आपातकाल ‍@50 : हिटलर-गांधी : ...और कुर्सी हिल गई
July 17, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

आपातकाल : …और कुर्सी हिल गई

अपनी कुर्सी बचाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश पर आपातकाल थोपा और संविधान की धज्जियां उड़ा दीं

by राजकुमार भाटिया
Jun 25, 2025, 06:30 am IST
in भारत, विश्लेषण, संघ
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

25 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल को 50 वर्ष पूरे हुए। इस अवधि में आपातकाल संबंधी कई पुस्तकें व सैकड़ों लेख लिखे जा चुके हैं। पर एक प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है कि क्या लेखों के माध्सम से सभी तथ्यों के साथ न्याय किया जा चुका है? कहना पड़ेगा कि ऐसा नहीं हुआ। भारत में तो वैसे भी लेखकों पर विचारधारा हावी रहती है और घटनाओं को देखने की उनकी अपनी दृष्टि होती है। ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि किन तथ्यों के साथ न्याय नहीं हुआ?

आपातकाल की संक्षिप्त कथा

राजकुमार भाटिया
पूर्व अध्यक्ष, अभाविप

पहले आपातकाल लागू होने की संक्षिप्त कथा जान लेते हैं। इसकी शुरुआत नवंबर-दिसंबर 1973 में प्रारंभ हुई, जब गुजरात में एक इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रावास में महंगाई के कारण भोजन शुल्क में वृद्धि की गई। छात्रों ने उसका विरोध किया। शुल्कवृद्धि एक कॉलेज तक नहीं रुकी बल्कि अन्य कॉलेजों में भी की गई। इससे छात्र उबल पड़े। उन्होंने इसे भ्रष्टाचार का परिणाम बताते हुए भ्रष्टाचार और महंगाई के लिए कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन प्रदेश मुख्यमंत्री को दोषी ठहराया। छात्रों के इस विरोध के चलते बड़ा आंदोलन खड़ा हो गया। छात्रों ने मुख्यमंत्री को त्यागपत्र देने को कहा। आंदोलन इतना प्रबल हो गया कि मुख्यमंत्री को त्यागपत्र देना पड़ा, विधानसभा भंग हुई, और एक महीने बाद पुन: चुनाव हुए। कांग्रेस चुनाव हार गई।

जैसा गुजरात में हुआ, कुछ वैसा ही दो महीने बाद, बिहार में हुआ। मार्च 1974 में बिहार के छात्र भी आंदोलन की राह पर चल पड़े। वहां भी कांग्रेस सरकार थी और उसके मुख्यमंत्री के त्यागपत्र की मांग प्रारंभ हो गई। बिहार में स्वच्छ छवि वाले व रचनात्मक कार्यों में लगे रहने वाले वयोवृद्ध स्वाधीनता सेनानी बाबू जयप्रकाशनारायण ने आंदोलन का समर्थन किया जिससे यह और प्रभावी हो गया। कांग्रेस विरोधी कुछ राजनीतिक भी आंदोलन का समर्थन करने लगे। यह आंदोलन बिहार आंदोलन व जयप्रकाश नारायण आंदोलन के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

पाञ्चजन्य और आपातकाल

पाञ्चजन्य दशकों से आपातकाल से जुड़ी घटनाओं, कहानियों और प्रताड़नाओं को जिंदा रख रहा है। इस कारण आपातकाल बौद्धिक विमर्श का हिस्सा बना हुआ है। यही कारण है कि हर वर्ष 25 जून के दिन आपातकाल के साथ-साथ पाञ्चजन्य की भी विशद् चर्चा होती है। गत दो वर्ष से लगातार पाञ्चजन्य के दो अंकों यथा-2 जुलाई, 2023 और 30 जून, 2024 ने पाठकों को विशेष रूप से आकर्षित किया और देश-दुनिया में सराहे गए।

फैला फैला प्रचंड आंदोलन

यह आंदोलन केवल बिहार तक सीमित नहीं रहा। भ्रष्टाचार और महंगाई के चलते पूरे देश में भी आंदोलन फैलने लगा। केंद्र सरकार द्वारा त्यागपत्र देने की मांग होने लगी। जून 1975 तक आते-आते आंदोलन की तपिश प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तक पहुंच गई। गुजरात और बिहार आंदोलन साथ-साथ चल रहे थे, वहीं दोनों से असंबद्ध एक और घटनाक्रम अप्रैल 1971 से जारी था। 1971 के प्रारंभ में लोकसभा के मध्यावधि चुनाव हुए थे जिसमें इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी बड़े बहुमत से जीती थी। पर उसी चुनाव में रायबरेली संसदीय सीट से इंदिरा गांधी के मुकाबले चुनाव हारने वाले समाजवादी नेता राजनारायण ने चुनाव में भ्रष्ट तरीके अपनाने का आरोप लगाते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनाव की वैधता को एक याचिका द्वारा चुनौती दी थी। चार वर्ष बाद उस याचिका का निर्णय आया, जिसमें उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द कर दिया, लेकिन निर्णय को दो सप्ताह तक रोकते हुए श्रीमती गांधी को सर्वोच्च न्यायालय में जाने की छूट दे दी। पर उस निर्णय से इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री पद पर बने रहने का नैतिक अधिकार छिन गया।

पराजित हुई कांग्रेस

छात्रों के आंदोलन ने आग में घी का काम किया। गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस हार गई। इसी दिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इंदिरा गांधी की हार भी हुई। इसी दिन से प्रधानमंत्री के त्यागपत्र की मांग बहुत तेजी से उठी। उस दिन की एक और घटना ने भी श्रीमती गांधी को प्रभावित किया। उनके एक विश्वस्त राजनीतिक साथी डीपी धर की मृत्यु हो गई और अगले दो सप्ताह में देश की राजनीति में भूचाल आ गया। जब इंदिरा गांधी पर ज्यादा दबाव बना तो उन्होंने पद पर बने रहने के लिए 25 जून की आधी रात से आपातकाल लगा दिया।

अब हम उस प्रश्न पर आते हैं कि कौन से तथ्य देश के सामने उचित ढंग से नहीं आए। वे थे आंदोलन में छात्र संगठन (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्) और दो व्यक्तियों (श्री गोविंदाचार्य और श्री राम बहादुर राय) की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका। पहले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) की बात। 1971 से अभाविप ने यह कहना शुरू किया कि छात्र आज के नागरिक हैं, और देश-समाज के ज्वलंत प्रश्नों पर उन्हें आंदोलन करना चाहिए। गुजरात में छात्र आंदोलन स्वत:स्फूर्त था पर अभाविप ने उसका समर्थन किया और उसे अंदरुनी ताकत दी।

अभाविप का काम पूरे प्रदेश में था और उसके समर्थन के कारण ही आंदोलन प्रभावी हुआ। बिहार आंदोलन तो अभाविप की योजना से ही प्रारंभ हुआ था। अभाविप ने पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के तत्वावधान में आंदोलन की योजना बनाई थी। अब दो व्यक्तियों की भूमिका। रामबहादुर राय उन दिनों बिहार अभाविप के संगठन मंत्री थे। एक प्रकार से वही आंदोलन के सूत्रधार थे। वहीं गोविंदाचार्य रा. स्व. संघ के पटना विभाग प्रचारक और अभाविप के परामर्शदाता थे। दोनों व्यक्तियों का पूरा तालमेल था। उन्हें यह समझ थी कि आंदोलन को बाबू जयप्रकाश नारायण का समर्थन मिलने से आंदोलन प्रभावी हो जायेगा। बाद में उन्होंने जयप्रकाश जी को इसके लिए मना लिया। आपातकाल का बाकी इतिहास सारा देश जानता है।

 

Topics: पाञ्चजन्य विशेषहिटलर-गांधीजयप्रकाशनारायणसमाजवादी नेता राजनारायणगोविंदाचार्यरा.स्व.संघइंदिरा गांधीआपातकालअभाविपकांग्रेस सरकार­
Share1TweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

अमेरिका के यूटा प्रांत स्थित इसी इस्कॉन मंदिर पर गत माह अज्ञात हमलावरों ने गोलीबारी की

हिंदूफोबिया: आस्था पर हमला, भावनाओं पर चोट

फिल्म का एक दृश्य

फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ को न्यायालय के साथ ही धमकी और तोड़फोड़ के जरिए जा रहा है रोका

छत्रपति शिवाजी महाराज

रायगढ़ का किला, छत्रपति शिवाजी महाराज और हिंदवी स्वराज्य

बांग्लादेश से घुसपैठ : धुबरी रहा घुसपैठियों की पसंद, कांग्रेस ने दिया राजनीतिक संरक्षण

‘सामाजिक समरसता वेदिका’ द्वारा संचालित सिलाई केंद्र में प्रशिक्षण प्राप्त करतीं लड़कियां

इदं न मम् : तेलंगाना में ‘सामाजिक समरसता वेदिका’ के प्रयासों से परिवर्तन से हुई प्रगति

केरल की वामपंथी सरकार ने कक्षा 10 की सामाजिक विज्ञान पुस्तक में ‘लोकतंत्र : एक भारतीय अनुभव’ 'Democracy: An Indian Experience' शीर्षक से नया अध्याय जोड़ा है, जिसका विरोध हो रहा है। (बाएं से) शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी और मुख्यमंत्री पिनराई विजयन

केरल सरकार ने स्कूली पाठ्यक्रम में किया बदलाव, लाल एजेंडे और काली सोच का सबक है 

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

PM मोदी का मिशन : ग्लोबल साउथ के नेतृत्व के लिए तैयार भारत

मदरसे के नाम पर चंदा मांगता था याकूब

ऑपरेशन कालनेमि: आठ और गिरफ्तार, मदरसे के नाम पर चंदा वसूलता था याकूब, सख्ती हुई तो उत्तराखंड से भाग रहे ‘कालनेमि’

बारिश के दौरान सुबह खाली पेट हल्दी वाला पानी पीने के फायदे

बोरोप्लस के भ्रामक विज्ञापन को लेकर इमामी कंपनी पर लगा जुर्माना

‘विश्व की नंबर वन क्रीम’ बताना बोरोप्लस को पड़ा महंगा, लगा 30 हजार का जुर्माना

एयर डिफेंस सिस्टम आकाश

चीन सीमा पर “आकाश” का परीक्षण, ऑपरेशन सिंदूर में दिखाई थी भारत की ताकत

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस

10 लाख लोगों को मिलेगा मुफ्त AI प्रशिक्षण, गांवों को वरीयता, डिजिटल इंडिया के लिए बड़ा कदम

केंद्र सरकार ने ‘प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना’ को मंज़ूरी दी है।

प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना को मंज़ूरी, कम उत्पादन वाले 100 जिलों में होगी लागू

अमृतसर : हथियारों और ड्रग्स तस्करी में 2 युवक गिरफ्तार, तालिबान से डरकर भारत में ली थी शरण

पंजाब : पाकिस्तानी जासूस की निशानदेही पर एक और जासूस आरोपित गिरफ्तार

छांगुर का अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क बेनकाब : विदेशों में भी 5 बैंक अकाउंट का खुलासा, शारजाह से दुबई तक, हर जगह फैले एजेंट

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies