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इस साझे में किसका हित?द विशेष प्रतिनिधिजम्मू क्षेत्र के साथ पिछले 55 वर्षों से चला आ रहा भेदभाव, इस बार के चुनाव में प्रमुख मुद्दा बना रहा। यद्यपि भाजपा और उससे पूर्व भारतीय जनसंघ तथा प्रजा परिषद् के घोषणापत्रों में यह सदैव एक बड़ा प्रश्न रहता था तथापि इस बार जम्मू राज्य मोर्चा और भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस और कुछ अन्य दलों ने भी इसे खूब उछाला।कांग्रेस ने इस भेदभाव की सारी जिम्मेदारी अपने पुराने सहयोगी दल नेशनल कांफ्रेंस पर डाल दी। चुनाव के दौरान अपने भाषणों में कांग्रेसी नेताओं ने बार-बार दोहराया कि अगर कांग्रेस की जीत होती है तो मुख्यमंत्री पद के लिए गुलाम नबी आजाद का नाम सामने रखा जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। हालांकि आजाद भी मूलत: कश्मीर से ही हैं, लेकिन वर्तमान में जम्मू के डोडा जिले के गांव सोती के निवासी होने के कारण लोगों ने सोचा कि वे जम्मू के साथ होने वाले भेदभावों को समाप्त कर देंगे।चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस 20 सदस्यों के साथ दूसरी बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। 20 में से 15 जम्मू क्षेत्र से थे। परंतु तमाम राजनीतिक उठापटक के बाद, श्रीमती सोनिया गांधी ने घाटी से जुड़े क्षेत्रीय दल पी.डी.पी. के मुफ्ती मोहम्मद सईद को मुख्यमंत्री बनाना स्वीकार कर लिया। उस निर्णय से जम्मू के लोग ठगा-सा अनुभव कर रहे हैं और कांग्रेस के विरुद्ध कई स्थानों पर प्रदर्शन भी किए जा चुके हैं। लोगों का रोष इस कारण भी है, क्योंकि पी.डी.पी. के साथ सत्ता में भागीदारी के लिए कांग्रेस ने एक ऐसा साझा कार्यक्रम स्वीकार किया है जो देश और प्रदेश के हितों में न होकर आतंकवादियों के हित में है। इस साझा कार्यक्रम के अनुसार आतंकवाद निरोधक कानून, पोटा राज्य से हटा दिया जाएगा। पकड़े गए आतंकवादियों पर लगाए गए आरोपों की समीक्षा होगी और जिनके विरुद्ध गंभीर आरोप नहीं होंगे, उन्हें छोड़ दिया जाएगा। साथ ही आतंकवाद से निपटने हेतु गठित विशेष दस्ते भी समाप्त कर दिए जाएंगे। लोगों का मानना है कि इससे आतंकवाद को बढ़ावा ही मिलेगा। जम्मू विरोधी रुख रखने वाले दल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष मुफ्ती मोहम्मद सईद को मुख्यमंत्री पद सौंपने और साझा घोषणापत्र में आतंकवादियों को प्रोत्साहन देने वाली नीतियों से प्रदेश कांग्रेस विधायकों में पैदा हुए रोष को खत्म करने के लिए कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेस नेता पंडित मंगतराम शर्मा को उप-मुख्यमंत्री का पद सौंपने का फैसला कर लिया है। लेकिन हमेशा से श्री शर्मा का विरोध करने वाले गुलाम नबी आजाद इस फैसले से खुश नहीं हैं। वह इस पद पर किसी पिछड़ी जाति के विधायक को नियुक्त करने के पक्ष में हैं। शपथ ग्रहण समारोह से पहले ही पी.डी.पी. और कांग्रेस के बीच सरकारी अधिकारियों की नियुक्तियों को लेकर खींचातानी शुरू हो गई थी। कांग्रेस महत्वपूर्ण कार्यालयों में जम्मू से राजस्व अधिकारियों को लगाना चाहती है, जबकि पी.डी.पी. इसके ठीक विपरीत है। परस्पर विरोधी विचार रखने वाले दलों की यह गठबंधन सरकार किस तरह जनता की अपेक्षाओं को पूरी करेगी, यह तो समय ही बताएगा।16
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