क्या आपको पता है कि रामायण में भी एक गीता छिपी हुई है- जहाँ श्रीराम, न कि श्रीकृष्ण, जीवन के गहरे सूत्र सिखाते हैं? क्या आपने कभी सोचा है, युद्ध के बीच श्रीराम ने विभीषण को क्या सिखाया था? विभीषण गीता को इतना प्रभावशाली और आज भी प्रासंगिक बनाने वाली बात क्या है, जबकि इसका ज़िक्र कहीं विस्तार से नहीं मिलता? जब जीवन की युद्ध-सी परिस्थितियों में हम खुद को तैयार न पाएं- तब श्रीराम की ये शिक्षाएँ क्यों सबसे ज़्यादा जरूरी हो जाती हैं?
आइए, जानें विभीषण गीता को, रामायण का वह अध्याय-
- जो एक संवाद-श्रृंखला है -समर्पण, धर्म और दिव्य विवेक की।
- जो साहस, निष्ठा और आंतरिक धर्म पर आधारित जीवन-संदेश देती है।
- जो आज के जीवन के लिए भी मार्गदर्शक बन सकता है।
- जो श्रीराम द्वारा विभीषण को दी गई संक्षिप्त किंतु अत्यंत गहन शिक्षा है, जब भय ने विभीषण के मन को घेर लिया था और संदेह ने उनकी बुद्धि को डिगा दिया था।
“विभीषण गीता” एक संक्षिप्त किन्तु प्रभावशाली और अर्थपूर्ण संवाद को दर्शाती है, जो रावण से युद्ध के ठीक पहले, श्री राम और विभीषण के बीच हुआ था। यह संवाद श्रीरामचरितमानस के लंका कांड में आता है, जिसे गोस्वामी तुलसीदास ने 16वीं शताब्दी में (अवधी भाषा में) लिखा था।
लंका की युद्धभूमि
एक ओर है रावण- लंका का पराक्रमी राजा, महान विद्वान, भगवान शिव का भक्त, जिसकी विद्वता, शक्ति और अहंकार अतुलनीय हैं। वह अहंकार और शक्ति के दुरुपयोग का प्रतीक है। दूसरी ओर हैं श्रीराम- अयोध्या के राजकुमार, भगवान विष्णु के अवतार। रावण के विपरीत, श्रीराम शांत, संयमित और विनम्र हैं। श्रीराम धर्म के प्रतीक हैं — सत्य, सद्गुण और सही मार्ग का अनुसरण। वे न तो प्रतिशोध के लिए लड़ते हैं, न ही सत्ता के लिए। वे बाहर से सरल प्रतीत होते हैं- न कोई विशाल सेना, न भारी हथियार लेकिन उनकी असली शक्ति उनके आंतरिक गुणों और दिव्य उद्देश्य से आती है।
विभीषण का लंका छोड़कर श्रीराम का साथ देना, नैतिक साहस का प्रतीक है- सत्य के पक्ष में खड़ा होना, भले ही उसके लिए अपने परिवार के विरुद्ध जाना पड़े। विभीषण की धर्म के प्रति निष्ठा उसे नीति और सद्विवेक का प्रतीक बनाती है। जब विभीषण देखते हैं कि श्रीराम के पास न रथ है, न कवच और रावण पूरी तरह से अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित है- तो उनका मन चिंतित हो उठता है।तब श्रीराम उन्हें एक अदृश्य पर अत्यंत शक्तिशाली धर्म-रथ के बारे में बताते हैं-जो बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक गुणों, मूल्यों और आध्यात्मिक शक्ति से बना होता है।
इस दिव्य धर्मरथ का प्रत्येक हिस्सा- चाहे वह पहिए हों, कवच हो या अस्त्र-शस्त्र- जीवन मूल्यों का प्रतीक है, जैसे साहस, सत्य, क्षमा, आत्म संयम और ईश्वरभक्ति। ये सभी गुण जीवन के संघर्षों को पार करने के लिए आवश्यक हैं। श्रीराम संकेत देते हैं कि सफलता बाहरी साधनों में नहीं, बल्कि आंतरिक गुणों में निहित होती है। वे विभीषण को समझाते हैं कि जीवन की चुनौतियों (जिसका प्रतीक रावण है) पर विजय पाने के लिए, व्यक्ति को विजय के “दिव्य धर्मरथ”पर सवार होना पड़ता है।
विजय के ” दिव्य धर्मरथ” के मुख्य तत्व
पहिए- साहस (सौरज) और धैर्य (धीरज), ध्वजव पताका- सत्य (सत्य) औरसदाचार / उत्तमचरित्र (शील), घोड़े- बल (शक्ति), विवेक (बुद्धिमानी), दम (आत्मसंयम/अनुशासन),परहित (सेवाभाव), लगाम- क्षमा (क्षमा), कृपा (करुणा), समता (समानदृष्टि), सारथी- ईश्वरभजन (ईश्वरकेप्रतिभक्ति), कवचवशस्त्र (Armor & Weapons) , ढाल – वैराग्य (विरक्ति), तलवार- संतोष (संतोष), कुल्हाड़ी – दान (परोपकार), शक्ति व बल – बुद्धि (तर्कशीलता/प्रज्ञा), विशालधनुष – गहराज्ञान (विज्ञान / तत्वज्ञान), तरकश (तीररखनेकापात्र) – शुद्धऔरस्थिरमन (अमलअचलमन), घातक तीर – सम (संतुलन), जम (इंद्रिय-नियंत्रण), नियम (अनुशासन), अभेद्यकवच – ब्राह्मणोंऔरगुरुजनोंकीपूजा (बिप्रगुरुपूजा)।
जीवन की सच्ची जीत आंतरिक बल, आस्था और साहस से होती है
श्रीराम द्वारा समझाया गया यह दिव्य धर्म-रथ एक गहरा प्रतीक है जो यह दर्शाता है कि कैसे कोई भी व्यक्ति साहस, विश्वास, अनुशासन और सत्य के साथ जीवन की कठिन से कठिन चुनौतियों का सामना कर सकता है। श्रीराम की यह शिक्षा हमें याद दिलाती है कि जब साधन साथ न हों, तब भी अडिग मूल्य और स्पष्ट उद्देश्य ही सच्ची विजय का मार्ग बनाते हैं।
जीवन में हर व्यक्ति अपने-अपने “धर्मरथ” पर सवार होता है- यह रथ मूल्यों और गुणों से बना होता है
- व्यक्तिगत जीवन में, यह“आंतरिक शक्ति और आत्मबोध का रथ”होता है- जो आत्मबल, आत्मविकास, भावनात्मक संतुलन और आध्यात्मिक आधार को दर्शाता है।
- परिवार में, यह“सामंजस्य का रथ”होता है- जिसमें एकता, भावनात्मक जुड़ाव, आपसी विश्वास, क्षमा और सामूहिक भलाई समाहित होती है।
- विद्यार्थियों के लिए, यह “ज्ञान का दिव्यरथ” है- जो शिक्षा, धैर्य, अनुशासित प्रयास और संतुलित विकास का प्रतीक है।
- पेशेवर जीवन में, यह“ईमानदारी का रथ”है- जो सत्यनिष्ठा, शक्ति, नैतिकता, व्यावसायिक विवेक और टीम भावना को उजागर करता है।
- प्रबंधन (लीडरशिप) के दृष्टिकोण से, यह“नेतृत्व का रथ”है- जो दूरदर्शिता, नैतिक नेतृत्व, भावनात्मक बुद्धिमत्ता, उत्तरदायी निर्णय क्षमता और संतुलित संगठनात्मक विकास को दर्शाता है।
चाहे हम किसी भी भूमिका में हों- व्यक्ति, छात्र, पेशेवर, या परिवार का सदस्य- असली रथ हमारे भीतर विद्यमान है। हर रथ जीवन के अलग-अलग संदर्भों में आवश्यक गुणों को दर्शाता है। इन सभी गुणों का संगम ही आधुनिक जीवन में स्थायी सफलता और संपूर्ण कल्याण की रणनीति है।
लेखिका ने सबसे पहले विभीषण गीता को चिन्मय मिशन के माध्यम से जाना। इसकी सरलता और गहराई आगे की विस्तृत खोज और इस गीता की आधुनिक जीवन में कालातीत प्रासंगिकताकी शोध का आधार बनी। यह अध्ययन बताता है कि विभीषण गीता की शिक्षाएं आज के जीवन में भय, भ्रम और मानसिक दबाव जैसी स्थितियों से निपटने के व्यावहारिक उपाय देती हैं और हमें सच्ची विजय का मार्ग दिखाती है।
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