर एक युवक की प्रेम कथा को स्थान दिया गया है, जिसने अपनी प्रेमिका को हासिल करने के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया। पुस्तक में लिखा गया है कि सबसे बड़ा मजहब प्यार करना है। उसके लिए त्याग करने का अर्थ अल्लाह की इबादत करना है। इस पुस्तक के अध्याय 7 में “मीसा के मदीना” जैसे प्रेरणादायी उद्धरण निकालकर उसके स्थान पर यह विवरण दिया गया है कि मुसलमान और यहूदी एक होकर काम करें, एक-दूसरे की सहायता करें। दोनों बराबर हैसियत रखते हैं। यहूदियों समेत तमाम अल्पसंख्यकों को इस्लामी रियासत में मजहब के प्रचार-प्रसार का अधिकार होना चाहिए। जो पाकिस्तान आज तक अन्य मजहबों से बचा था अब वहां अन्य मत-पंथों का खुल्लम-खुल्ला प्रचार-प्रसार होगा। इस पुस्तक में इस्लाम के दूसरे खलीफा हजरत उमर फारुक के उदार एवं जिंदादिल होने का सबूत दिया गया कि वे गीतों के रसिया थे।” तकबीर के अनुसार इन बेतुकी बातें को पढ़ा कर हम कौन सी नस्ल तैयार करेंगे? देश की जनता को इसका जवाब देना होगा।पाठ्यक्रम में परिवर्तन का क्रम तीन वर्ष तक चलेगा। पाकिस्तानी मंत्रिमंडल ने इसकी स्वीकृति 2002 में दी थी। तीसरी से पांचवीं तक और नौवीं से दसवीं तक के पाठ्यक्रम को संशोधित करने का लक्ष्य है। नई छपी नौवीं और दसवीं की पाठ्यपुस्तकें इस बात का प्रमाण हैं कि सरकार ने पाठयक्रम में जो भी बदलाव किया है, वह शिक्षा विभाग की सिफारिशों पर आधारित है। पाकिस्तान की भावी पीढ़ी को सही इतिहास पढ़ाया जाएगा और उदार वातावरण में उसका लालन-पालन होगा तो निश्चित ही यह पाकिस्तान के लिए एक शुभ कार्य होगा। आज तक जिस तरह की जिहादी और उन्मादी शिक्षा दी गई है, उससे पाकिस्तान में तालिबान ही जन्मे हैं।35
टिप्पणियाँ