पश्चिम एशिया में ईरान और इस्राएल के बीच बढ़ते सैन्य तनाव ने न केवल क्षेत्रीय स्थिरता को चुनौती दी है, बल्कि वहां रह रहे विदेशी नागरिकों, विशेषकर छात्रों के लिए गंभीर सुरक्षा संकट पैदा कर दिया है। इस संदर्भ में भारत सरकार द्वारा ईरान में फंसे लगभग 10,000 भारतीय छात्रों की सुरक्षित निकासी की पहल एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक और मानवीय कदम है। भारत सरकार ने ईरान सरकार से राजनयिक स्तर पर अपने छात्रों की सुरक्षित निकासी के लिए मार्ग देने का अनुरोध किया था जिसे तेहरान ने स्वीकार करके सड़क मार्ग से उन्हें निकालने की अनुमति दी है। ईरान में भय का माहौल है, इस्राएल की ओर से बरसती मिसाइलों के बीच अफरातफरी में नागरिक दबे—छुपे बैठे हैं। बहुत से लोग तो टनलों में जाकर, इस्राएल के हमलों को समर्थन दे रहे हैं।
ईरान और इस्राएल के बीच करीब पांच दिन से जारी संघर्ष में दोनों देशों के बीच सैन्य हमले और जवाबी कार्रवाइयां तेज हो गई हैं। इस संघर्ष का प्रभाव केवल इन दो देशों तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि वहां रह रहे अन्य देशों के नागरिकों, विशेषकर छात्रों, पर भी पड़ा है। ईरान के कई शहरों में बम धमाकों और मिसाइल हमलों की खबरें लगातार आ रही हैं, जिससे स्थानीय और विदेशी नागरिकों में भय का माहौल है।
एक आकलन के अनुसार, ईरान में लगभग 10,000 भारतीय नागरिक रह रहे हैं, जिनमें से बड़ी संख्या में भारतीय छात्र वहां के मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई कर रहे हैं। उनमें भी अधिकांश छात्र जम्मू-कश्मीर से हैं। रिपोर्ट है कि तेहरान यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज़ के हॉस्टल के पास हुए हमले में दो कश्मीरी छात्र घायल भी हुए हैं। इस वातावरण से भयभीत छात्रों ने भारतीय दूतावास से अपील की कि उन्हें जल्द से जल्द सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जाए, क्योंकि वे लगातार बम धमाकों की आवाज़ों के बीच बेसमेंट में छिपे हुए हैं।
भारत सरकार ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए त्वरित कार्रवाई की है। विदेश मंत्रालय और तेहरान स्थित भारतीय दूतावास ने मिलकर छात्रों को ईरान के भीतर ही सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करना शुरू कर दिया है। इसके अतिरिक्त, भारत ने ईरान सरकार से औपचारिक रूप से छात्रों की सुरक्षित निकासी की अनुमति मांगी थी, जिसे ईरान ने स्वीकार कर लिया है।
ईरान ने अपने हवाई क्षेत्र को बंद किया हुआ है, जिससे हवाई मार्ग से छात्रों की निकासी संभव नहीं है। इसके चलते भारत सरकार अब सड़क मार्ग से निकासी की योजना बना रही है। ईरान ने अफगानिस्तान, अज़रबैजान और तुर्कमेनिस्तान की सीमाओं को भारतीय नागरिकों के लिए खोल दिया है, जिससे छात्रों को इन देशों के ज़रिए सुरक्षित बाहर निकाला जा सकेगा।
इधर भारत में जम्मू-कश्मीर कांग्रेस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने विदेश मंत्रालय से छात्रों की तत्काल निकासी के कदम उठाने की अपील की है। साथ ही, कई सामाजिक संगठनों और आहत परिवारों ने सरकार से अनुरोध किया है कि छात्रों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए।
श्रीनगर में रहने वाला कादरी परिवार अब कुछ राहत की सांस ले रहा है। तेहरान के मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाले उनके बेटे और बेटी भारी बमबारी के बीच वहां फंस गए थे, जिन्हें भारतीय दूतावास और भारत के विदेश मंत्रालय के प्रयासों के बाद आखिरकार वहां से निकालकर सुरक्षित ठिकाने पर पहुंचाया गया है। सुहैल कादरी ने बताया, “मेरी बेटी और बेटे को तेहरान से सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया। यह हमारे लिए बहुत दर्दनाक समय रहा है। कल, जब मैंने अपनी बेटी से बात की, तो वह बहुत डरी हुई थी क्योंकि उसके कॉलेज के पास एक बम गिरा था।” श्री कादरी तेहरान में भारतीय दूतावास और विदेश मंत्री एस. जयशंकर द्वारा छात्रों को तेहरान से बाहर निकालने के प्रयासों की प्रशंसा कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “मैं तेहरान स्थित हमारे दूतावास के कर्मचारियों का बहुत आभारी हूं। दूतावास के एक अधिकारी ने कल मुझे फोन किया और आश्वासन दिया कि मेरी बेटी और बेटे सहित सभी फंसे हुए छात्रों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया जाएगा। आज, वे किसी सुरक्षित स्थान पर चले गए हैं।”
नि:संदेह, भारत की यह पहल न केवल मानवीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह उसकी कूटनीतिक क्षमता और वैश्विक जिम्मेदारी को भी दर्शाती है। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए किसी भी परिस्थिति में पीछे नहीं हटेगा। साथ ही, ईरान के साथ संवाद और सहयोग के ज़रिए इस संकट को सुलझाने की दिशा में भी भारत ने कूटनीतिक परिपक्वता दिखाई है।
ईरान-इस्राएल संघर्ष के बीच भारतीय छात्रों की सुरक्षित निकासी एक जटिल लेकिन आवश्यक प्रक्रिया है। यह घटना न केवल भारत की विदेश नीति की संवेदनशीलता को रेखांकित करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि संकट की घड़ी में सरकार और समाज मिलकर कैसे अपने नागरिकों की रक्षा कर सकते हैं। भारत की मोदी सरकार पहले भी अनेक देशों में संकट की स्थिति बनने पर हजारों नागरिकों और छात्रों को सुरक्षित स्वदेश लाई है। यमन, यूक्रेन, पोलैंड, रूस, अफगानिस्तान जैसे देशों में संकट में फंसे भारत के ही नहीं, दूसरे देशों के भी नागरिकों, छात्रों की सुरक्षित निकासी के लिए दुनियाभर के देश भारत के प्रति आभार प्रकट कर चुके हैं।
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