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माक्र्सवादी घबराहट से तापमान बढ़ाममता-भाजपा गठबंधन कुछ कमाल दिखाएगा- कोलकाता से असीम कुमार मित्रममता बनर्जीपश्चिम बंगाल में माक्र्सवादी जब से सत्ता में आए हैं, तब से उन्होंने चुनाव तथा जनतंत्र को एक तमाशा बना दिया है। यही कारण है कि इस राज्य के आम लोगों की सोच चुनावी प्रक्रिया में प्रतिबिम्बित नहीं होती। इसीलिए चुनाव के परिणाम भी लगातार लगभग एक ही जैसे रहे हैं और संसद (लोकसभा तथा राज्यसभा) में कम्युनिस्टों का प्रतिनिधित्व 50 और 55 के आस-पास रहा है। इतिहास बताता है कि कम्युनिस्ट जनतांत्रिक पद्धति का सहारा लेकर एक बार अगर सत्ता में आ गए तो वे आसानी से कुर्सी नहीं छोड़ते।यह सच होते हुए भी इस बार के चुनाव में कुछ ऐसी बातें दिखाई पड़ रही हैं, जिनसे लगता है कि माक्र्सवादी खेमे में तनिक घबराहट है। इस खेमे को प. बंगाल में वाममोर्चा के नाम से जाना जाता है। इस खेमे का मुख्य दल माकपा है। 1991 से लेकर 1999 तक चार लोकसभा चुनावों में माकपा का संख्याबल लगातार घटता गया है। कुल 42 संसदीय क्षेत्रों में माकपा को 1991 में केवल 27, 1996 में 23, 1998 में 24 एवं 1999 में केवल 21 सीटों पर विजय मिली थी।तृणमूल-भाजपा की गहराती पैठ-सत्यप्रकाश लालस्वतंत्रता के बाद 1952 के प्रथम लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में कुल 32 लोकसभा सीटों में कांग्रेस को 24 सीटें मिली थीं जबकि वामपंथियों को सिर्फ 5 तथा अन्य को 3 सीटें मिली थीं। 1957 के चुनाव आते-आते फ्रांसीसी आधिपत्य से आजाद होकर चन्दन नगर पश्चिम बंगाल में शामिल हो गया तथा बिहार का कुछ हिस्सा भी पश्चिम बंगाल में सम्मिलित हो गया। फलस्वरूप पश्चिम बंगाल में लोकसभा सीटों की संख्या 32 से बढ़कर 36 हो गई। लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस को पिछले चुनाव की अपेक्षा एक सीट कम अर्थात 23 सीटें मिलीं, जबकि वाममोर्चे को 8 तथा अन्य को 5 सीटें मिलीं। 1962 के चुनाव में कांग्रेस को 1957 से फिर एक सीट कम अर्थात् 22 सीटें मिलीं जबकि वाममोर्चे को अभूतपूर्व सफलता मिली। उसे 11 सीट मिलीं, जबकि अन्य को सिर्फ 3। कालान्तर में 1980, 1989 व 1991 के चुनाव परिणामों ने तो यह स्पष्ट कर दिया कि पश्चिम बंगाल से कांग्रेस खत्म हो चुकी है। हालांकि उस समय तक पश्चिम बंगाल में लोकसभा की कुल सीटें बढ़कर 42 हो चुकी थीं। 1996 के चुनाव से वाममोर्चा का भी ह्यास होना प्रारम्भ हुआ। इस चुनाव में वाममोर्चे को 33 सीटें मिलीं जबकि कांग्रेस को 9 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। 1999 के चुनाव में सुश्री ममता बनर्जी कांग्रेस का विरोध करके एक अलग दल, तृणमूल कांग्रेस बना चुकी थीं तथा भारतीय जनता पार्टी से समझौता कर चुकी थीं। इस स्थिति में वाममोर्चे को एक बड़ा झटका लगा और वह सिर्फ 29 सीटों पर ही विजय हासिल कर सका और भारतीय जनता पार्टी को 2 सीटों, दमदम तथा कृष्णानगर में जीत मिली। तृणमूल कांग्रेस को 8 लोकसभा सीटें मिलीं जबकि कांग्रेस इस चुनाव में 41 सीटों पर लड़कर सिर्फ 3 सीटें ही जीत सकी। 31 सीटों पर तो उसकी जमानत तक जब्त हो गयी।इस बार चौदहवीं लोकसभा के चुनाव में वाममोर्चे की चिन्ता का कारण कांग्रेस नहीं बल्कि भाजपा-तृमूकां है। एक बात तो तय है कि अगर इस बार पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनावों में कोई धांधली नहीं हुई तो निश्चित रूप से वाममोर्चा यहां से उखड़ सकता है। आठ सालों में 27 सीटों से घटकर 21 सीटों तक आ जाना माकपा के लिए एक बड़ा आघात है। इसे संभालने के लिए 2002 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने राजनीतिक पैंतरेबाजी के जरिए तृणमूल कांग्रेस को भाजपा से अलग करने का सफल प्रयास किया। उनको इसका फायदा भी मिला, क्योंकि तृणमूल और भाजपा एक साथ लड़ते तो राज्य विधानसभा का चेहरा कुछ अलग हो सकता था। इस गठबंधन को सत्ता अगर नहीं भी मिलती तो भी इसे 100 से ऊपर सीटें मिलने की उम्मीद थी। परन्तु तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा का साथ छोड़कर उसी कांग्रेस के साथ गठबंधन किया, जिसे तोड़कर तृणमूल कांग्रेस का जन्म हुआ था। पर कांग्रेस ने इस गठबंधन का उपयोग चुनावी फायदा लेने की बजाय तृणमूल कांग्रेस से बदला लेने में किया और इसका लाभ वाममोर्चे को हुआ।खैर, ममता को समय रहते अपनी यह गलती समझ में आ गई है और इस समय वह फिर से भाजपा के साथ गठबन्धन कर वाममोर्चा को पछाड़ने में लगी हैं। कांग्रेस और माकपा, दोनों ही यह गठबन्धन होने नहीं देना चाहते थे। उनकी लाख कोशिशों के बावजूद जब यह गठबंधन हो गया तो कांग्रेस और कम्युनिस्ट भीतरखाते एक होकर आए दिन नए-नए षडंत्र रच रहे हैं। लेकिन तृणमूल-भाजपा गठबंधन पर इनके षडंत्रों का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष श्री तथागत राय के कुशल नेतृत्व और सुश्री ममता बनर्जी की जुझारू छवि से इस गठबंधन को अच्छे परिणाम की आशा है।इस एकता ने वाम खेमे को डरा दिया है। फिर चुनाव आयोग ने भी कुछ ऐसे कदम उठाए हैं जिनसे वामपंथियों में खलबली है। चुनाव आयोग ने सबसे पहले माकपा के तीन “अंधभक्त” वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों- गौरव दत्त, वासुदेव बाग और विनय चक्रवर्ती- को स्थानान्तरित करने का आदेश दिया है। साथ ही चुनाव आयोग ने सवा लाख से अधिक मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटवा दिए हैं। उल्लेखनीय है कि प.बंगाल ऐसा एकमात्र राज्य है, जहां मतदाताओं की संख्या घटी है। इससे यह अन्दाजा लग सकता है कि यहां मतदाता सूची में किस हद तक धांधली की जाती रही है।चुनाव आयोग के एक अन्य आदेश से भी राज्य केवामपंथी बौखला गए हैं। आयोग ने साफ कहा है कि मतदान केन्द्रों पर उन सरकारी कर्मचारियों को नहीं रखा जाएगा, जिनका किसी भी राजनीतिक दल से सम्बंध हो। इसका प्रतिवाद करते हुए वामपंथियों ने कहा कि इस तरह का आदेश देकर चुनाव आयोग अपनी “तटस्थता” पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है।प. बंगाल में यूं तो 25 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है, परन्तु 70 विधानसभा क्षेत्रों और 10 लोकसभा क्षेत्रों में इनके वोटों का सीधा प्रभाव पड़ता है। इस बार मुस्लिम मत दो वर्गों में बंटे दिखते हैं जिनमें से एक वर्ग माकपा और कांग्रेस के पक्ष में है जबकि दूसरा बड़ा वर्ग राजग के पक्ष में। उधर प्रतिबंधित गुट “सिमी” ने इंडियन नेशनल लीग नामक पार्टी का गठन करके 6 लोकसभा क्षेत्रों से अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। इनमें “सिमी” के पूर्व नेता हसन सैदुल्ला अशरफ भी शामिल हैं। जिन छह सीटों पर “सिमी” अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव लड़ रही है, वे हैं- जांगीपुर, मुर्शिदाबाद, डायमण्ड हार्बर, बशीरहाट, जादवपुर और कोलकाता (उत्तर-पश्चिम)। माक्र्सवादियों की कथित राजनीतिक शह और कड़े कदम न उठाने के कारण “सिमी” जैसी प्रतिबंधित कट्टरवादी संस्थाओं ने धीरे-धीरे इस हद तक अपने पैर पसारने की कोशिश की है।जनतंत्र और चुनावों का उपहास उड़ाने की मानसिकता वाले माक्र्सवादी लोक लुभावने नारे लगा-लगाकर कब तक जनता को चकमा देंगे, यह देखना बाकी है। परन्तु भीतर की बात यही है कि जनता इस बार कम्युनिस्टों के विरुद्ध अपनी नाराजगी जाहिर कर देगी। इस बात की पूरी संभावना है।भाजपा के सागरपारीय मित्र भारत के चुनावी दौरे परन्यूयार्क से भाजपा के सागरपारीय मित्रों का एक 20 सदस्यीय दल इन दिनों भारत के दौरे पर है। इस दल के सदस्य भारत के विभिन्न प्रदेशों में जाकर भारतवासियों से विकसित भारत के निर्माण के लिए प्रधानमंत्री वाजपेयी के नेतृत्व वाले राजग गठबंधन को वोट देने की अपील कर रहे हैं। इस दौरान वे पत्रकार वार्ताओं और टेलीविजन व रेडियो साक्षात्कारों के जरिए भाजपा के विकसित भारत के संकल्प का प्रचार-प्रसार करेंगे। भाजपा के ये सागरपारीय मित्र अमरीका में भारतीय अमरीकी समाचार मीडिया के माध्यम से भाजपानीत राजग सरकार के 5 वर्ष के शासन की उपलब्धियों को गिनाने के साथ ही वतर्मान समय में इन चुनावों में भाजपा और राजग सहयोगियों को वोट देने की आवश्यकता पर प्रकाश डाल रहे हैं। प्रतिनिधि9
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