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पुण्यभूमि कुरुक्षेत्र में सरकार्यवाह मोहनराव भागवत ने लोकार्पित कियासंस्कृति का अनूठा संग्रहालयसंग्रहालय का अवलोकन करते हुए श्री मोहनराव भागवतगत दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री मोहनराव भागवत ने विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान द्वारा संस्कृति भवन, कुरुक्षेत्र में नवनिर्मित संग्रहालय का लोकार्पण किया। यह संस्थान देश की नवोदित पीढ़ी को अपने देश की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर, अपने पूर्वजों से प्राप्त ज्ञान-विज्ञान तथा जीवन मूल्यों की जानकारी देने हेतु संस्कृति बोध परियोजना का आयोजन करता आ रहा है। इसका उद्देश्य यही है कि छात्र अपने देश के गौरवमय इतिहास से प्रेरणा लेकर, अपने राष्ट्र के प्रति समर्पण भाव से सुदृढ़ एवं सुसंस्कारित समाज के निर्माण में अपने जीवन का योगदान कर सकें।संग्रहालय के एक खंड में भारत माता की एक भव्य प्रतिमा स्थापित है। सिंहद्वार के निकट प्रथम वीथिका में उत्तर प्रदेश से प्राप्त 11-12वीं शताब्दी की मूर्तियों की प्रतिकृतियां सुसज्जित हैं। इसी प्रकार की नौ वीथिकाओं में उन मूर्तियों की प्रतिकृतियां हैं जो विभिन्न शैलियों में भारत की मूर्तिकला की विविधता का दर्शन कराती हैं। चार चित्र-पटल ऐसे हैं, जिनमें देश के लगभग सभी प्रांतों के प्रमुख प्राचीन मंदिरों, ऐतिहासिक अभेद्य दुर्गों को चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है। एक अन्य पटल में भारतीय ललित कलाओं अर्थात् विभिन्न शैलियों के शास्त्रीय नृत्यों को चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। यहां का मुख्य आकर्षण बाली द्वीप से प्राप्त गरुड़ की काष्ठ प्रतिमा है जिसको सुदूर पूर्व एशिया के इस द्वीप में भगवान के रूप में पूजा जाता है। इण्डोनेशिया से आए कुछ पर्यटकों ने यह मूर्ति भेंट की थी। संग्रहालय का एक खंड प्राचीन वाङ्मय एवं धर्म ग्रंथों के लिए आरक्षित है जो भारतमाता मंदिर के बिल्कुल निकट स्थित है। इस खंड के एक पटल में चारों वेद, ब्राहृण ग्रंथ, वेदांग के रूप में विभिन्न धर्म सूत्र व श्रौत सूत्र तथा ग्यारह उपनिषद् एवं षड्दर्शन हैं। दो पटलों में अट्ठारह महापुराणों को संजोया गया है। अन्य दो पटलों में भारत की विभिन्न भाषाओं में रची गई रामकथा-रामायण, महाभारत, वाल्मीकि रामायण, श्रीमद्भगवद्गीता एवं नीति ग्रंथ हैं। यहां त्रिपिटक (बौद्ध), जैन आगम (अंगागम) व श्री गुरुग्रंथ साहिब के दर्शन भी होते हैं।लोकार्पण से पूर्व पूजन करते हुए श्री भागवत व अन्य विशिष्टजनसंग्रहालय का भ्रमण करने के बाद श्री भागवत ने इस प्रकल्प की प्रशंसा की। उन्होंने आगंतुक अभिमत पंजिका में ये विचार अंकित किए- “संस्कृति संग्रहालय अपने प्रथम आविर्भाव रूप में भी अतिशय प्रेरक बना है। भारतीय परम्परा के प्रेरक आविष्कार का “गागर में सागर” भरने वाला यह प्रयास पूर्ण विकसित होकर प्रेरणा का स्रोत बने, यह शुभकामना।” इस अवसर पर विद्या भारती के अखिल भारतीय संगठन मंत्री श्री ब्राहृदेव शर्मा “भाई जी”, महामंत्री श्री शान्तनु शेंडे, उपाध्यक्ष श्री दीनानाथ बत्रा, सहमंत्री श्री नरेन्द्रजीत सिंह रावल तथा संघ के क्षेत्रीय अधिकारी उपस्थित थे।डा. केशवानंद ममगाईंगंगतोक में अभाविप अधिवेशनयुवाओं को जगा रही है अभाविप-सोमनाथ पोड्याल, कृषि मंत्री, सिक्किमगंगतोक में विद्यार्थी परिषद् के अधिवेशन को सम्बोधित करते हुए राज्यपाल श्री वी. रामाराव। मंच पर बैठे हैं (बाएं से) श्री भोला चौहन और डा.वी.पी. शर्मागत दिनों गंगतोक (सिक्किम) में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की गंगतोक इकाई द्वारा दो दिवसीय अधिवेशन आयोजित किया गया। इसका उद्घाटन प्रदेश के कृषि मंत्री श्री सोमनाथ पौड्याल ने किया। उन्होंने विद्यार्थी परिषद् की प्रशंसा करते हुए कहा कि युवा शक्ति को राष्ट्रीय दायित्वों के प्रति सचेत करने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। अधिवेशन में अभाविप के अ.भा. उपाध्यक्ष श्री रामनरेश सिंह ने भी अपने विचार रखे। इस अवसर पर एक प्रस्ताव पारित कर पूरे प्रदेश में नशा मुक्ति अभियान चलाने का निर्णय लिया गया। एक अन्य प्रस्ताव में सिक्किम में संस्कृत के प्रचार-प्रसार हेतु आचार्यों की नियुक्ति एवं संस्कृत शिक्षण संस्थान खोलने की मांग की गई।समापन समारोह में प्रदेश के राज्यपाल श्री वी.रामाराव विशेष रूप से उपस्थित थे। उन्होंने नशीले पदार्थों की सहज उपलब्धता को नशा प्रसार का मुख्य कारण बताया और कहा कि इन पदार्थों पर रोक लगनी चाहिए। समापन अवसर पर एक शोभा यात्रा भी निकाली गई, जिसमें लगभग 250 विद्यार्थियों ने भाग लिया। इस अवसर पर अभाविप के क्षेत्रीय संगठन मंत्री श्री पी.चन्द्रशेखर सहित अनेक लोग उपस्थित थे।इन्द्र सिंह शास्त्रीविद्या भारती ने आयोजित की खेल प्रतियोगितापहाड़ हैं तो क्या, खेलों में पीछे नहींखेलकूद प्रतियोगिता में शामिल विभिन्न प्रतिभागीछात्रों द्वारा प्रस्तुत सांस्कृतिक कार्यक्रम का एक मोहक दृश्यगत दिनों कालिम्पोंग (दार्जिलिंग) में विद्या भारती विद्यालयों की तृतीय वार्षिक खेलकूद प्रतियोगिता आयोजित हुई। इसमें सिक्किम के विभिन्न क्षेत्रों एवं गोरखा स्वायत्तशासी पर्वतीय क्षेत्र में विद्या भारती द्वारा संचालित शिशु एवं विद्या मन्दिरों के 1050 छात्र-छात्रओं ने भाग लिया। प्रतियोगिता में दौड़, लम्बी कूद, ऊंची कूद, खो-खो सहित 31 प्रतिस्पद्र्धाएं हुईं। प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले छात्रों को पदक एवं प्रमाणपत्र देकर सम्मानित किया गया। सम्मान समारोह के मुख्य अतिथि स्थानीय विधायक श्री दावा. पा. शेरपा थे। इस अवसर पर छात्रों ने रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए।2दिल्ली में विभाजन के कुछ वर्ष पहले से ही मुस्लिम लीग ने हिंसक गतिविधियां चलारखी थीं। कानून का राज था, पर बेअसर। लीग के लोग जब चाहे, जिसे चाहे अपनी नफरत का निशाना बनाते थे, यहां तक कि राजनेताओं के विरुद्ध भी षड्यंत्र रचे जाते थे। रा.स्व.संघ उस समय तक एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में स्थापित हो चुका था। स्वयंसेवकों की राष्ट्रनिष्ठा और अनुशासन का सब सम्मान करते थे। यही कारण था कि उन दिनों कुछेक अवसरों पर गांधी जी और पं. नेहरू तक के विरुद्ध षड्यंत्र रचे जाने की जानकारी मिली तो स्वयंसेवकों पर ही अंतत: कांग्रेसियों ने भरोसा किया और उन्हें सहायता के लिए पुकारा। स्वयंसेवकों ने भी अपने प्राणों की बाजी लगाकर राष्ट्र की अस्मिता बचायी थी। श्री माणिक चंद्र वाजपेयी व श्री श्रीधर पराडकर द्वारा लिखी पुस्तक “ज्योति जला निज प्राण की” (प्रकाशन-सुरुचि प्रकाशन, दिल्ली-55) में ऐसी कुछ घटनाएं संकलित हैं। यहां हम उसी पुस्तक से चार घटनाओं का उल्लेख कर रहे हैं। सं.जब स्वयंसेवकों ने गांधी जी और पं. नेहरू की रक्षा कीलीगी गुंडों से गांधी जी की रक्षा1943 में सर्वश्री रामलाल मरवाह, ब्राह्मदेव, सोहनसिंह, सुरेन्द्र कुमार व विद्यासागर प्रचारक बने। ब्राह्मदेव जी को अम्बाला व सोहनसिंह जी को करनाल का काम सौंपा गया।इस समय तक मुस्लिम लीग की अलगाववादी गतिविधियां तेजी से बढ़ने लगी थीं। उसने मुस्लिम कर्मचारियों में गहरी घुसपैठ की थी। इसे ध्यान में रखकर वसंतराव जी की योजना से कई नवयुवक अस्थायी रूप से सरकारी नौकरियों में गए। इन सबसे सरकारी दफ्तरों में चल रहे लीगी षड्यंत्र की जानकारी मिलने लगी।उन दिनों गांधी जी निवास दिल्ली की एक हरिजन बस्ती में था। बस्ती में स्थित वाल्मीकि मंदिर के समीप ही मुस्लिम लीग का एक बड़ा अड्डा था। उनसे गांधी जी के जीवन को खतरा था। सेना व पुलिस की व्यवस्था हो सकती थी, पर गांधी जी उसके लिए तैयार नहीं थे। वे इसे अनुचित तथा अपने अहिंसा के सिद्धान्त के विरुद्ध मानते थे। तब गांधीजी के निकट सहयोगी कृष्ण नायर, जो बाद में सांसद बने, तथा अन्य नेता दिल्ली के प्रान्त प्रचारक वसंतराव ओक तथा अन्य संघ अधिकारियों से मिले तथा निवेदन किया कि संघ गांधीजी की सुरक्षा के दायित्व को सम्हाले। देशबन्धु गुप्त ने जब ओक जी से सुरक्षा का निवेदन किया तो श्री ओक ने उनसे कहा, “आपके पास तो सेवादल के स्वयंसेवक हैं”। इस पर देशबन्धु गुप्त ने कहा, यह दायित्व तो आप ही सम्हालें।” फिर क्या था, विश्वासपात्र स्वयंसेवकों की टोली को यह काम सौंप दिया गया। वे रात-दिन, बारी-बारी से गांधीजी की कुटिया पर पहरा देने लगे। लीगी गुण्डे सशस्त्र रहते थे, पर संघ की व्यवस्था देख उनका साहस कुछ गड़बड़ करने को न हुआ।जब नेहरू और जे.पी. संघ की रैली में आएवसंत सम्मेलन को केवल 4 दिन बचे थे कि उस पूरे क्षेत्र में सरकार ने धारा 144 लगा दी। स्पष्ट था कि अब तो 17 से 19 जनवरी (1946) को होने वाला यह सम्मेलन उक्त धाराओं को तोड़कर ही हो सकता है। स्वयंसेवकों में काफी उत्तेजना थी और वे हर कीमत पर यह सम्मेलन करने की मन:स्थिति में थे, परन्तु वसंतराव जी ने कहा कि कानून तोड़कर सम्मेलन करने का निर्णय करने के पहले श्रीगुरुजी से परामर्श कर लेना चाहिए। अतएव दिल्ली के प्रमुख कार्यकर्ता अमरनाथ बजाज को श्रीगुरुजी के पास भेजा गया, जो उन दिनों काशी के प्रवास पर थे। श्रीगुरुजी ने कहा “इस सम्बंध में सरकार से टकराहट उचित नहीं है। हमें कानून तोड़कर कोई काम नहीं करना चाहिए।” परिणाम यह हुआ कि सारी तैयारी व्यर्थ चली गई। सम्मेलन स्थगित कर सर्वत्र स्वयंसेवकों को सूचनाएं कर दी गईं कि वे न आएं और अगली सूचना की प्रतीक्षा करें। शाम को जिला प्रचारकों की बैठक हुई और उसमें तय किया गया कि अब तीन दिवसीय शिविर के स्थान पर एकदिवसीय रैली की जाए। 9 मार्च की तिथि तय हुई। राजस्थान के स्वयंसेवकों को उसी दिन अपने ही क्षेत्र में रैली आयोजित करने को कहा गया। स्वयंसेवक इस रैली की तैयारी में जुट गए। आज जहां गांधी जी की समाधि है, उस विस्तृत क्षेत्र में यह रैली आयोजित की गई। इस रैली में जनता भी आमंत्रित की गई थी। रैली को देखने पं.नेहरू व जयप्रकाश नारायण भी आए। रैली में 25,000 गणवेशधारी स्वयंसेवक पूर्ण अनुशासन में उपस्थित थे। पूजनीय गुरुजी के भाषण को सबने मंत्रमुग्ध होकर सुना।पं. नेहरू की प्राणरक्षाअंतरिम सरकार बन गयी थी। पं. नेहरू उसके प्रधान थे। परन्तु लीग ने बहिष्कार किया। प्रारम्भ में वह सरकार में शामिल नहीं हुई थी। देशभर में उसने काला दिवस मनाकर हिंसा का तांडव किया था।दिल्ली में भी लीगी गुण्डे हावी थे। उन्होंने कांग्रेसी मंत्रियों का जीना हराम कर दिया था। स्वयं पंडित नेहरू जब सचिवालय जाते तो उन्हें वे हूट करते, उन पर फब्तियां कसते, उनके ऊपर टमाटर आदि फेंकते। हिन्दी दैनिक अर्जुन के सम्पादक कांग्रेसी थे। उनके संघ के लोगों से भी सम्बंध थे। वे दिल्ली प्रान्त प्रचारक वसंतराव ओक के पास आए और कहा कि पंडित नेहरू हम सबके नेता और प्रधानमंत्री हैं। उन्होंने कहा कि उन पर ये आक्रमण भी इसलिए हो रहे हैं, क्योंकि वे हिन्दू हैं। अत: हमें उनके सम्मान की रक्षा करनी चाहिए। वसंतराव जी ने कहा, “आपको हमें पहले ही बताना था। कोई बात नहीं, प्रबंध हो जाएगा।” उन दिनों नया बाजार में संघ का कार्यालय था। शाहदरा में रेलवे के बहुत से कर्मचारी अच्छे स्वयंसेवक थे। उन्हें सूचना मिली कि अगले दिन वे तैयार होकर वहां जाएं। जब लीग वालों ने अपनी रोज की गुण्डागर्दी व हरकतें शुरू कीं तो अनपेक्षित रूप से स्वयंसेवकों ने चारों ओर से घेरकर उनकी अच्छी मरम्मत की। उसके बाद उन्होंने पं. नेहरू की शान के खिलाफ कोई दुस्साहस करने की जुर्रत नहीं की।नेहरू को दी सुरक्षासिंध में संघकार्य की स्थिति कितनी मजबूत थी, इसका मूल्यांकन करने हेतु सन् 1946 में ही वहां घटी एक घटना का उल्लेख आवश्यक है। पंडित नेहरू सिंध प्रान्त के दौरे के अन्तर्गत हैदराबाद आए थे। उस समय तक कांग्रेस ने विभाजन स्वीकार नहीं किया था। पंडित नेहरू भी अपने भाषणों में विभाजन के विरुद्ध तीव्र उद्गार प्रकट करते थे। “पाकिस्तान मुर्दाबाद” के नारे उनकी सभाओं में गूंजते थे। परन्तु यहां तो लीग का वर्चस्व था, इसलिए आशंका इस बात की थी कि यदि यहां हैदराबाद की सभा में पंडित जी ने पाकिस्तान का विरोध किया तो लीगी तत्व गड़बड़ कर सकते हैं। प्रश्न यह था कि स्थिति को कैसे सम्भाला जाए। कांग्रेस के प्रसिद्ध नेता चिमनदास तथा लाला किशनचंद संघ अधिकारियों के पास गए और उनसे निवेदन किया कि वे सभा में कोई गड़बड़ी न होने दें। फिर क्या था, स्वयंसेवकों ने सभा में चारों ओर मोर्चे जमा लिए। सभा भंग करने का लीग का षड्यंत्र विफल हो गया।3
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