पाञ्चजन्य, पौष शुक्ल3, 2059 वि. (5 जनवरी, 2003)
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पाञ्चजन्य, पौष शुक्ल3, 2059 वि. (5 जनवरी, 2003)

by
May 1, 2003, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 01 May 2003 00:00:00

पश्यदक्षणवान्न वि चेतदन्ध:।आंख वाला ही सत्य को देख सकता है, अंधा नहीं।-ऋग्वेद (1/164/16)एक भारतीय पर्व का श्रीगणेशजैसे कोई दुनियाभर घूम आए और असीम वैभव का भी भोग कर ले, पर जो सुख उसे घर में मां के हाथों से बनी दाल-रोटी से मिल सकता है, वह सुख कहीं नहीं मिल सकता। उसी प्रकार भाजपा चाहे दुनियाभर में विकास, वैभव वगैरह-वगैरह का डंका पीट ले लेकिन अंतत: वह उसी आधार पर जीत सकती है जिस आधार को लेकर उसने राजनीति और उससे प्रभावित होने वाले समाज में अपनी पहचान बनाई है। वह आधार है राष्ट्रीयता का। वह आधार है भारतीयता, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद या हिन्दुत्व का। हिन्दुत्व का अर्थ मंदिरों में जाकर घंटियां बजाना या सरयू किनारे राम नाम जपना नहीं। हिन्दुत्व तो इस राष्ट्र के समग्र विकास और सर्वतोन्मुखी उन्नति का महामार्ग है। संघ के स्वयंसेवक प्रतिदिन अपनी प्रार्थना में भारत के परम वैभव और सामथ्र्य की कामना करते हैं और इस लक्ष्य को प्राप्त करने का संकल्प दोहराते हैं। भारत के परम वैभव का अर्थ है दरिद्रता, बेकारी, असुरक्षा, दुर्बलता दूर हो। परम वैभव न तो किसी एक मंदिर तक सीमित हो सकता है और न ही किसी एक चुनाव तक। सबसे बड़ी बात है कि इस देश में रहने वाले सभी भारतीय चाहे वे किसी भी पंथ या मजहब को मानने वाले हों, भारत राष्ट्र के उन्नयन के लिए एकजुट होकर काम करना सीखें। हमने बहुत समय संकीर्ण एवं क्षुद्र विषयों पर झगड़ने में बिता दिया। वि·श्व के अन्य उन्नत देशों की तरह भारत में भी श्रेष्ठ ढांचागत सुविधाएं हों, कहीं बिजली की कमी न रहे, कोई अनपढ़ न रहे, चौड़ी सड़कें, बेहतर यातायात के साधन, और उद्योग-धंधों के फलने-फूलने का सपना सबकी आंखों में तैर रहा है। यही हिन्दुत्व है। हम हर बार स्टेशन पर खड़े होते हैं और रेल छूट जाती है। इस बार आगे बढ़ने की गाड़ी पकड़नी ही होगी। पर उसके लिए जिस दमखम और मजबूत रीढ़ की हड्डी वाले नेताओं की राजनीतिक एकजुटता चाहिए, जो सब राजनीतिक भेदों से परे हटकर देश को सर्वोच्च महत्व दे, वह हासिल करना अभी भी बाकी है।एक भारतीय का महत्वहाल ही में भारत की सुप्रसिद्ध कम्प्यूटर लघुवर(सोफ्टवेयर कंपनी) पोलारिस के अध्यक्ष श्री अरुण जैन को इंडोनेशिया के जकार्ता नगर में स्थानीय माफिया दबाव में गिरफ्तार किया गया था और लगभग 11 दिन के बाद उन्हें छोड़ा गया। उनकी रिहाई के लिए भारत सरकार ने काफी प्रयास किए और भारत के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री श्री प्रमोद महाजन ने जो भी संभव हो सका वह करने का प्रयास किया। इस मामले का विवरण काफी कुछ समाचार पत्रों में छप भी चुका है और उससे यही ध्वनित होता है कि सेना की ओर से कुछ कंपनियां छद्म नाम से काम कर रही थीं जिनका वास्तव में स्थानीय सेना से संबंध था, उन्होंने पोलारिस कंपनी से ज्यादा पैसा ऐंठने के उद्देश्य से उन पर नाजायज दबाव बनाया।यह घटना का एक पहलू है।दूसरा पहलू यह है कि आज वि·श्व में भारतीयों के प्रति उतना ही सम्मान या असम्मान दिखाया जाता है जिस मात्रा में भारत की शक्ति का प्रभाव होता है। भारत जनवरी में अन्तरराष्ट्रीय प्रवासी भारतीय सम्मेलन भी कर रहा है। यह सम्मेलन इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि भारत सरकार ने दुनियाभर में फैले भारतीयों की शक्ति और महत्व को पहचाना। इसी महत्व के कारण भारत सरकार ने पहली बार एक नये और अनूठे पद का सृजन कर वैश्विक राजदूत के रूप में भीष्म अग्निहोत्री को नियुक्त किया। लेकिन वि·श्व में यदि कहीं किसी भी भारतीय पर कोई भी संकट आ खड़ा हो तो क्या भारत सरकार तत्परता से उसकी मदद कर पाती है?पोलारिस कोई साधारण और छोटी-मोटी कंपनी नहीं है और न ही वह संदिग्ध किस्म के व्यापार में लिप्त पाई गई। मुख्य बात यह है कि एक भारतीय उद्यमी यदि दुनिया में कहीं किसी परेशानी में फंस जाए तो वहां का दूतावास और दिल्ली की सरकार उसकी मदद कर सकती है या नहीं? श्री अरुण जैन को छोड़ने में 11 दिन लग गए। अंतत: छुड़ा लिया गया,पासपोर्ट भी वापस मिल गया। इसके लिए निस्संदेह सरकार और विशेषत: श्री प्रमोद महाजन तथा श्री यशवंत सिन्हा की प्रशंसा की ही जानी चाहिए।पर इस प्रकरण से यह भी सिद्ध होता है कि इस देश में केवल भारतीय होना भर पर्याप्त नहीं है, जब तक ऊंचे पदों पर बैठे किन्हीं खास लोगों से आपकी जान-पहचान न हो, “सही सम्पर्क” न हो तब तक आप भारतीय होने पर भी न्याय पाने के कुछ कम ही हकदार माने जाते हैं। हम चाहे अपने बारे में कितनी ही डींगें हांक लें पर दुनिया हमें हमारी कृति, हमारे पराक्रम और हमारे दमखम से ही नापती है। वास्तविकता तो यह है कि इस समय भारत की स्थिति शक्ति-संपन्न किंतु सहिष्णु और उदार राष्ट्र की नहीं, बल्कि उस देश की है जो कमजोर है, छोटी-छोटी बात के लिए दबाव में आता है और अपनी कमजोरी को उदारता का नाम देता है। यह ऐसा देश है जो पहले फौजें सीमा पर भेजता है फिर वापस बुलाता है यानी तय ही नहीं कर पाता कि करना क्या है। जहां रोज आतंकवादी जिहादी देशभक्तों को मारते हैं और जहां की सरकार के कर्ता-धर्ता इस बात पर प्रसन्न होते हैं कि अत्यंत उत्तेजना के बाद भी उन्होंने संयम से काम लिया। ऐसे देश के किसी व्यक्ति का विश्व में क्या महत्व हो सकता है?3

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