बांग्लादेश अब भी अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। हर गुजरता दिन वहाँ के आम लोगों के दिलों में यही प्रश्न उत्पन्न कर रहा है कि चुनाव कब होंगे? कब वे लोकतंत्र की प्रक्रिया का हिस्सा बनेंगे। हालांकि चुनावों को लेकर जहाँ बीएनपी और अन्य दल बार-बार प्रश्न कर रहे हैं तो वहीं मोहम्मद यूनुस का कहना है कि जब तक आवश्यक सुधार नहीं होंगे, तब तक चुनाव नहीं होंगे।
यही रस्साकशी चल रही है। मगर अब मोहम्मद यूनुस ने कहा है कि अप्रैल 2026 तक बांग्लादेश में चुनाव हो जाएंगे। बांग्लादेश में अवामी लीग को फिलहाल प्रतिबंधित कर दिया गया है और यह भी दिख रहा है कि कट्टरपंथी नेताओं को जमानतें मिल रही हैं। ऐसा लगता है कि जैसे सारी परिभाषाएं ही बांग्लादेश में परिवर्तित की जा रही हैं। वहीं बांग्लादेश में यूनाइटेड नेशंस रेज़िडेंन्ट कॉर्डिनेटर गवीन लूइस का भी कहना है कि यदि अवामी लीग चुनावों में सम्मिलित नहीं होती है तो भी बांग्लादेश के आगामी चुनाव समावेशी हो सकते हैं।
इस पर कई राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि यह बांग्लादेश को नियंत्रित करने का एक षड्यन्त्र है। तस्कीन वाहेद आकाश बांग्लादेश के स्वतंत्र स्वरों में से एक स्वर हैं। वे राष्ट्र की एकता और बंगबंधु की विरासत की बात करते हैं और बांग्लादेश की इस बिना चुनी सरकार के राजनीतिक नाटकों की खुलकर आलोचना करते हैं। उन्होंने एक्स पर लिखा कि यूएन के दोहरे मापदंड आज दिख गए। वर्ष 2018 में इसी यूएन ने स्पष्ट किया था कि एक विश्वसनीय चुनाव के लिए सभी पार्टियों की संलग्नता आवश्यक है। मगर वर्ष 2025 यूएन की भूमिका बदल गई है। अब कहा जा रहा है कि यदि अवामी लीग, जो कि बांग्लादेश की सबसे बड़ी और सबसे ऐतिहासिक पार्टी है, वह भी अनुपस्थित रहती है तो भी चुनाव समावेशी हो सकते हैं।
इसका अर्थ हुआ कि लाखों मतदाताओं को तो बाहर ही कर दिया जाएगा। वे लिखते हैं कि इससे किसका फायदा होगा? इससे एक ऐसा चुनाव होगा जिसके परिणामों का निर्धारण लोगों द्वारा नहीं बल्कि उनके द्वारा होगा जिन्हें एक विभाजित और कमजोर बांग्लादेश पसंद है।
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मोहम्मद यूनुस ने हालांकि वर्ष 2026 के अप्रैल में चुनावों की बात की है, मगर यह भी ध्यान रखा जाए कि बांग्लादेश में अवामी लीग के बाद सबसे बड़ी पार्टी बीएनपी ने मार्च में यह कहा था कि यदि दिसंबर के बाद भी चुनावों को टाला जाता है तो अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है।
मगर मोहम्मद यूनुस ने दिसंबर तक की टाइम लाइन को अनदेखा किया है। अब अप्रेल 2026 की नई तारीख दी है। इसे लेकर लोगों के दिलों में संदेह है। क्योंकि मोहम्मद यूनुस ने चुनावों को लेकर किसी भी तारीख की घोषणा नहीं की है। न ही उन्होंने यह बताया है कि क्या तैयारी की गई है, किस प्रक्रिया का पालन किया जाएगा, या फिर कैसे प्रशासन क्या कदम उठाएगा? बस उन्होंने यह घोषणा की है कि चुनाव अप्रैल 2026 में कराए जाएंगे।
prothomalo के अनुसार बांग्लादेश की कम्युनिस्ट पार्टी जहाँ दिसंबर तक चुनाव चाहती है तो वहीं कथित छात्रों की पार्टी नेशनल सिटीजन पार्टी का कहना है कि यदि जुलाई चार्टर, जुलाई घोषणापत्र और सुधारों पर अप्रैल तक प्रभावी कदम उठाए जाते हैं, तो उन्हें मुख्य सलाहकार द्वारा घोषित समय सीमा में देश में चुनाव कराने में कोई आपत्ति नहीं है।
वहीं इस घोषणा को लेकर बांग्लादेश की मुख्य विपक्षी पार्टी बीएनपी खुश नहीं है। इस घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए पार्टी की स्थाई समिति के सदस्य अमीर खसरू महमूद चौधरी ने कहा कि जब 90 प्रतिशत राजनीतिक दलों ने मांग की है कि चुनाव दिसंबर तक करा लिए जाएं, तो सवाल उठता है कि 90 प्रतिशत की इच्छा को दरकिनार करके ऐसा निर्णय कैसे लिया जा सकता है। prothomalo के अनुसार उन्होंने कहा कि जब बार-बार यह कहा गया कि सभी निर्णय आम सहमति के आधार पर बनाए जाएंगे तो इतने बड़े निर्णय में से 90% की सहमति को क्यों निकाल दिया गया?
ढाका ट्रिब्यून के अनुसार, बीएनपी के नेता रुहुल कबीर रिजवी ने 5 जून को अंतरिम सरकार पर यह आरोप लगाया था कि वह चुनावों को लेकर टालमटोल की स्थिति में है। वह राष्ट्रीय चुनाव टाल रही है और लोगों की आशा और अपेक्षाओं की उपेक्षा कर रही है। उन्होंने कहा कि शेख हसीना ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को बीते कल की बात बना दिया था और जब उन्हें पद से हटाया गया तो लोगों को उम्मीद थी कि डॉ. मोहम्मद यूनुस जल्द ही उनके वोट देने के अधिकार को बहाल कर देंगे। लेकिन, चुनाव के मुद्दे को विभिन्न हथकंडों के जरिए केवल टाला जा रहा है।
यह तो नेताओं की बात है, मगर आम लोग भी सोशल मीडिया पर प्रश्न कर रहे हैं कि आखिर चुनाव कब तक होंगे? बांग्लादेश की सेना ने भी यह कहा था कि दिसंबर तक चुनाव हो जाने चाहिए, और जनता के मत से निर्वाचित सरकार को ही नीतिगत निर्णय लेने चाहिए। यह फिर सभी को पता है कि कैसे एक नाटक सा हुआ, जिसमें मोहम्मद यूनुस ने एनसीपी के नेता नाहिद इस्लाम से कहा कि वे अपने पद से इस्तीफा देने का सोच रहे हैं। मगर उसके बाद एडवाइज़री काउंसिल की एक बैठक हुई, जिसमे जल्दी चुनावों की मांग करने वालों को विदेशी ताकतों के हाथों में खेलने वाला कहा गया था।
यही कारण है कि बीएनपी के नेता कह रहे हैं कि 90% राजनीतिक दलों की सहमति इस निर्णय से पहले क्यों नहीं ली गई?
(डिस्क्लेमर: स्वतंत्र लेखन। यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं; आवश्यक नहीं कि पाञ्चजन्य उनसे सहमत हो।)
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