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-नरेश अग्रवाल,ऊर्जा मंत्री उ.प्र.
उत्तर प्रदेश में सरकार ने राज्य विद्युत परिषद् को भंग करके तीन निगमों का गठन किया है। यह निर्णय सरकार को क्यों लेना पड़ा? क्या यह निजीकरण का पहला चरण है? क्या निगमों में कर्मचारियों के हित सुरक्षित रहेंगे। आदि विषयों पर पाञ्चजन्य ने प्रदेश के ऊर्जा मंत्री श्री नरेश अग्रवाल से बातचीत की। प्रस्तुत हैं वार्ता के मुख्य अंश:
द पाञ्चजन्य प्रतिनिधि
थ्प्रदेश सरकार को राज्य विद्युत परिषद् भंग करने का निर्णय क्यों लेना पड़ा?
दृराज्य विद्युत परिषद् का स्वरूप इतना बड़ा था कि वहां किसी की कोई जिम्मेदारी नहीं थी। उत्पादन एवं वितरण एक ही संस्था के अन्तर्गत था। इस कारण निर्णय लिया गया कि राज्य विद्युत परिषद् का पुनर्गठन कर दिया जाए। सबको अलग-अलग जिम्मेदारी दे दी जाए।
थ्क्या परिषद् को भंग करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था?
दृदो साल से हम प्रयास कर रहे थे कि कोई सुधार हो जाए। हमने सुधार प्रक्रिया को राज्य विद्युत परिषद् में लागू करने का प्रयास किया था लेकिन अभियन्ताओं और कर्मचारियों ने लागू नहीं होने दिया।
थ्क्या पूर्ववर्ती सरकारों ने भी परिषद् को भंग करने का प्रयास किया था?
दृहां, पहले भी प्रयास किए गए थे। पत्रावली पर सुश्री मायावती और मुलायम सिंह जी के भी हस्ताक्षर हैं। जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें हैं वहां भी इस प्रक्रिया को लागू किया जा रहा है। इसका अर्थ है कि सभी राजनीतिक दल इससे सहमत हैं। वे इसे लागू नहीं कर पाए तो उनके सामने कुछ राजनीतिक कठिनाइयां रही होंगी।
थ्क्या निगम बन जाने पर कर्मचारियों की सेवा शर्तें प्रभावित होंगी?
दृबिल्कुल नहीं। अब शासनादेश जारी होने के बाद उनके मन में कोई शंका नहीं रहनी चाहिए।
थ्जनता में भ्रम है कि निगम बन जाने के बाद बिजली की दरें कई गुना बढ़ जाएंगी?
यह तो हमने स्पष्ट किया है कि बिजली का शुल्क तय करने का अधिकार नियामक आयोग को है। यदि हम 1.80 रुपए में प्रकाश और पंखे की बिजली दे रहे हैं तो 16 प्रतिशत बढ़ाने पर भी 2.05 रुपए से अधिक नहीं होता है। कर्मचारी नेताओं की ओर से प्रचार किया जा रहा था कि बिजली छह-सात रुपए प्रति यूनिट हो जाएगी।
थ्कर्मचारी नेताओं का कहना था कि सरकार पर उनके बोर्ड का जो बकाया है वह मिल जाए तो काफी हद तक घाटा दूर हो सकता है?
दृइनका यह कहना गलत है इसी सरकार ने अनुदान देना शुरू किया है। हमने तो 180 करोड़ रुपया कृषि अनुदान देना भी शुरू कर दिया। ये एक ही बात को कहते हैं कि किसानों के ऊपर बिजली खर्च हो रही है। हमारा उन पर बकाया है। ये अगर प्रकाश और पंखे की प्रक्रिया देखें तो 42 प्रतिशत से अधिक इसी के बकायादार हैं। उद्योग क्षेत्र के लोग 22 प्रतिशत, किसान तो 5 प्रतिशत ही बकायादार है। लेकिन बिजली बोर्ड पर तो राज्य सरकार का 33 हजार करोड़ बकाया है। इसमें 19 हजार करोड़ राज्य सरकार का ऋण है। 4.50 हजार करोड़ कर्मचारियों की भविष्यनिधि का है। और 10 हजार करोड़ की इनकी अन्य देनदारियां हैं।
थ्कर्मचारी नेताओं का कहना था कि सरकार गांवों का विद्युतीकरण तथा पिछड़ी बस्तियों का विद्युतीकरण करती है जो घाटे का सौदा है। यह पैसा सरकार को देना चाहिए।
दृसामाजिक दायित्व भी सरकार की प्राथमिकता होती है। ऐसा नहीं है कि राज्य विद्युत परिषद् पूर्णत: व्यापारिक संस्था है। हम जब इस बात पर चल रहे हैं कि समानान्तर व्यवस्था हो जाए, कहीं निजी हो, कहीं राज्य विद्युत परिषद् की हो तो इसमें इन्हें डर किस बात का है। ये एकाधिकार करना चाहते हैं। इससे जनता को कभी राहत नहीं मिल सकती। सरकार जब हर जगह समानान्तर व्यवस्था में चली गई है तो फिर इनको जाने में क्या दिक्कत है। आज जो आर्थिक सुधार का युग आ रहा है, उसे ये ग्रहण नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि इनकी जो गलतियां थीं वे उभर कर सामने आ रही हैं।
थ्क्या इसके बाद निजीकरण की प्रक्रिया शुरू होगी?
दृनिश्चित ही इसके बाद निजीकरण की प्रक्रिया शुरू करेंगे। लेकिन अभी तो हमने केवल पुनर्गठन किया है। अगर कर्मचारी अब भी अपनी प्रक्रिया में सुधार कर लें तो हम बहुत तेजी से निजीकरण की ओर बढ़ जाएंगे। फिर भी समानान्तर व्यवस्था को जरूर रखेंगे।
थ्निगम बनने के बाद क्या प्रदेश के किसानों को रियायती दर पर मिलने वाली विद्युत व्यवस्था में परिवर्तन होगा?
दृकिसानों को रियायती बिजली देने के लिए सरकार विद्युत परिषद् को अनुदान देती थी। निगम को भी देगी इसलिए किसानों को पूर्ववत विद्युत आपूर्ति होगी।
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