महाभारत के अनुशासन पर्व के अध्याय 116 में अहिंसा परमो धर्मः यह उद्धरण में है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संदर्भ यदि यह कहा जाए कि सेवा परमो धर्मः तो यह शत प्रतिशत सही होगा। देश के किसी भी कोने में कभी भी कोई संकट, त्रासदी या कोई दुर्घटना हुई संघ के स्वंयसेवकों की टोली ने अपनी सेवा कार्य से मानवता को गौरवान्वित किया है। चाहे वह कोरोना काल रहा हो, केरल के वायनाड का भूस्खलन की अकल्पनीय तबाही का मंजर हो या पिछले दिनों 12 जून को अहमदाबाद विमान दुर्घटना की स्थिति हो। देश के लगभग हर विषम परिस्थिति और संकट काल में स्वयंसेवकों ने अग्रिम पंक्ति में खड़े होकर मानव सेवा का धर्म निभाया है।
अहमदाबाद विमान हादसे जैसा मंजर 12 नवंबर सन् 1996 के चरखी दादरी विमान दुर्घटना के समय का भी था। जब शाम 6 बजकर 32 मिनट पर राजधानी दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से सऊदी अरब के लिए विमान ने उड़ान भरी थी। इस विमान में सवार अधिकतर यात्री सऊदी अरब में नौकरी करने जा रहे थे। कुछ हज यात्री भी थे। जबकि दूसरी ओर से कजाकिस्तान एयरलाइंस का विमान दिल्ली हवाई अड्डे की ओर आ रहा था, जिसमें अधिकतर व्यापारी थे। एयर कंट्रोलर की भाषा पायलट नहीं समझ पाया और विश्व की सबसे बड़ी विमान दुर्घटना हो गई। जबकि, दोनों ही विमानों को कंट्रोलर वी के दत्ता कंट्रोल कर रहे थे। इस विमान हादसे में करीब 349 लोग मारे गए थे।
इस संदर्भ में, दी न्यूयार्क टाइम्स में जाॅन एफ‐ बन्र्स की रिपोर्ट 13 नवंबर 1996 में छपी थी। रिपोर्टर बन्र्स ने यूनाइटेड स्टेट एयर फोर्स के हवाले से लिखा कि मालवाहक विमान सी 141 का पायलट अमेरिकी दूतावास का सामान लेकर आ रहा था। उसने बताया कि हमारे विमान के दाहिने हाथ की ओर बादलों के बीच आग का चमकता हुआ गोला दिखा। कुछ देर बाद ही, दो आग के गोले बादलों के बीच उभरे और भयंकर विस्फोट हुआ। दूर-दूर तक विमान का मलवा बिखर गया।
सबसे पहले पहुंचे आरएसएस के स्वयंसेवक
उस विमान दुर्घटना के तुरंत बाद ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक सबसे पहले दुर्घटना स्थल पर राहत व बचाव के लिए पहुंचे। उनकी प्रशंसा करते हुए तत्कालीन केंद्नीय नागरिक उड्डयन मंत्री सी‐ एम‐ इब्राहिम ने कहा था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने जाति और धर्म से ऊपर उठकर लोक सेवा का कार्य किया है। जबकि, चरखी दादरी के ईदगाह के मौलवी मोहम्मद हामिद ने कहा था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मानवता के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह किया है। मौलवी मोहम्मद हामिद ने कहा कि मेरी तो तह-ए-दिल से गुजारिश है अल्लाह से कि इन सभी कार्यकर्ताओं को उम्रदराज करें। इस गमजदा माहौल में जिस तरह जीतराम जी व संघ के दूसरे कार्यकर्ताओं ने हमारा साथ दिया और आंसू पोंछे हैं, उससे कभी यह महसूस नहीं हुआ कि हम अलग धर्म के हैं। अल्लाह से गुजारिश है कि हम सभी इसी तरह प्रेम से रहें, ऐसी रहमत रखें।
स्वयंसेवकों की मदद से संभव हो पाया सहायता कार्य
मौलवी हामिद के अलावा, चरखी दादरी के तहसीलदार भलेराम ने कहा कि जो भी सहायता कार्य हुआ, वह तो केवल संघ के स्वयंसेवकों की मदद से ही संभव हो पाया है। हम शवों को अस्पताल पहुंचाने, उनकी शिनाख्त करवाने, सामूहिक अंतिम संस्कार या अन्य कार्याें के लिए उनकी जितनी प्रशंसा कर सकते हैं, वह कम है।
घंटे भर में हो गई सारी व्यवस्था
उस समय चरखी दादरी के आस-पास चार पांच किलोमीटर के क्षेत्र में इस विमान का मलबा बिखर गया था। यह मलबा ढाणी फौगाट, खेड़ी सोनावाल, बिरोहर और मालियावास गांवों के खेतों में बिखरा पड़ा था। घटनास्थल के आस-पास जनरेटर और पेट्रोमैक्स के जरिए बिजली और रोशनी की व्यवस्था की गई थी। इसके अलावा, शहर के तीन धर्मशालाओं में दुर्घटनाग्रस्त विमान यात्रियों के परिजनों के ठहरने और भोजन की व्यवस्था की गई थी। यह सारी व्यवस्थाएं भिवानी जिले के संघचालक श्री जीतरामजी ने घंटे भर के प्रयासों में ही कर दिया था। बताया जाता है कि उस भयावह रात में ही श्री जीतराम जी के नेतृत्व में स्वयंसेवकों ने ‘विमान दुर्घटना पीड़ित सहायता समिति‘ का गठन किया। इस समिति में विश्व हिंदू परिषद, आर्य समाज, विद्यार्थी परिषद और गुरुद्वारा समिति सहित अनेक सामाजिक संस्थाओं के लोगों को शामिल किया गया था। सभी लोगों ने मिलकर युद्धस्तर पर कार्य किया।
पेट्रोमैक्स की रोशनी में चला राहत कार्य
रात में पेट्रोमैक्स की रोशनी में स्वयंसेवकों का दल जीवित बचे यात्रियों को बचाने के लिए जुट गया था। इस संदर्भ में, पच्चासी वर्षीय संघचालक श्री जीतराम गुप्ता जी ने बताया कि मैं उस समय अपने कार्यालय में था। तेज आवाज सुनकर मेरा दिल दहल गया था। मैंने बाहर आकर देखा तो नजारा समझ में आया। वह स्थान दादरी से पांच किलोमीटर दूर था। हम करीब दस-बारह लोग घटना स्थल पर पहुंचे। उस समय खेतों में जले, अधजले, क्षत-विक्षत अंगों व शवों को गांव के लोगों की मदद से ट्रैक्टरों में लादकर हटाया गया था।
ज्यादातर यात्री मुस्लिम और ईसाई थे
स्वयंसेवक विजय वत्स बताते हैं कि उस समय शवों को सुरक्षित रखना भी एक बड़ी चुनौती थी। इसके लिए बर्फ की सिल्लियों की जरूरत थी। इसलिए भिवानी, झज्जर और रेवाड़ी की बर्फ फैक्ट्रियों और आरा मशीनों को आधी रात में ही चालू करवाया गया। उन्हीं शहरों से बर्फ और ताबूत मंगाए गए। सुबह के पांच बजे तक लगभग 159 शवों को भिवानी के सिविल अस्पताल में पहुंचाया जा चुका था। ज्यादातर विमान यात्री मुस्लिम या इसाई थे, इसलिए उनके धर्म के अनुसार ही उनका अंतिम संस्कार किया गया। इसके लिए स्थानीय मौलवी और दिल्ली से आए इस्लामिया प्रतिनिधिमंडल की भी सहायता ली गई। जिन यात्रियों के परिजन नहीं पहुंच पाए उनको अंतिम विदाई संघ के स्वयंसेवकों ने दी।
तीन दिनों तक जुटे रहे स्वयंसेवक
बहरहाल, स्वयंसेवकों और ग्रामीणों की तत्परता देखकर स्थानीय प्रशासन के अधिकारी भी सहायता के लिए जुट गए थे। प्रशासन के साथ-साथ इन सहायता एवं राहत-बचाव कार्य में स्वयंसेवकों का दल तीन दिनों तक जुटा रहा। उस समय के क्षेत्रीय प्रचारक श्री प्रेम गोयल जी को इस सद्भावनापूर्ण कार्य के लिए मुस्लिम समुदाय की ओर से सम्मानित भी किया गया।
इसके बावजूद इरफान हबीब ने उगला जहर
इस दुर्घटना के कुछ महीने बाद ही, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में आयोजित एक गोष्ठी में इतिहासकार इरफान हबीब ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राष्ट्र-विरोधी संस्था है। इसके खिलाफ, संघ के आगरा ब्रज प्रांत के प्रचार टोली के सदस्य भूपेन्द्र शर्मा ने इतिहासकार इरफान हबीब को चेतावनी देते हुए कहा कि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में झूठे प्रचार न करें अन्यथा उनके खिलाफ कोर्ट में शिकायत दर्ज की जाएगी।
आज भी लगा है बोर्ड
आज भी चरखी दादरी के चिड़िया मोड़ पर उस विमान हादसे की यादें मौजूद हैं। वहां कब्रिस्तान में 29 साल पहले विमान हादसे का बोर्ड लगा हुआ है। इस बोर्ड में मृतकों की राष्ट्रीयता के आधार पर संख्या अंकित की गई है। इसमें भारत, सऊदी अरब, नेपाल, पाकिस्तान, अमेरिका, ब्रिटेन और बांग्लादेश के निवासी थे।
नर सेवा ही नारायण सेवा
12 जून 2025 को एयर इंडिया का पैसेंजर फ्लाइट ए आई 171 विमान दुर्घटना स्थल पर आधे घंटे के भीतर ही अहमदाबाद के मेघानीनगर के महानगर कार्यवाह हार्दिक पारीख लगभग दो सौ तरुणों के साथ दुर्घटना पीड़ितों की सहायता करने में जुट गए। कुछ युवाओं ने बी‐जे‐ मेडिकल काॅलेज एवं सिविल अस्पताल के माॅर्चरी की तरफ अपनों के खोने के गम में रोते बिलखते परिजनों को संभाला तो कुछ आस-पास के लोगों के लिए चाय, पानी और भोजन की व्यवस्था में जुट गए। दरअसल, संघ मानता है कि एकात्मता यानी नर सेवा ही नारायण सेवा है।
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