हाल ही में अमेरिका के वॉशिंगटन में क्वाड की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। इसमें चार देशों के विदेश मंत्री शामिल हुए। इस बैठक में पहलगाम अटैक की कड़े शब्दों में निंदा की गई। दोषियों को जल्द से जल्द न्याय के कठघरे में लाने की मांग की। इसमें यह भी फैसला लिया गया कि खनिजों के लिए चीन पर निर्भरता कैसे कम हो। क्वाड के बारे में गहराई से और सरल शब्दों में जानेंगे, लेकिन उससे पहले हिंद प्रशांत क्षेत्र की चर्चा करेंगे, क्योंकि क्वाड से पहले इसे समझना ज्यादा जरूरी है।
इंडो पैसिफिक रीजन यानी हिंद-प्रशांत क्षेत्र भौगोलिक क्षेत्र है। यह हिंद महासागर और प्रशांत महासागर से जुड़ा है। यह क्षेत्र राजनीति, व्यापार और समुद्री परिवहन के लिए महत्वपूर्ण है। इसलिए यह रणनीतिक क्षेत्र भी है।
इंडो पैसिफिक का कॉन्सेप्ट किसने दिया
ब्रिटैनिका के मुताबिक इंडो-पैसिफिक शब्द को सबसे पहले 1920 के दशक में जर्मन भू-राजनीतिज्ञ कार्ल हौशोफर (German geopolitician Karl Haushofer) ने गढ़ा और इसकी अवधारणा बनाई। उनकी दृष्टि इस शब्द के समकालीन उपयोग से काफी अलग थी। उन्होंने एक ऐसे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की कल्पना की- जहां जापान, चीन और भारत औपनिवेशिक वर्चस्व से मुक्त होकर यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी यूरोप की साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ संघर्ष में जर्मनी के साथ खड़े होंगे।
कैसे बदला कॉन्सेप्ट
इंडो-पैसिफिक की आधुनिक व्याख्या वर्ष 2007 में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे की। शिंजो आबे ने भारत की संसद में एक भाषण दिया था, जिसका शीर्षक था “दो समुद्रों का संगम।” आबे ने एक साझेदारी का वर्णन किया जिसके माध्यम से प्रशांत महासागर में जापानी प्रभाव और हिंद महासागर में भारतीय प्रभाव, संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ साझेदारी में, शिपिंग मार्गों को सुरक्षित कर सकते हैं। इससे क्षेत्र में स्वतंत्रता और समृद्धि बढ़ेगी। इसी के साथ ही 2007 में शिंजो आबे ने औपचारिक रूप से क्वाड के विचार को प्रस्तुत किया।
आइये अब बात करते हैं क्वाड की…
क्वाड है क्या
क्वाड का पूरा नाम है Quadrilateral Security Dialogue यानी चतुर्भुज सुरक्षा संवाद। यह चार देशों का एक अनौपचारिक फोरम है। इसमें भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं।
क्यों बना
यह रणनीतिक गठबंधन है। इसका उद्देश्य हिंद प्रशांत क्षेत्र (इंडो पैसिफिक रीजन) में शांति, स्थिरता और सुरक्षा को बढ़ावा देना है। मुख्य उद्देश्य चीन की विस्तारवादी नीति को नियंत्रित करके उसके बढ़ते प्रभाव को संतुलित करना है। कुल मिलाकर यह ड्रैगन पर शिकंजा कसता है और इसी वजह से चीन इससे डरता है।
क्वाड में शामिल देश एक दूसरे को सुरक्षा सहयोग (नौसेना अभ्यास और सैन्य रणनीति), सुरक्षा, आर्थिक और प्रौद्योगिकी में सहयोग करते हैं। यहां जलवायु परिवर्तन, वैक्सीन और समुद्री सुरक्षा को लेकर भी बातचीत होती है।
कब हुई शुरुआत..?
क्वाड की शुरुआत वर्ष 2007 में हुई, लेकिन बाद में यह निष्क्रिय हो गया। वर्ष 2017 में इसे फिर से सक्रिय किया गया। पहली बैठक मनीला में हुई थी। वहीं अब वर्ष 2025 का क्वाड समिट भारत के नई दिल्ली में होगा।
20 साल पहले पहली बार साथ आए
बीस साल पहले, क्वाड के देश भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका 2004 में हिंद महासागर में आए विनाशकारी भूकंप और सुनामी के बाद पहली बार एक मंच पर एकसाथ आए थे। इसी के चलते इससे प्रभावित देशों को मानवीय भी सहायता मिल सकी।
क्वाड के कुछ कार्यक्रम
- मालाबार नौसेना अभ्यास – इसके तहत क्वाड देश समुद्री अभ्यास करते हैं
- वैक्सीन पार्टनरशिप – कोविड-19 के समय टीके की आपूर्ति के लिए मिलकर काम किया
- टेक्नोलॉजी टास्क फोर्स, क्रिटिकल इंफ्रास्ट्रक्चर, 5G नेटवर्क आदि पर भी मिलकर काम किया।
क्यों जरूरी क्वाड..?
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा
- चीन की बढ़ती आक्रामकता पर नियंत्रण
- वैकल्पिक सप्लाई चेन : क्वाड चीन पर निर्भरता कम करना चाहता है। जिससे मोबाइल फोन, दवाइयां, इलेक्ट्रॉनिक सामान, मिनरल्स पर चीन पर निर्भर न रहना पड़े।
- लोकतंत्र के लिए – क्वाड देश लोकतंत्र और मानवाधिकारों पर विश्वास रखते हैं। इससे चीन की तानाशाही नीति को चुनौती मिलती है।
क्वाड से चीन को चिढ़ क्यों..?
- क्वाड को एशिया का नाटो (NATO) और अपनी विस्तारवादी नीति के लिए खतरा मानता है।
- क्वाड देश मालाबार सैन्य अभ्यास करते है। इससे चीन की नौसैनिक गतिविधियों पर दबाव बढ़ता है।
- चीन की बीआरआई परियोजना (बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव) के जवाब में क्वाड पारदर्शी विकास परियोजनाएं चलाता है।
- दुनिया के बड़े लोकतांत्रिक देश एक मंच पर आते हैं। इससे चीन की तानाशाही छवि भी उजागर होती है।
चीन की विस्तारवादी साजिश
- चीन पूरे दक्षिण चीन सागर पर दावा करता है। इसी के तहत आर्टिफिशियल द्वीप बनाकर चीन वहां सेना पहुंचा चुका है।
- वन बेल्ट वन रोड (OBOR) के जरिये चीन छोटे देशों को कर्ज देता है और उन्हें आर्थिक रूप से गुलाम बना लेता है।
- चीन कर्ज में डूबे और आर्थिक गुलाम देशों के बंदरगाहों पर नियंत्रण करता है।
- चीन की नौसेना हिंद महासागर तक अपनी उपस्थिति बढ़ा रही है।
क्वाड में भारत का शामिल होना यह बताता है कि दुनिया में उसकी छवि लोकतंत्र की जननी ही नहीं, लोकतंत्र और मानवाधिकार के संरक्षक के तौर पर भी है। पहलगाम अटैक पर क्वाड सदस्य देशों का कड़ा संदेश भारत की साख और छवि को और स्थापित करता है।
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