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पूज्य शंकराचार्य जी की गिरफ्तारी पर देशभर में रोष<p

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May 12, 2004, 12:00 am IST
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दिंनाक: 12 May 2004 00:00:00

पूज्य शंकराचार्य जी की गिरफ्तारी पर देशभर में रोष

सरकार को धिक्कार

-प्रतिनिधि

संसद मार्ग पर भाजपा नेताओं के उपवास- धरने में (बाएं से) श्री वरुण गांधी, डा. हर्षवर्धन, श्री प्यारेलाल खंडेलवाल, श्री जगदीश प्रसाद माथुर, श्री लालकृष्ण आडवाणी, श्री एस.एस. अहलुवालिया, श्री मुख्तार अब्बास नकवी व श्री जगदीश मुखी

यह भारत के लिए कलंक का दिन है

-अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व प्रधानमंत्री

शंकराचार्य जी के साथ दुव्र्यवहार निंदनीय

-आर.वेंकटरमन, पूर्व राष्ट्रपति

देश की परंपराओं को निशाना बनाया गया

-चन्द्रशेखर, पूर्व प्रधानमंत्री

सत्ता चलाने वालों को सत्य से सरोकार नहीं

-जार्ज फर्नांडीस, पूर्व रक्षामंत्री

ऐसा न पहले कभी देखा, न सुना। अनेक आंदोलन, धरने, प्रदर्शन, रैलियां, उपवास आदि देखे, परन्तु शंकराचार्य जी की गिरफ्तारी के विरुद्ध नई दिल्ली के संसद मार्ग पर 20-21-22 नवम्बर, 2004 को तीन दिन जनता का जैसा रोष दिखा, वह अद्भुत था। भीतर ही भीतर गुस्सा पर प्रकट रूप में संयमित भाषा, संयमित व्यवहार। कारण ही ऐसा था कि जिसने भी सुना वह धरने में शामिल होने संसद मार्ग पहुंच गया। दूर तक बैनर और पोस्टर-“संतों का अपमान, नहीं सहेगा हिन्दुस्थान”, “शंकराचार्य जी को तुरंत रिहा करो” आदि। उपवास-धरने पर भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के अलावा पूर्व राष्ट्रपति श्री वेंकटरमन और पूर्व प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर भी उपस्थित हुए। पूज्य संत आसाराम बापू तीनों दिन अपने अनुयायियों के साथ वहां पहुंचे तो सुधांशु जी महाराज और उनके भक्त भी।

तीन दिन का भाजपा का उपवास-धरना कार्यक्रम जिस उद्देश्य से आयोजित किया गया था, उसमें पूरी तरह तो नहीं लेकिन कुछ हद तक सफलता जरूर मिली। फर्लांग भर दूर देश की संसद और सत्ता-अधिष्ठानों तक यह रोष नि:संदेह पहुंचा।

20 नवम्बर को उपवास-धरना भाजपा अध्यक्ष श्री लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में शुरू हुआ। संतों-महंतों के अलावा भाजपा के नेता और बड़ी संख्या में आम लोग अपना रोष प्रकट करने एकत्र हुए। संत आसाराम बापू ने एक दिन पहले ही धरने की जानकारी प्राप्त की और अगले दिन पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों को रद्द करते हुए वे संसद मार्ग पहुंच गए थे। बापू के भक्तों ने जहां “जय श्रीराम” के नारे गुंजाए तो वहीं “हरि ऊं” संकीर्तन से पूरा माहौल गुंजा दिया। धरने में उपस्थित दिल्लीवासियों को सम्बोधित करते हुए श्री लालकृष्ण आडवाणी ने कहा- “यह भारतीय लोकतंत्र की दूसरी अनहोनी घटना है। इससे पूर्व कांग्रेस सरकार ने 1975 में आपातकाल लागू कर लोकतंत्र को कुलचने का काम किया था और इस बार पूज्य शंकराचार्य जी को गिरफ्तार कर पूरी संस्कृति को ही अपमानित करने का कार्य किया है। उन्होंने कहा कि उस समय जाग्रत लोगों ने एकजुट होकर जो आन्दोलन चलाया उससे सरकार को पीछे हटना पड़ा था। इस बार भी वही परिणाम निकलेगा और सरकार को पीछे हटना पड़ेगा तथा पूज्य शंकराचार्य जी की ससम्मान रिहाई होगी।” श्री आडवाणी ने कहा कि पूज्य शंकरचार्य जी की गिरफ्तारी और अवमानना से पूरे देश में गुस्सा और आक्रोश है। यह कोई सामान्य लड़ाई नहीं है बल्कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और अस्मिता की पहचान का संघर्ष है और इसमें हम सब एकजुट होकर कार्य करें। श्री आडवाणी ने कहा कि तमिलनाडु पुलिस द्वारा पूज्य शंकराचार्य जी की गिरफ्तारी और उन्हें अपमानित किए जाने के लिए केवल मुख्यमंत्री सुश्री जयललिता ही दोषी नहीं हैं बल्कि केन्द्र की कांग्रेस सरकार और कम्युनिस्ट भी दोषी हैं। पूज्य शंकराचार्य जी की गिरफ्तारी पर हमारा आक्रोश इसलिए है क्योंकि यह केवल एक व्यक्ति की गिरफ्तारी नहीं बल्कि उस पद और पद की प्रतिष्ठा का अपमान है।

इस अवसर पर सुप्रसिद्ध कथावाचक संत आसाराम बापू बेहद आक्रोशित और क्रुद्ध नजर आए। वे इतने भाव विह्वल थे कि बोलते समय अपनी व्यग्रता को भी रोक न सके। एक बार तो उनका गला भर आया, लगा कि वे रो ही देंगे। उन्होंने स्पष्ट किया कि वे किसी राजनीतिक पार्टी से नहीं बंधे हैं। वे यहां इसलिए आए है क्योंकि यह उनके हृदय की पीड़ा है।

21 नवम्बर की सुबह भाजपा के एक अन्य वरिष्ठ नेता डा. मुरली मनोहर जोशी उपवास-धरने का नेतृत्व करने पहुंचे। दिन भर शांत चित्त- संयमित और धरने के सहयोगियों के साथ विचार-मंत्रणा करते रहे। शाम को उन्होंने उपस्थितजन, जिनमें महिलाओं की संख्या बहुत अधिक थी, को संबोधित किया। उन्होंने बताया कि गिरफ्तारी के बाद वे शंकराचार्य जी से मिलने वेल्लोर जेल गए थे और वहां सभी तरह के अपमानजनक माहौल को सहते हुए शंकराचार्य जी ने उनसे कहा था कि अदालत जो भी फैसला करेगी, वह मान्य होगा। डा. जोशी ने कहा, कहते हैं कानून सबके लिए बराबर होता है, पर शंकराचार्य जी के प्रति जानबूझकर अपमानजनक स्थितियां पैदा की जा रही हैं। ध्यान रहे, यह देश आध्यात्मिक है, राजनीतिक या आर्थिक नहीं। इसकी जड़ें धर्म और अध्यात्म से सिंचित हैं। शंकराचार्य जी को षडंत्रपूर्वक रात के अंधेरे में पकड़ा गया। उनकी गिरफ्तारी पर पूरे देश में रोष है। इतना ही नहीं, विदेशों में बसे हिन्दू भी आहत हैं। यह शंकराचार्य मठ, परंपरा और संस्कृति पर आघात है।

आशीर्वचन स्वरूप संत श्री आसाराम बापू ने कहा कि मानव संवेदनाओं से खिलवाड़ किया जा रहा है। अटल जी, आडवाणी जी, जोशी जी, सुषमा स्वराज जी आदि साधुवाद के पात्र हैं कि उन्होंने उपवास-धरने का आयोजन किया और जनाक्रोश प्रकट करने का मौका दिया।

22 नवम्बर को उपवास-धरने के आखिरी दिन श्री जसवंत सिंह के नेतृत्व में बड़ी संख्या में लोग सुबह से ही धरना स्थल पर पहुंच गए थे। दिन भर संकीर्तन और रोष प्रदर्शन के बाद शाम को वहां ऐतिहासिक दृश्य उपस्थित हुआ। भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री आर. वेंकटरमन स्वयं धरने में शामिल होने आए। पूर्व प्रधानमंत्री श्री चंन्द्रशेखर अस्वस्थ थे, वे भी चिकित्सकों की सलाह अनसुनी करते हुए उपस्थित हुए। श्री वेंकटरमन शंकराचार्य मठ के प्रति असीम श्रद्धा रखते हैं इसलिए खुद को न रोक पाए तो चंद्रशेखर जी पार्टी सीमाओं से परे देशवासियों के लिए इस अत्यन्त पीड़ादायी समय में उनका मनोबल बढ़ाने पहुंचे थे। पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व रक्षा मंत्री श्री जार्ज फर्नांडीस के अलावा संत आसाराम बापू और सुधांशु जी महाराज वहां पहुंचे थे।

धरने को सम्बोधित करते हुए सबसे पहले श्रीमती सुषमा स्वराज ने 22 नवम्बर की सुबह और अदालत के फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि शंकराचार्य जी की पुलिस हिरासत को और नहीं बढ़ाया गया है, पर वे अब भी न्यायिक हिरासत में हैं। यह धरना-प्रदर्शन भले आज समाप्त हो जाए, पर देशभर में यह संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक वे ससम्मान बरी नहीं हो जाते।

उस दिन धरने का नेतृत्व कर रहे श्री जसवंत सिंह ने कहा कि शंकराचार्य जी को गिरफ्तार करना 2500 वर्ष पुराने मठ पर ही नहीं, भारत की अस्मिता और पहचान पर भी आघात है।

जार्ज तो बस जार्ज ही हैं। अपनी उसी साधारण वेशभूषा और सरलता के साथ वे धरने को अपना समर्थन व्यक्त करने आए थे। उन्होंने कहा कि वे पिछले दिनों देश के अनेक भागों में गए पर कहीं भी एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिला जो शंकराचार्य को दोषी मानता था। उन्होंने वेल्लोर जेल में शंकराचार्य जी से अपनी भेंट की जानकारी दी। उन्होंने देखा कि शंकराचार्य जी के चारों ओर बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी तैनात थे और अधिकारियों ने जार्ज को हिदायत दी थी कि भेंट के दौरान उनसे कोई बात न करें। शंकराचार्य जी ने ही उनको कहा कि उन्हें शारीरिक नहीं, मानसिक पीड़ा जरूर है, क्योंकि उन्हें उनके पूजानुष्ठान सम्पन्न नहीं करने दिए जा रहे। जार्ज फर्नांडीस ने कहा कि जो लोग सत्ता चला रहे हैं उन्हें सत्य से सरोकार नहीं है। उन्होंने विश्वास जताया कि इस जनांदोलन से सत्य सामने आएगा।

पूर्व प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर ने कहा कि वे 25-26 वर्ष से शंकराचार्य जी से परिचित हैं। किसी भी देश को कमजोर करने के लिए उसकी परम्पराओं को निशाना बनाया जाता है और आज यही किया जा रहा है। हम अपनी मर्यादाओं को भूल रहे हैं।

पूर्व राष्ट्रपति वेंकटरमन ने कहा कि कांची मठ प्राचीनतम मठ है, जहां आदि शंकर रहे थे। मठ द्वारा भारत में अनेक स्कूल, कालेज व अन्य जनहित प्रतिष्ठान चल रहे हैं। यह मठ हिन्दुओं में ही नहीं, ईसाइयों और मुस्लिमों में भी पूज्य है। हिन्दुत्व में सभी मत-पंथों के प्रति आदर भाव होता है। यह पीड़ादायक बात है कि शंकराचार्य जी से अपराधियों की तरह व्यवहार किया जा रहा है। हमें उनकी शीघ्र रिहाई के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।

पूर्व प्रधानमंत्री श्री वाजपेयी ने जब बोलना शुरू किया तो माहौल जयकारों से गूंज उठा। उन्होंने शुरुआत में ही कहा कि धरना आज समाप्त भले ही हो रहा हो, मगर संघर्ष जारी रहेगा। भारत एक पंथनिरपेक्ष देश है मगर इसका अर्थ यह नहीं कि धार्मिक विभूतियों का सम्मान न किया जाय। समाज में उनकी प्रतिष्ठा की कद्र न की जाए। आज हम सड़क पर आकर संघर्ष करने को बाध्य किए गए हैं।

श्री वाजपेयी ने कहा कि देश में लोकतंत्र है, लोगों को बोलने की आजादी है। लेकिन जब शंकराचार्य जेल में हों और जिनके हाथ में सत्ता की बागडोर है वे इसके प्रति जागरूक न हों तो सड़क पर आना ही पड़ता है। उन्होंने कहा कि पंथनिरपेक्ष राज्य में धार्मिक-पांथिक महापुरुषों में भेद कैसे किया जा सकता है? परन्तु सरकार हर जगह राजनीति करती है। सभी मत-पंथों का सम्मान भारतीय परंपरा है, संस्कृति है। शंकराचार्य जी के साथ आज जिस तरह का व्यवहार किया जा रहा है वह भारत के लिए कलंक है। यह चुनौती का दिन है। सबके हृदयों में चोट है- राष्ट्रपति से साधारण जनता तक। पर कुछ यह पीड़ा दिलों में दबाए बैठे हैं। यह दुर्भाग्य का दिन है कि हमें सड़क पर आना पड़ा है। भारत परिवर्तन के लिए तैयार है। भारत अधर्म को बर्दाश्त नहीं करेगा।

शणमुगम

सही न गई यह पीड़ा

कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य पूज्य जयेन्द्र सरस्वती जी की गिरफ्तारी से व्यथित होकर अइयांपलायम (कोयम्बतूर) निवासी शणमुगम ने अपनी जान दे दी। हिन्दू मुन्नानी संगठन के कार्यकर्ता शणमुगम ने गत 22 नवम्बर को पल्लादम में जहरीले रसायन का सेवन कर आत्महत्या कर ली। वह विश्व हिन्दू परिषद् एवं अन्य संगठनों द्वारा आयोजित उपवास कार्यक्रम में शामिल होने गया था और जहरीला पदार्थ पीने के बाद अनशन स्थल पर ही गिर गया। साथी प्रदर्शनकारियों एवं कार्यकर्ताओं द्वारा शणमुगम को तुरन्त अस्पताल ले जाया गया, जहां चिकित्सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

विश्व जागृति मिशन के संस्थापक आचार्य सुधांशु जी महाराज ने कहा कि जब-जब ऋषि-मुनियों का सम्मान हुआ, देश ऊंचा उठा है और जब-जब अपमान हुआ, देश का पतन हुआ। मैकाले ने संस्कृति को खण्डित करने का जो दुष्चक्र शुरू किया था, आज उसका दुष्परिणाम सामने आया है। आजादी के बाद आज अगर हमारे आस्था केन्द्र- शंकराचार्य पर प्रश्नचिन्ह लगता है तो यह हिन्दू समाज, सनातन धर्म का अपमान है। ऐसे महामनीषी के प्रति केन्द्र और तमिलनाडु सरकार का यह कृत्य अशोभनीय है। यह हिन्दू समाज के तेजोभंग की शुरुआत है। इसका यहीं अंत हो जाना चाहिए। अपनी एकता बनाए रखते हुए अपने भीतर की आग को जलाए रखें। देश के शासक संवेदनशील बनें।

अंत में धरने की समाप्ति से पूर्व संत आसाराम बापू ने अपने चिरपरिचित अंदाज में धरने को अपना पूरा समर्थन व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि हिन्दू सहिष्णु हैं, उदार हैं पर कायर नहीं हैं। जब-जब संस्कृति पर आक्रमण हुए हैं तब-तब भारत में जनाक्रोश की लहर उठी है। उन्होंने “ऊँ” का नारा लगाया तो दूर तक खड़ी भीड़ भी “ऊँ” गुंजाने लगी। “हरिओम” संकीर्तन हुआ।

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