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सिन्धु दर्शन यात्रा
-राजेन्द्र सिंह चौहान, दिल्ली प्रदेश महामंत्री, भारतीय मजदूर संघ
गत 1-3 जून तक लेह में सिन्धु दर्शन कार्यक्रम संपन्न हुआ। इस वर्ष इस कार्यक्रम में भाग लेने देश के कोने-कोने से लोग भिन्न-भिन्न साधनों से पहुंचे। उनमें सबसे रोमांचक यात्रा थी, भारतीय मजदूर संघ के कार्यकर्ताओं की स्कूटर व मोटर साइकिलों से की गई यात्रा। इस यात्रा के आयोजक व प्रमुख, भारतीय मजदूर संघ, दिल्ली प्रदेश के महामंत्री श्री राजेन्द्र सिंह चौहान ने पाञ्चजन्य से हुई एक बातचीत में अपने अनुभवों को बांटा। यहां प्रस्तुत हैं उनके यात्रा वृतांत के प्रमुख अंश-
-प्रस्तुति: रविशंकर
गत 5 वर्षों से हम प्रतिवर्ष ऐसी यात्राओं का आयोजन कर रहे हैं। इससे पूर्व हम देश के विभिन्न भागों में इस प्रकार की यात्रा कर चुके थे। इस बार हमने सोचा कि अपने देश भारत के एक छोर पर जाना चाहिए। देश की पर्वतीय सीमा पर, जहां जाना थोड़ा कठिन है। इसलिए भारत की भूली-बिसरी नदी सिन्धु तक जाने का निश्चय किया गया। वहां लोग कैसे रहते हैं, उनका जीवन, रहन-सहन, संस्कृति आदि देखने-समझने की इच्छा थी। मजदूर संगठनों में कार्य करने के लिए जुझारू, हिम्मती और साहसी लोग चाहिए। ऐसे गुण कार्यकर्ताओं में विकसित हों, और जिनमें ऐसे गुण थोड़े-बहुत मात्रा में हों वही इस यात्रा में जाएं, यह विचार करके ही 21 की संख्या और दोपहिया वाहन से जाने का निश्चय किया गया।
हम 27 मई को दिल्ली से चले। यात्रा के दौरान हम नित्य 4.00 बजे उठते थे और पांच-सवा पांच बजे यात्रा प्रारंभ करते थे। रात्रि विश्राम 10.00 बजे होता था। उससे पूर्व एक-डेढ़ घंटे की बैठक करके उस दिन की पूरी समीक्षा और अगले दिन की तैयारी की जाती थी। पहले दिन 370 कि.मी. की यात्रा करके जालंधर पहुंचे। अगले दिन कटड़ा में रुके। वहां से श्रीनगर पहुंचे। हम एक ही पक्ति में चल रहे थे। प्रत्येक को उसका क्रमांक दिया हुआ था। सभी अपने क्रमांक के अनुसार चल रहे थे। श्रीनगर में इसका अच्छा प्रभाव दिख रहा था। लोग खुश थे और चर्चा कर रहे थे कि अब पर्यटक आने लगे हैं। श्रीनगर के आगे सोनमर्ग में हमें पुलिस और सेना दोनों ने रोका। उनके कमांडर से हम मिले, उन्हें समझाया तो उन्होंने फिर दिन के दो बजे हमें जाने दिया। आगे रास्ता बहुत खराब था। उस रास्ते पर चलते हुए, गिरते-पड़ते हम आगे बढ़े और द्रास क्षेत्र को पार किया। सावधानीपूर्वक आगे बढ़े और रात्रि आठ बजे हम कारगिल पहुंच गए। वहां से पेट्रोल लेकर बढ़े और डेढ़ घंटे का सफर करके हम अपने अगले ठिकाने मुलबथ पहुंचे। यह डेढ़ घंटे की यात्रा अभी तक की सबसे खतरनाक यात्रा थी। छोटे-छोटे रास्ते और बगल से एक गहरी नदी बह रही थी। रात का घुप्प अंधेरा। मुलबथ से प्रात: 5 बजे हमलोग चले और सायं पांच बजे तक लेह पहुंच गए। एकदम नया स्थान था। रोमांच भी हो रहा था और आनंद भी।
सबेरे हम सिन्धु दर्शन कार्यक्रम में गए। वहां हमारा सम्मान भी किया गया। सबसे आह्लादकारी अनुभव था, सिन्धु में स्नान करना। अभी तक उसका केवल नाम ही सुना था और वह भी केवल राष्ट्रगान जन गण मन में। बाद में हम लेह में घूमे, वहां के लोगों से मिले, उनसे बातचीत की। भारत तिब्बत सीमा पुलिस के शिविर में हम गए तो उन्होंने बहुत सहयोग किया। लेह में हम दो दिन ठहरे थे। वहां से हम तीन जून को चल पड़े। वापसी का रास्ता दूसरा था। इस रास्ते में हमें केवल मिट्टी के पहाड़ मिले। पोंट में पुल टूटा हुआ था। इसलिए वहां नाले को पार करना कठिन था। चूंकि बर्फ पिघल रही थी, इसलिए नाले में 3-4 फुट पानी था। रात हमने वहीं स्थानीय लोगों के तम्बुओं में गुजारी। सबेरे नाले में केवल डेढ़ फुट पानी था। इस पर एक ने मोटरसाइकिल पार करनी चाही। परंतु वह नाले में संभल नहीं पाया और बहने लगा। बड़ी कठिनाई से उसे बचाया जा सका। बाद में स्थानीय लोगों की सहायता से हमने उस नाले को पार किया। इसमें हमें पांच घंटे लगे। आगे रास्ता बहुत खराब था। गिरते-पड़ते 50 कि.मी. का रास्ता पार किया लेकिन हम अपने गंतव्य स्थल क्योलौंग तक नहीं पहुंच पाए। हमें पता भी नहीं था कि क्योलौंग लेह से कितनी दूर है। क्योलौंग से पहले ढिंग्ढिंगबार नामक एक स्थान पर हम पहुंचे। वहां सड़क संगठन के लोग रहते हैं। उन्होंने हमें सम्मानपूर्वक ठहराया। लेकिन वहां पहुंचने तक हमारा दल बिखर गया था। तीन कार्यकर्ता पीछे छूटे हुए थे, तीन आगे निकल गए थे। आगे निकले हुए में से दो सेना के शिविर में रुक गए थे और एक नाले में गिर गया था। वहां वह किसी मजदूर की झोपड़ी में जाकर ठहरा। उस रात उसको काफी परेशानी हुई। अगले दिन हम पुन: एकत्र हुए और फिर मनाली होते हुए वापस आए। कुल मिलाकर यह एक अत्यंत रोमांचकारी, आह्लादकारी और स्मरणीय यात्रा थी। कुल पांच दिन जाने और पांच दिन आने में लगे थे। अब हम इसका समारोप कार्यक्रम करने वाले हैं। साथ ही हम एक स्मारिका भी निकालने वाले हैं। इसमें इस यात्रा की पूरी जानकारी दी जाएगी। ताकि फिर कोई जाए तो हमें जितनी कठिनाई हुई, उसे उतनी कठिनाई न हो।
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