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मदरसों की भरमार
…और इन पर खूब पैसा लुटा रही है कम्युनिस्ट सरकार
— पिनाकपाणि घोष
वाम मोर्चा शासित पश्चिम बंगाल में लगभग हर गली में मदरसे दिखने लगे हैं और इस स्थिति पर वाममोर्चा सरकार काफी प्रफुल्लित है। यहां अन्य शिक्षा व्यवस्थाएं रसातल में जा रही हैं, लेकिन वाममोर्चा ने एक अलग मदरसा नीति बनायी है। 1780 से लेकर 1977 तक 197 वर्षों में राज्य में जितने मदरसों की स्थापना हुई थी, उससे दो गुना से भी ज्यादा मदरसों की स्थापना पिछले 23 वर्षों के कम्युनिस्ट शासन में हुई है। 10 फरवरी,2001 को कोलकाता के मिलन मेले में मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने बड़ी प्रसन्नता से इस बात की घोषणा की थी। इस मेले का आयोजन पश्चिम बंगाल अल्पसंख्यक विकास व वित्त निगम ने किया था।
मदरसा शिक्षा की शुरुआत 1780 में हुई थी। कोलकाता में ही प्रथम मदरसे की स्थापना हुई। 1977 में 238 मदरसे थे। इनमें 92 उच्च मदरसे, 71 कनिष्ठ मदरसे और 75 वरिष्ठ मदरसे हैं। लेकिन वाममोर्चा के शासनकाल में उच्च मदरसों की संख्या में भारी वृद्धि हुई। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस समय राज्य में 229 उच्च मदरसे, 174 कनिष्ठ तथा 103 वरिष्ठ मदरसे हैं। बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठियों के गढ़ के रूप में चिन्हित आठ सीमावर्ती जिलों में मस्जिदों के आसपास कुकुरमुत्तों की तरह मदरसों की संख्या में वृद्धि हुई है। खबर है कि इसके लिए सउदी अरब से भारी मात्रा में धनराशि आ रही है।
1976 में मदरसा शिक्षा के लिए 5 लाख 20 हजार रुपए का बजट था, जो आज बढ़कर 115 करोड़ रुपए हो गया है। पंथनिरपेक्ष भारत के पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य बड़े उत्साह के साथ कहते हैं कि मदरसों के सारे शिक्षकों व कर्मचारियों को हम ही वेतन देते हैं। यहां उल्लेखनीय है कि भारत में अन्य कोई राज्य सरकार ऐसा नहीं करती। इस मामले में इस राज्य के वामपंथियों ने मुसलमानों के स्वयंभू मददगार मुलायम सिंह यादव को भी पीछे छोड़ दिया है। जब मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने मदरसों को इस तरह की सुविधाएं नहीं दीं। 1977 में जब वाममोर्चा सत्ता में आया, तब उच्च मदरसों में छात्र-छात्राओं की संख्या 3,433 थी, जो आज बढ़कर 15,428 हो गयी है।
पाकिस्तान में जिया-उल-हक के जमाने में इसी तरह मदरसों की संख्या बढ़ी थी, जो बाद में तालिबानी मानसिकता के उग्रवादी तैयार करने के केन्द्र में परिवर्तित हो गई। लश्करे तोइबा समेत अनेक खतरनाक उग्रवादी दलों का उद्गम-स्थल ये कथित मदरसे ही हैं। तालिबानी बन्दूकधारियों में अधिकतर पाकिस्तानी मदरसों की उपज हैं।
पश्चिम बंगाल में मदरसों की भरमार देखकर मुख्यमंत्री चाहे जितने खुश हो लें, लेकिन सीमावर्ती जिलों के लोग आतंकित हैं। भारत-बंगलादेश सीमा पर शान्ति व सुरक्षा का मसला अभी भी सवालों के कठघरे में है। सीमावर्ती 8 जिलों का जन-चरित्र तेजी से बदल रहा है। घुसपैठ, चोरी, चुन-चुनकर हिन्दुओं के घरों में डकैती, हिन्दू महिलाओं का अपहरण, उत्पीड़न, गायों की तस्करी आदि घटनाओं के साथ-साथ साम्प्रदायिक सौहाद्र्र भी समाप्त होता जा रहा है।
मुख्यमंत्री के भाषण से भी इस बात का संकेत मिला कि ये मदरसे आधुनिक शिक्षा की परवाह नहीं करते। वहां कुरान, अरबी भाषा और इस्लामी इतिहास पढ़ाया जाता है लेकिन अपने तरीके से। मदरसे के छात्र समय के साथ ताल मिलाकर विज्ञान नहीं पढ़ते, अंग्रेजी नहीं सीखते। उन्हें यह सब पढ़ाया ही नहीं जाता। और एक बात, जो मुख्यमंत्री ने नहीं कही, वह यह कि इन मदरसों में जिहाद की मानसिकता रोपी जाती है। सरकार चाहे कितना ही रुपया लुटा दे, इन मदरसों पर नियंत्रण कट्टरपंथी मुल्लाओं का ही है।
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