एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर)
घोषित उद्देश्य : चुनावी पारदर्शिता, जवाबदेही, स्वच्छ राजनीति की दिशा में प्रत्याशी की पृष्ठभूमि, जैसे-आपराधिक, आय-व्यय का विश्लेषण और शैक्षणिक विवरण सार्वजनिक कर मतदाताओं को जागरुक करना।
वास्तविक गतिविधि : चुनाव सुधारों के नाम पर बार-बार चुनाव आयोग की संवैधानिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप, विदेशी फंडिंग, वैचारिक हस्तक्षेप व राजनीतिक ध्रुवीकरण फैलाना, आलोचना का रुख प्रायः एक विचारधारा विशेष के विरुद्ध और दूसरे का संरक्षण करना।
धुंधलके में लिपटे पारदर्शिता के पैरोकार
- एडीआर की याचिकाओं के कारण 2003 में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रत्याशियों को आपराधिक रिकॉर्ड, संपत्ति व शिक्षा का विवरण देना अनिवार्य किया था। यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।
- हाल ही में यह संस्था एकतरफा एजेंडा चलाने लगी है। 2024 में एडीआर ने चुनाव आयोग द्वारा बिहार में आधार आधारित मतदाता सूची पुनरीक्षण को ‘संवैधानिक उल्लंघन’ कहकर सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी (W.P. (C) 641/2024)।
- आयोग का कहना था कि यह ‘डुप्लिकेट वोटर्स’ को हटाने की नियमित प्रक्रिया है और आधार नंबर देना स्वैच्छिक है।
स्रोत:
- चुनाव आयोग द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, भारत में करीब 6.5 करोड़ से अधिक डुप्लिकेट या मृत मतदाताओं की पहचान 2015–2023 के बीच हुई, जिसमें आधार आधारित प्रमाणीकरण से सहायता मिली।
- ADR की चुनिंदा आपत्तियां कई बार “लोकतंत्र के नाम पर डेटा संरक्षण के पीछे छिपी वैधानिक प्रक्रिया-विरोधी सक्रियता” मानी जाती हैं।
- एनबीटी की रिपोर्ट में कहा गया कि सर्वोच्च न्यायालय ने एडीआर की मंशा पर सवाल उठाते हुए उसकी वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें उसने ईवीएम से वोटिंग प्रणाली को हटाने या जरूरी बदलाव की मांग की थी।
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल)
घोषित उद्देश्य : नागरिक अधिकारों-मानवाधिकारों की रक्षा, संवैधानिक और लोकतांत्रिक मूल्यों को सुदृढ़ करना तथा सत्ताधारी तंत्र के दमनकारी उपायों की आलोचना करना।
वास्तविक गतिविधि : पक्षपाती रिपोर्टिंग, नक्सल हिंसा, कश्मीर में आतंकवाद और कट्टरपंथी इस्लामी गतिविधियों पर चुप्पी। हिंसक गुटों की ‘नरम पैरवी’, न्यायपालिका व सुरक्षा एजेंसियों पर अविश्वास, देश विरोधी अंतरराष्ट्रीय एनजीओ से सहयोग और विदेशी फंडिंग।

कथनी और करनी में अंतर
- 2016 में पीयूसीएल ने बस्तर की एक मुठभेड़ को फर्जी बताया, लेकिन एनएचआरसी और गृह मंत्रालय की रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया कि मारे गए व्यक्ति प्रतिबंधित माओवादी दल के सशस्त्र सदस्य थे।
- पीयूसीएल ने कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद ‘स्वतंत्रता के हनन’ का आरोप लगाया, जबकि अनुच्छेद 370 हटाने के बाद आतंकवादी घटनाओं में 60% की कमी दर्ज की गई।
- पीयूसीएल की “Selective Human Rights Advocacy” (चयनात्मक मानवाधिकार वकालत) की आलोचना स्वयं कुछ पूर्व कार्यकर्ताओं ने भी की है। (संदर्भ : Gautam Navlakha’s dissociation note, 2020)।
स्रोत :
- Home Ministry Annual Report on Left Wing Extremism (2022) में पीयूसीएल सहित कई संगठनों द्वारा माओवादी ‘नरसंहारों’ पर मौन की आलोचना की गई।
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने 2023 में पीयूसीएल की एक रिपोर्ट को ‘अपूर्ण तथ्यों पर आधारित और पूर्वाग्रह से प्रेरित’ बताया।
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
घोषित उद्देश्य : मानवाधिकारों की रक्षा, न्याय, स्वतंत्रता और समानता सुनिश्चित करना। अल्पसंख्यकों, महिलाओं, दलितों, जनजातियों और हाशिए पर खड़े समुदायों के अधिकारों की रक्षा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, पांथिक स्वतंत्रता, असहमति के अधिकार का समर्थन करना।
वास्तविक गतिविधि : भारत के संवेदनशील विषयों पर अत्यधिक आलोचना, पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद पर मौन। भारत-विरोधी नैरेटिव को बढ़ावा, वामपंथी और कट्टर सेकुलर एजेंडा चलाना, न्यायिक मामलों में हस्तक्षेप करना तथा देश की छवि को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नकारात्मक रूप से प्रस्तुत करना।
मीठे बोल, जहरीला घोल
- एमनेस्टी की रिपोर्ट ‘Losing the Plot in Kashmir’ (2019) ने भारतीय सेना को ‘Occupational Force’ कहा।
- 2020 में सीबीआई और ईडी की संयुक्त जांच में पाया गया कि एमनेस्टी ने एफसीआरए के नियमों को दरकिनार करते हुए 36 करोड़ रुपये से अधिक विदेशी फंड भारत में एनजीओ के रूप में इस्तेमाल किए, जबकि वह कंपनी के रूप में पंजीकृत थी।
- एमनेस्टी के वरिष्ठ निदेशक अविनाश कुमार ने खुले तौर पर धारा 370 हटाने को ‘आक्रामक अधिग्रहण’ कहा था, लेकिन पाकिस्तान में बलूचिस्तान या खैबर में मानवाधिकार हनन पर चुप्पी साधी गई।
स्रोत :
l FCRA Cancellation Order, MHA, Sept 2020 l CBI Case No. RC 219 2020 E 0004
l Baloch Human Rights Council (BHRC) ने एमनेस्टी की ‘भारत-केन्द्रित आलोचना और पाकिस्तान-सम्बंधित चुप्पी’ की आलोचना की है (2021)।
ग्रीनपीस इंडिया
घोषित उद्देश्य : पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण, परमाणु ऊर्जा, हथियारों के प्रसार के विरुद्ध शांतिपूर्ण प्रदर्शन करना, स्थानीय और वैश्विक माध्यम से समाधान देना, रचनात्मक अभियान चलाना और सार्वजनिक बहस को दिशा देना।
वास्तविक गतिविधि : भारत की औद्योगिक और ऊर्जा-आधारित परियोजनाओं में व्यवस्थित अड़चन डालना। विदेशी चंदे पर विवाद और सरकारी प्रतिबंध, वित्तीय प्रबंधन और कार्यप्रणाली पर सवाल उठना।
पर्यावरण बहाना, मकसद टांग अड़ाना
- 2014 में ग्रीनपीस ने मध्यप्रदेश के महान कोल ब्लॉक प्रोजेक्ट का विरोध किया, जिसे ‘इको-सेंसिटिव जोन’ कहकर विश्व मंचों पर बदनाम किया गया, जबकि MOEF की रिपोर्ट में प्रोजेक्ट को सामाजिक-आर्थिक रूप से उपयुक्त बताया गया था।
- दिल्ली में ऊर्जा नीति पर रोक, असम में हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट में बाधा जैसे अनेक उदाहरण मिले।
स्रोत :
- आईबी रिपोर्ट 2014 के अनुसार ग्रीनपीस जैसी संस्थाओं के कारण भारत की जीडीपी को संभावित 2-3 प्रतिशत नुकसान की आशंका जताई गई थी।l
- 2015 में गृहमंत्रालय ने ग्रीन के बैंक खाते सील किए थे; 2017 में एफसीआरए लाइसेंस रद्द हुआ।
नेशनल कैम्पेन फॉर पीपुल्स राइट टु इन्फॉर्मेशन (एनसीपीआरआई)
घोषित उद्देश्य : सूचना का अधिकार सशक्त बनाना, व्यवस्था पारदर्शिता और भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करना।
वास्तविक गतिविधि : एकपक्षीय सक्रियता, विशेषत: सीएए, एनआरसी जैसे विषयों पर वैचारिक स्वरूप में विरोध करना। संविधान और व्यवस्थाओं के खिलाफ वातावरण का निर्माण करना, युवाओं में देश के खिलाफ जहर भरना।
हाथी के दांत दिखाने के और, खाने के और
- सीएए/एनआरसी के मुद्दे पर एनसीपीआरआई ने प्रेस कॉन्फ्रेंस और याचिकाओं द्वारा विरोध दर्ज कराया, जबकि आरटीआई सुधारों (जैसे सीआईसी की स्वतंत्रता) पर चुप्पी साधी गई।
- जेएनयू व एएमयू में आयोजित सीएए विरोध प्रदर्शनों में कई सदस्य प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उपस्थित थे।
स्रोत :
- PRSLegislative Research, CAA Analysis Report
- Transparency International की 2022 रिपोर्ट में एनसीपीआरआई द्वारा न्यायपालिका में पारदर्शिता की मांग को अनदेखा करना ‘institutional inconsistency’ बताया गया।
स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन (एसआईओ)
घोषित उद्देश्य : नैतिक शिक्षा और छात्र सशक्तिकरण, समाज संरचना में सुधार और नैतिक पुनर्निर्माण, सामाजिक न्याय और सेवा कार्य और हिंदू–मुस्लिम संवाद एवं अंतरपांथिक कार्यक्रम आयोजन करना।
वास्तविक गतिविधि : राजनीतिक इस्लामी विमर्श का प्रचार, भारत-विरोधी आयोजनों से साठगांठ और विवादास्पद रुख।
नैतिकता का दिखावा, जिहाद को बढ़ावा
- 2016 जेएनयू विवाद में अफजल गुरु की फांसी के विरोध में आयोजित कार्यक्रम में एसआईओ के अनेक सदस्य सम्मिलित पाए गए।
- 2019 में सीएए विरोधी प्रदर्शन में एसआईओ नेताओं की गिरफ्तारी हुई; 2024 में मारे गए हमास नेता के लिए नमाज पढ़ी, जिसके बाद आलोचना हुई।
- एआईओ की पत्रिका ‘Students and Ummah’ में भारत के सेकुलर संविधान को ‘इस्लामी जीवनशैली के विरुद्ध बाधा’ कहा गया।
स्रोत :
- दिल्ली पुलिस चार्जशीट (2016)
- SIO Vision Document (2018–22) में ‘Ummah-centric’ छात्र विचारधारा के प्रचार की बात स्पष्ट रूप से वर्णित है।
- नांदेड़ पुलिस ने मुंबई क्राइम ब्रांच के साथ एक संयुक्त अभियान में 1 फरवरी 2020 को सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान भड़काऊ भाषण देने के आरोप में एसआईओ नेता को हिरासत में लिया।
ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू)-दक्षिण एशिया
घोषित उद्देश्य : मानवाधिकारों की निगरानी, जैसे-युद्ध अपराध, अत्याचार, उत्पीड़न, लैंगिक हिंसा, बाल उत्पीड़न और पांथिक-अल्पसंख्यकों के अधिकारों सहित मानवाधिकार उल्लंघनों की दस्तावेजीकरण और रिपोर्टिंग करना। शरणार्थियों, राजनीतिक बंदियों, उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों और अन्य वंचितों के अधिकारों की आवाज उठाना।
वास्तविक गतिविधि : भारत पर तीखी निगरानी, पड़ोसी तानाशाही देशों पर मौन, भेदभाव करना व राजनीतिक एजेंडा चलाना।
नाम बड़े और दर्शन छोटे
- एचआरडब्ल्यू की रिपोर्ट ‘Violent Cow Protection’ (2019) में सिर्फ हिंदू संगठनों को दोषी ठहराया गया, जबकि उसी अवधि में कट्टरपंथी संगठनों द्वारा मंदिरों पर हुए 23 हमलों का कोई उल्लेख नहीं किया गया।
- अनुच्छेद 370 पर आलोचना के समय चीन के उइगर डिटेंशन कैंप पर चुप्पी की आलोचना यूएनएचआरसी सदस्यों ने भी की।
स्रोत :
- HRW 2020 South Asia Review l UNHRC Session Minutes (2021): “Bias against India is disproportionate and selective.”
- 2014 में दो नोबुल शांति पुरस्कार विजेताओं, एडॉल्फो पेरेज एस्क्विवेल और मैरेड मैगुइरे ने 100 अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और विद्वानों द्वारा हस्ताक्षरित पत्र लिखा, जिसमें भर्ती प्रथाओं के लिए एचआरडब्ल्यू की आलोचना की गई। अमेरिका के अतिरिक्त न्याय प्रतिपादन के अभ्यास की निंदा करने में विफलता, लीबिया में अमेरिकी 2011 के सैन्य हस्तक्षेप का समर्थन और 2004 के हैती में तख्तापलट के दौरान इसकी चुप्पी।
ऑक्सफैम इंडिया (Oxfam India)
घोषित उद्देश्य : दलितों, जनजातियों, मुस्लिमों, और महिलाओं के साथ मिलकर गरीबी, भेदभाव और असमानता से लड़ना। सामाजिक असमानताओं पर शोध करना और सरकारी नीतियों में सुधार के लिए नागरिकों को संगठित करना।
वास्तविक गतिविधि : भारतीय सांस्कृतिक ढांचों को लक्ष्य कर पश्चिमी दृष्टिकोण थोपना, विदेश नीति में हस्तक्षेप करना।
नीयत में खोट, परंपरा पर चोट
- 2020 की रिपोर्ट ‘India Inequality Report’ में विवाह संस्था को पितृसत्तात्मक शोषण का वाहक बताया गया।
- इसके ट्रेनिंग मॉड्यूल में वर्ण व्यवस्था को ‘ब्राह्मणवादी फासीवाद’ कहा गया – जो भारत की विविध परंपराओं की आलोचना नहीं, बल्कि विकृतिकरण है।
- कुछ रिपोर्टों में कहा गया कि ऑक्सफैम ऑस्ट्रेलिया और ग्रेट ब्रिटेन जैसे देशों से प्राप्त फंड को भारत में राजनीतिक मुद्दों जैसे अडाणी समूह के विरोध के लिए कर रहा था।
स्रोत :
- lOxfam India’s FCRA Cancellation Notification, MHA, 2022 (ऑक्सफैम इंडिया की एफसीआरए रद्दीकरण अधिसूचना, गृह मंत्रालय, 2022)
- “Marriage and Patriarchy” Report Critique by Indian Sociological Society (2021) (भारतीय समाजशास्त्रीय सोसायटी द्वारा ‘विवाह और पितृसत्ता’ रिपोर्ट की समीक्षा (2021))
सिटिजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी)
संस्थापक: तीस्ता सीतलवाड़
घोषित उद्देश्य : दंगा पीड़ितों के लिए न्याय दिलाना, समानता और पांथिक सद्भाव बढ़ाना, संवैधानिक और मानवाधिकारों का संरक्षण करना। मीडिया और सक्रिय सामान्य जनता को फर्जी खबरों और नफरत फैलाने से रोकने के लिए कार्यशालाएं आयोजित करना।
वास्तविक गतिविधि : फर्जी गवाह, गढ़ी गई कहानियां, सर्वोच्च न्यायालय को भ्रमित करने का प्रयास। ‘लव जिहाद’ विरोधी कानूनों (उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश) को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देना।
सद्भाव में लिपटा एजेंडा
- तीस्ता सीतलवाड़ पर आरोप है कि उसने 2002 गुजरात दंगों के दौरान पीड़ितों को झूठे हलफनामे दाखिल करने के लिए प्रेरित किया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने 2022 में तीस्ता की याचिका खारिज की, उनकी भूमिका को ‘सामूहिक धोखाधड़ी’ बताया।
- जांच में दस्तावेज़ी सबूत भी मिले कि कई गवाह ‘सीजेपी’ के पैसे से ‘रटाए गए बयान’ दे रहे थे।
स्रोत :
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय : तीस्ता सीतलवाड़ बनाम गुजरात राज्य, 2022 l गुजरात एसआईटी अंतिम आरोपपत्र, 2022•
- 2002 गुजरात दंगों के प्रतिष्ठित मामलों में पुनर्निर्देशन, जांच और न्याय सुनिश्चित करने के लिए पैरवी—उदाहरण: बेस्ट बेकरी केस पुनरीक्षण
यूनाइटेड अगेन्स्ट हेट (यूएएच)
घोषित उद्देश्य : घृणा के खिलाफ आंदोलन करना, पीड़ितों को कानूनी, मानसिक और तथ्यात्मक सहायता प्रदान करना। फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट और सार्वजनिक जागरूकता फैलाना। देश की संवैधानिक प्रक्रिया पर सवाल उठाना।
वास्तविक गतिविधि : नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ आंदोलन में उकसावे, आधा-सच फैलाने और दिल्ली दंगों में संदिग्ध सहभागिता। सीएए, एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ स्थायी आंदोलन चलाया, इसके कुछ सदस्य प्रदर्शन में शामिल थे।
आधी हकीकत, आधा फसाना
- जामिया और शाहीनबाग में आयोजित धरनों में यूएएच के समन्वयक सक्रिय भूमिका में थे।
- दिल्ली पुलिस की 2020 के अरोप पत्र में UAH से जुड़ी व्हाट्सएप चैट्स और ईमेल्स का उल्लेख है, जिनमें ‘planned provocation’ जैसे शब्द पाए गए।
- यूएएच ने दिल्ली दंगों को एकतरफा ‘हिंदू फासीवाद’ करार दिया, जबकि आईबी अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या जैसे मामलों पर चुप्पी साधी।
स्रोत :
- यूएएच के सदस्यों, जैसे उमर खालिद और खालिद साइफी को दिल्ली दंगों से जुड़े मामलों में गिरफ्तार किया गया
- दिल्ली पुलिस आरोप-पत्र (फरवरी 2020 दंगे)
- गृहमंत्रालय की आंतरिक सुरक्षा रिपोर्ट (2020)
- tfipost.com के अनुसार, यूएएच के सदस्यों ने किसान आंदोलन को पांथिक आधार पर समर्थन दिया; सीएए विरोधी दंगों में भूमिका थी और अब यह खालिस्तानी विरोध प्रदर्शनों को हवा दे रहा है।
लोकतंत्र की रक्षा या भटकाने की चाल
इन संगठनों के नाम और नारे ‘जनहित’, ‘मानवाधिकार’ और ‘पर्यावरण’ जैसे सुनहरे शब्दों से जुड़े हैं, लेकिन व्यवहार में इनका काम एक खास वैचारिक ध्रुव पर टिके भारत-विरोधी विमर्श को आगे बढ़ाने जैसा लगता है।
लोकतंत्र को सशक्त बनाना सबकी जिम्मेदारी है, लेकिन जब ‘सिविल सोसाइटी’ ही उस सशक्तता को ‘सांप्रदायिकता’, ‘विकास विरोध’, या ‘राष्ट्रविरोध’ की ओर मोड़ने लगे, तब जांच, विवेक और पारदर्शिता अनिवार्य हो जाते हैं।
भारत जैसे संवेदनशील और बहुलतावादी लोकतंत्र में यह आवश्यक है कि ऐसे संगठनों की फंडिंग, उद्देश्य और प्रभाव की पारदर्शी जांच हो तथा नागरिकों को भी इनके दोहरे मापदंडों के प्रति सतर्क किया जाए।
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