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शिबू सोरेन के कार्यालय और घर का आंखों देखा हाल
चार दिन तो हो गए साऽब!!
कोयला एवं खान मंत्रालय, शास्त्री भवन, नई दिल्ली
शुक्रवार (23 जुलाई) की सुबह शास्त्री भवन की तीसरी मंजिल पर स्थित कोयला एवं खान मंत्रालय सन्नाटे की चादर में दबा-ढका सा था। सामने ही कमरे के बाहर लगी तख्ती पर लिखा था-शिबू सोरेन, कोयला एवं खान मंत्री। कमरे के बाहर गिनती के दो सेवक। जिज्ञासु आंखें उठीं हमारी ओर। “मंत्री जी के पी.एस. से मिलना है।” टी.के. घोष हैं पी.एस. (निजी सचिव)। “नहीं हैं”, बताया गया। “तो पी.एस के पी.ए. ही होंगे”, हमने जिरह जारी रखी। “हैं न कृष्णन जी, भीतर”। कृष्णन जी कम्प्यूटर पर आंखें गढ़ाए मिले। (लगा जैसे हमारे आने की बात पता चली तो खुद को व्यस्त दिखाने की कोशिश की गई थी। हमें देखते ही कृष्णन बोले, “घोष जी मंत्रालय में ही कहीं गए हैं, आधे-एक घंटे में आ जाएंगे।” हमने सोचा, चलो घोष जी नहीं तो कृष्णन जी से ही बतिया लिया जाए।
उनसे पूछा, “क्या चल रहा है? क्या मंत्री जी की अनुपस्थिति में उनके हिस्से का काम राज्यमंत्री देख रहे हैं?” “हां, वे ही तो देखेंगे,” जवाब मिला। “फोन पर दिशानिर्देश आते हैं?” “नहीं, फोन-वोन तो कोई नहीं आया।” कृष्णन ने नपी-तुली बात की। आखिरकार वे बोल उठे, “आप वहां उस कमरे में साहब का इंतजार करें।” यह कहते हुए उन्होंने सामने आगंतुक कक्ष की ओर इशारा किया। आगंतुक कक्ष की ओर देखा तो दो सोफे (लम्बे वाले) और चार कुर्सियों वाला कालीन बिछा कक्ष खाली ही था।
224, नार्थ एवेन्यू, नई दिल्ली
तालकटोरा मार्ग से बाएं मुड़ते ही दार्इं ओर के पहले ही फ्लैट के ऊपर है 224, नार्थ एवेन्यू। शिबू सोरेन का सरकारी आवास। सामने सड़क पर बस दो टी.वी. चैनलों की गाड़ियां और उसमें यहां-वहां टिके बोझिल से एक-दो चेहरे। दरवाजे के सामने सुरक्षाकर्मियों का तम्बू और एक सुरक्षाकर्मी बाकायदा बंदूक के साथ तैनात। सामने सड़क पर सफेद चांदनी तानकर उसके नीचे (मंत्री जी के) आगंतुकों के लिए आठ-दस टेंट हाउस वाली कुर्सियां, जिन पर बाहर से आए दो-चार आगंतुक पसरे से बैठे थे। कोई चहल-पहल नहीं। बस, दरवाजे पर खड़ी मंत्री जी की लालबत्ती वाली कार साफ करता हुआ एक कर्मचारी जरूर सक्रिय दिखा। पहली मंजिल पर स्थित शिबू सोरेन के फ्लैट में घुसने से पहले दरवाजे पर दो अदालती वारंट चिपके दिखे, मुहर सहित। (वही जिनके फोटो तमाम अखबारों में छपे थे)। 19.7.2004-वारंट जारी किए जाने की तिथि लिखी थी उन पर। साथ ही हाथ से अंग्रेजी में अंकित थे शब्द- “शिबू सोरेन एंड अदर्स। एन.बी.डब्ल्यू 82 सी.आर.पी.सी.।” हजारीबाग जिले के थाना गोला का नाम भी अंकित था। भीतर पहुंचे तो एक सेवक ने आकर पानी पिलाया। हम वहीं सोफे पर बैठे ही थे कि बाहर से एक युवक आते ही पूछने लगा- “आप कौन?” अपना परिचय देने पर उसका परिचय पूछा। “कुन्दन- यहां काम करने वाले एक सेवक का परिचित हूं। आता-जाता रहता हूं।” हमने कुन्दन से पूछा, “क्या चल रहा है?” “वही, आप तो देख ही रहे हैं। और क्या बताएं हम।” फिर तौलकर बोले गए शब्द। कमरे में एक दीवार पर “जय झारखण्ड” लिखा था और उसके नीचे एक विशेष लिपि में कुछ लिखा हुआ था। कुन्दन ने बताया-वह संथाली में लिखा है- जय झारखण्ड। पानी पिलाने वाले सेवक से और दो बातें हुर्इं। उनका नाम था-पुन्नुस्वामी। बात करने के लहजे से ही पता चल गया कि दक्षिण के हैं पुन्नुस्वामी। “हां, तिरुचिरापल्ली से हूं।” लगभग उत्साहित होकर उन्होंने बताया। फिर उसकी भौगोलिक स्थिति की जानकारी दी। “चेन्नै से “बाई रोड” 300 किमी….।” हम कुछ देर सुनते रहे, फिर पूछा-“क्या सोरेन जी के लौटने के बारे में बता सकते हैं?” पुन्नुस्वामी हंस दिए, बस। हमने फिर पूछा- “फोन तो किए होंगे शिबू जी?” “नहीं साऽब, 4 दिन तो हो गए, कोई फोन भी नहीं आया। मिलने वाले आते हैं।” और इशारा कर दिया सामने कुर्सी पर बैठी एक महिला और तीन पुरुष आगंतुकों की ओर। हंसमुख पुन्नुस्वामी ने एक व्यक्ति की ओर इशारा करते हुए कहा, “3-4 दिन से ये भी खाली बैठे हैं।” हमने पूछा, “कौन हैं ये, क्यों खाली बैठे हैं?” “फोटोग्राफर हैं, मंत्री जी से मिलने आने वालों के मंत्री जी के साथ फोटो उतारते हैं।” पुन्नुस्वामी के चेहरे पर फिर हंसी उभरी। हमने पूछा, “वारंट तो दीवार से उतार दिए थे झामुमो कार्यकर्ताओं ने।” वे तुरन्त बोले, “न, न वो तो सीढि़यों में झाड़-पोंछ करने वाले ने यह समझकर हटा दिए थे कि कोई ऐसे ही पर्चे चिपकाकर दीवार गंदी कर गया है। मैंने तभी उन्हें फिर से चिपका दिया।” आलोक गोस्वामी
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