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हिन्दू मैं हिन्दू क्यों हूं?द हरि जयसिंहसम्पादक, द ट्रिब्यून (चण्डीगढ़)मेरा मानना है कि आजकल हिन्दुत्व का जो स्वरूप या उसके अनुसार व्यवहार करने वाले दिख रहे हैं वह राजनीति से प्रभावित हैं। हिन्दू धर्म तो एक जीवन शैली है, विचारशैली है, कार्यशैली है। गीता में कृष्ण ने जीवन पद्धति के तीन स्वरूप बताए हैं-राजसी, सात्विक और तामसी। आज जो प्रवृत्ति सामने दिख रही है वह सात्विक नहीं, तामसी है। हमारी सांस्कृतिक सभ्यता का जो विशेष गुण रहा है उसके अनुसार आज आचार-विचार कहां दिखाई देते हैं।हिन्दुत्व तो है सहिष्णुता, उदारता और समन्वय। जीयो ओर जीने दो का भाव है हिन्दुत्व। हिन्दुत्व की नींव है धर्म। धर्म का अर्थ यह नहीं है कि आप तिलक लगाकर दिन में चार बार मंदिर जाएं या स्नान करें। धर्म तो आपके आचार-विचार में झलकता है, उसमें कितनी पवित्रता है, व्यवहार से पता चलता है। हिन्दुत्व तो मूल्यों पर आधारित होता है। लेकिन दुर्भाग्य से कुछ लोग हिन्दुत्व का जो स्वरूप दिखा रहे हैं वह धनाधारित है, राजनीति-आधारित है। इसका हिन्दुत्व से कोई लेना-देना नहीं है।रामायण में एक जगह कथा आती है कि राम भक्त हनुमान के ह्मदय में श्रीराम का वास था। उन्होंने अपने ह्मदय में बसे श्रीराम के दर्शन कराए। यह तो आस्था की बात है। फिर एक कथा है कि श्रीराम ने एक शिला को शिव का रूप मानकर उसकी पूजा की, राम के लिए वही शिला शिव बन गई। धर्म कोई मंदिर बना लेने से नहीं दिखता, इमारतों के कारण धर्म नहीं है। अगर आपका व्यवहार, आचार सही नहीं है तो फिर आप धार्मिक नहीं हैं। एक हिन्दू परिवार का सदस्य अगर देव प्रतिमा की पूजा नहीं करता तो भी उसे परिवार से बाहर नहीं किया जाता। अगर कोई मंदिर में दर्शन करने भीतर नहीं जाता, पर फिर भी उसके सामने से गुजरते हुए अगर श्रद्धा से उसका सिर झुकता है तो वह भी धार्मिक है, और यह होता है संस्कारों के कारण। हिन्दुत्व संस्कारों से झलकता है। हमें ऐसा हिन्दुत्व चाहिए जो गरीबों, पिछड़ों निम्न वर्ग के उत्थान की बात करे। हमें हिन्दुत्व के इस आधुनिक विचार को गढ़ना है जो अग्रगामी हो, मूल्याधारित हो।हिन्दुत्व का एक बड़ा आधार रहा है जिसके कारण हिन्दुस्थान बार-बार उस पर आए संकटों के बावजूद हमेशा नई ऊर्जा के साथ उठ खड़ा हुआ है। गजनी ने 11 बार आक्रमण करके सोमनाथ मंदिर को तहस-नहस किया था, पर सोमनाथ का मंदिर आज भी यथावत् है। उसने मंदिर की इमारत का ध्वंस किया लेकिन हिन्दुत्व यथावत् रहा, धर्म पर आंच नहीं आई। हिन्दुत्व की पहचान सामाजिक सुधार भी है। गुरु नानक देव, स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद आदि महापुरुषों ने सामाजिक सुधार के लिए अनेक कार्य किए।हम अपने परिवार से प्राप्त संस्कारों, मूल्यों के कारण ही हिन्दू हैं। मेरे परिवार की हिन्दू धर्म में आस्था है, आर्य समाज में आस्था है, गुरुनानक देव और संत कबीर सहित सूफी संतों में भी आस्था है। सभी मत-पंथों में जोड़ने वाली बातें हैं, कोई विरोधाभास नहीं है। हिन्दू धर्म तोड़ने वाला धर्म नहीं, बल्कि लोगों को मिलाने वाला धर्म है। स्वामी विवेकानंद ने इन्हीं मूल्यों को आत्मसात किया था और एक अजनबी होने के बावजूद शिकागो की धर्म महासभा में सबको मंत्र-मुग्ध कर दिया था।आज समाज की दृष्टि से देखें तो धर्म के प्रति लोगों में आस्था बढ़ी है, विशेषकर मंदिर जाने वालों में युवाओं की एक बड़ी संख्या दिखती है। राजनीति की बात करें तो जो राजनीतिज्ञ खुद को हिन्दुत्व का प्रतिनिधि कहते हैं उन्हें अपने आचार-विचार, व्यवहार में हिन्दुत्व के मूल्यों को उतारना पड़ेगा। बहरहाल, मैं हिन्दुस्थान को पुण्य भूमि मानता हूं, यह ऋषि-मुनियों के तप से सिंचित भूमि है।29
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