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-विनोद मेहता, सम्पादक, आऊ टलुक (अंग्रेजी)
वर्षों बाद 2003 में देखने को मिला कि देश के आम आदमी की सोच सकारात्मक हुई है और नैतिक उत्थान हुआ है। मैं तो बराबर साल के अन्त में वार्षिक रपट लिखता रहता हूं। इस बार भी मैं चमत्कारिक भारत के रूप में अपनी पत्रिका में लेख लिखूंगा। लेकिन बात केवल इतनी नहीं है कि देश का मुद्रा भण्डार बढ़ गया, देश के किसी आई.आई.टी. प्राध्यापक ने अमरीका में कमाल कर दिया, बल्कि आम हिन्दुस्थानियों में पहली बार यह वि·श्वास जगा है कि हम हर क्षेत्र में दुनिया का मुकाबला कर सकते हैं। मात्र मुकाबला ही नहीं, हम जीत भी सकते हैं।
पहले हम केवल हारते थे, लेकिन अब जीतने भी लगे हैं। यह बहुत बड़ी बात है और इसी की वजह से देश का आम आदमी वि·श्वास से भरा हुआ है। इस वि·श्वास को बढ़ाने में मानसून का बड़ा हाथ है। अच्छा मानसून होने के कारण गांवों में किसानों के पास पैसा आ गया है, लोग नए-नए कारोबार तलाश रहे हैं। इन्हीं का परिणाम है कि देश की आर्थिक स्थिति सुधरी है। मैं साफ करना चाहता हूं कि देश की आर्थिक स्थिति सुधारने में राजग सरकार का कोई योगदान नहीं है, बल्कि इस सरकार को मानसून ने साथ दिया है।
मेरी दृष्टि में पत्रकारिता के लिए यह साल अच्छा नहीं रहा। 2003 में पत्रकारिता के क्षेत्र में एक बुरी चीज हुई है और वह है लांछन लगाने वाली पत्रकारिता। यह बहुत ही चिन्ताजनक बात है। यदि सभी लोग लांछन लगाने वाली पत्रकारिता करने लगें तो पत्रकारिता नहीं चल सकती। इसलिए हमको सोचना पड़ेगा कि हम किस दिशा में जा रहे हैं। पहले एक रपट को तैयार करने में महीनों लग जाते थे और वह रपट विश्वसनीय होती थी।
इस वर्ष को अमरीका की मनमानी के लिए भी याद किया जाएगा। एक संप्रभु राष्ट्र पर पूरी दुनिया की अवहेलना करते हुए हमला किया गया और उसको अपने कब्जे में ले लिया गया। लेकिन इस घटना का प्रसाद अपने सैनिकों पर हो रहे जानलेवा हमले के रूप में अमरीका खा रहा है। हमें लग रहा है कि इससे अमरीका सबक सीखेगा। सद्दाम हुसैन को कब्जे में करने के बाद भी इराक में अमरीकी सैनिकों पर हमले हो रहे हैं, आगे इसके बन्द होने की भी संभावना कम ही दिखती है।
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